शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

कर्पूरी, नीतीश फार्मूले पर मोदी!

अन्य पिछड़ी जातियों में वर्गीकरण कराने और क्रीमी लेयर के दायरे को छोटा करने का केंद्र सरकार का फैसला इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्पूरी ठाकुर और नीतीश कुमार के मॉडल की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। बिहार में सबसे पहले कर्पूरी ठाकुर ने एनेक्सचर-1 और एनेक्सचर- 2 की जातियों का विभाजन किया था और आरक्षण के भीतर आरक्षण देने का फैसला किया था। बाद में नीतीश कुमार ने इस फार्मूले को आगे बढ़ाया और अति पिछड़ी जातियों का अलग समूह बना कर उन्हें आरक्षण के भीतर आरक्षण दिया।
ध्यान रहे बरसों से इस बात की मांग उठती रही है कि अन्य पिछड़ी जातियों में जो आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत जातियां हैं उनको आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है और बिल्कुल हाशिए पर की जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। इसे ठीक करने के लिए केंद्र सरकार ने वर्गीकरण करने का फैसला किया है। इसके लिए एक कमेटी बनाई जाएगी, जो इस बात की भी समीक्षा करेगी कि किन जातियों को आरक्षण का ज्यादा फायदा मिल रहा है और कौन सी जातियां इसके लाभ से वंचित हैं।
बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और काफी हद तक मध्य प्रदेश में भी यादव और कुर्मी ऐसी जातियां हैं, जिनको आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा मिला है। अगर सरकार वर्गीकरण करके आरक्षण के लाभ से वंचित जातियों को आरक्षण के भीतर आरक्षण का फैसला करती है तो इन दो जातियों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। भाजपा पहले से ही यादव वोट बैंक के मुकाबले अति पिछड़ी जातियों के वोट बैंक पर ध्यान रही थी। केंद्र सरकार के इस फैसले से भाजपा की वह राजनीति आगे बढ़ेगी। इसी तरह क्रीमी लेयर की सीमा छह लाख से बढ़ा कर आठ लाख सालाना कर दी गई है। इससे आरक्षण के दायरे में आने वालों की संख्या बढ़ जाएगी।
बिहार में नीतीश कुमार ने अति पिछड़ी और महादलित का विभाजन किया था। लेकिन केंद्र सरकार ने दलितों में आरक्षण के भीतर आरक्षण का कोई प्रयास नहीं किया है। यानी केंद्र में महादलित किस्म का कोई अलग वर्ग नहीं बनेगा। इसका भी कारण राजनीतिक बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि रामविलास पासवान, रामदास अठावले, जीतन राम मांझी जैसे तमाम दलित नेताओं को साथ लेकर और मायावती को कमजोर करते हुए भाजपा पूरे दलित वोट की राजनीति कर रही है। इसलिए वहां वर्गीकरण के बारे में नहीं सोचा गया है। इस तरह से भाजपा की राजनीति का फोकस सवर्ण, अति पिछड़ी जातियां और दलित, आदिवासी पर दिख रहा है।                                                  नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने वादा भारत की नव-आकांक्षाओं को पूरा करने का किया था। मकसद बताया गया था- जाति-मजहब की संकीर्ण सोच से लोगों को निकालना। भरोसा बंधाया गया था कि सरकार की ‘सबका साथ-सबका विकास’ नीति से ऐसी खुशहाली आएगी कि लोगों को ऐसी सोच में जकड़े रहने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तब दशकों से चला रहा आरक्षण का विमर्श अपने-आप अप्रासंगिक हो जाएगा। लेकिन अब तीन साल बाद जाहिर यह हो रहा है कि एनडीए सरकार न सिर्फ उसी विमर्श में उलझ गई है, बल्कि समाज को भी उसी में उलझाए रखने में अपना फायदा देख रही है। तो अन्य पिछड़ी वर्गों (ओबीसी) को मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत मिले आरक्षण पर वह “नीतीश फॉर्मूला” लागू करना चाहती है। वैसे पिछड़ी जातियों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर बांटने का ये तरीका नीतीश कुमार का ढूंढा हुआ नहीं है।
1978 में कर्पूरी ठाकुर ने इसे बिहार में आजमाया था। 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट पर अमल के बाद इसे जरूर सबसे बहुप्रचारित रूप में नीतीश कुमार लागू किया। वहां उन्होंने ओबीसी के अंदर अति-पिछड़ी जातियों की एक अलग श्रेणी बनाई। इसी तरह दलितों के भीतर महादलित की श्रेणी बनाई गई। इन दोनों समुदायों को मिले आरक्षण को उन जातियों की जनसंख्या के अनुपात में बांट दिया गया। तब से कई राज्य यह फॉर्मूला लागू कर चुके हैं। अब एनडीए सरकार उसे राष्ट्रीय स्तर पर अमल में लाना चाहती है। इसके लिए एक आयोग के गठन का फैसला हुआ है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने बाकी पिछड़ी जातियों को यादवों और शेष दलित जातियों को जाटवों के खिलाफ गोलबंद कर उसका खूब चुनावी लाभ उठाया था। अनुमान लगाया जा सकता है कि ताजा कदम उसी ‘सफल प्रयोग’ से प्रेरित है।
रणनीति है कि जातियां एक दूसरे के खिलाफ उलझी रहें और उसके भावावेग में मतदान करती रहें। क्या यह विकास और जातिवाद से उबरने का रास्ता है? इसके साथ ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ओबीसी आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर की आय सीमा को बढ़ाकर छह से आठ लाख रुपए सालाना करने का फैसला किया है। यह भी विवादास्पद है। क्या हर महीने 66,000 रुपए कमाने वाले परिवार को गरीब माना जाएगा? क्या उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए? पूर्व सरकारें ऐसे फैसले लेती थीं, तो उसे वोट बैंक की राजनीति कहा जाता था। अब इसे क्या कहा जाना चाहिए?

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