गुजरात में हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव में जैसे तैसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहाकार अहमद पटेल बाजी मारने में कामयाब रहे, लेकिन इस जीत पर कांग्रेस को प्रफुल्लित होने के बजाय नए सिरे से आत्म मंथन करने की आवश्यकता है कि आखिर क्या और कौन से कारण हैं जिससे कांग्रेस की हालात दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है? दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बढ़ती विश्वव्यापी लोकप्रियता और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की राजनीतिक सूझबूझ ने कांग्रेस के भौगोलिक-राजनीतिक दायरे को सिमट कर रख दिया है।
विगत तीन वर्षो में कांग्रेस ने कई राज्यों में सत्ता गंवा दी है और अब वह देश के शीर्ष संवैधानिक पदों से भी बेदलख हो गई है। प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति सभी महत्वपूर्ण पदों पर भाजपा काबिज हो गई है। दरअसल इसके लिए कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति जिम्मेदार है। वह इतना सब कुछ गंवाने के बाद भी मानने को तैयार नहीं कि देश बदल रहा है और बदलाव के संवाहक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। वह अभी भी कथित सांप्रदायिकता और तुष्टीकरण के भोथरे हथियार के बूते सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही है। इससे न सिर्फ उसका जनाधार खिसक रहा है, बल्कि राजनीतिक समझ और अंतर्दृष्टि रखने वाले कई बड़े नेता कांग्रेस का साथ छोड़ रहे हैं।
सच कहें तो 2014 के आम चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद से लगातार कांग्रेस की हालत पतली होती जा रही है। पार्टी में जान फूंकने के लिए 2015 में उपाध्यक्ष राहुल गांधी को आगे किया गया, लेकिन वह जितना अधिक सक्रिय हो रहे हैं पार्टी उतनी ही सिमटती जा रही है। गौर करें तो 2012 में उत्तर प्रदेश से जो हार का सिलसिला शुरू हुआ वह गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश गंवाने के बाद भी बदस्तूर जारी है। आज की तारीख में देखें तो कांग्रेस दो बड़े राज्यों हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों तक सीमित रह गई है। यहां भी कब भगवा लहर जाए कहा नहीं जा सकता।
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