शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

बुआ, भतीजा क्या साथ आ पाएंगे!

बिहार में बड़े और छोटे भाई के तकरार और महागठबंधन टूटने के बाद अब उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित गठबंधन पर सवाल उठने लगे हैं। जिस तरह उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने मायावती के साथ बुआ-भतीजे का नाता जोड़ा है,  वैसा ही नाता बिहार में तेजस्वी और नीतीश का था। दोनों के बीच चाचा-भतीजे का नाता था। लालू प्रसाद हमेशा नीतीश कुमार के बड़े भाई बने रहे हैं। अब बड़े भाई और भतीजे ने नीतीश पर चौतरफा हमला शुरू कर दिया है।
सो, उत्तर प्रदेश में बुआ और भतीजे का तालमेल बनेगा या नहीं, इसे लेकर संशय शुरू हो गया है। जानकार सूत्रों का कहना है कि मायावती ने लोकसभा चुनाव की तैयारी अपने दम पर शुरू कर दी है। उन्होंने दलितों के मसले पर राज्यसभा से इस्तीफा देकर राज्य में अपना दलित वोट एकजुट करने का प्रयास शुरू किया है। अब वे हर महीने अपने इस्तीफे की तारीख पर कार्यक्रम करेंगी। बताया जा रहा है कि उन्होंने राज्य की सभी 80 सीटों के लिए उम्मीदवारों की छंटनी का काम शुरू कर दिया है। वे जमीनी स्तर से रिपोर्ट मंगा रही हैं और उम्मीदवार चुन रहे हैं।
दूसरी बात यह है कि उनके यहां नेतृत्व को लेकर संकट नहीं है। वे अपनी पार्टी की एकछत्र नेता हैं। जबकि समाजवादी पार्टी में नेतृत्व को लेकर घमासान छिड़ा है। अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव अलग मोर्चा बनाने की तैयारी कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह को फिर से अध्यक्ष बनाएं नहीं तो वे मुलायम को अपने मोर्चे का अध्यक्ष बना देंगे। यह भी चर्चा है कि शिवपाल भाजपा के संपर्क में हैं और अगले साल राज्यसभा चुनाव से पहले भाजपा गुजरात वाली कहानी उत्तर प्रदेश में दोहरा देगी।
इसके बावजूद जानकार सूत्रों का कहना है कि मायावती थोड़े समय तक साथ रह सकती हैं। 27 अगस्त को पटना में होने वाली लालू प्रसाद की रैली में अगर वे और अखिलेश एक साथ हिस्सा लेते हैं तो उत्तर प्रदेश में गठबंधन की नींव पड़ेगी। लेकिन इसका मकसद बहुत सीमित होगा। पहला मकसद यह है कि अगर केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर सीट से इस्तीफा देते हैं तो विपक्ष मायावती को साझा उम्मीदवार बनाए। अगर ऐसा नहीं होता है या चुनाव लड़ कर मायावती नहीं जीत पाती हैं तो उत्तर प्रदेश या बिहार से उनको राज्यसभा में भेजा जाए।
यह मकसद पूरा होने के साथ ही गठबंधन खत्म हो जाएगा। सपा और बसपा दोनों के नेता मान रहे हैं कि सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों मिल कर चुनाव नहीं लड़ सकते हैं क्योंकि इसमें तीनों को बहुत त्याग करना होगा। सपा और बसपा दोनों के सभी सीटों पर उम्मीदवार तैयार हैं। इसलिए वे कम सीट लड़ने की जोखिम नहीं ले सकते हैं। आखिर दोनों को आगे के चुनाव के लिए अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी जोड़े रखना है।

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