सोमवार, 28 अगस्त 2017

धारा 376, 511 व 506 के तहत राम रहीम को विशेष अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई।

साध्वी यौन शोषण केस में डेरा प्रमुख राम रहीम गुनहगार साबित हो चुका है। सीबीआइ की विशेष अदालत ने राम रहीम को अपील को ठुकराते हुये 10 साल की सजा दी।                                                                               
                                  वो मायाजाल का नायक था, वो आतंक का नायक था, वो परलोक सुधारने के नाम पर इहलोक में अपने भक्तों का शारीरिक शोषण करता था। उसके लिए संत की परिभाषा, पहनावा सब कुछ अलग था, वो इस धरती पर अपने को खुदा से कम नहीं समझता था। अपने तथाकथित व्यक्तित्व की आड़ में मासूम भक्तों की आस्था और शरीर से खिलवाड़ करता था। लेकिन उसे ये नहीं पता था कि भारतीय न्यायतंत्र की बुनियाद इतनी मजबूत है कि उसका बच पाना मुमकिन नहीं होगा। 2002 का साध्वी यौन शोषण का मामला डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के लिए भारी पड़ गया। 25 अगस्त को जब राम रहीम अपने लाव-लश्कर के साथ सीबीआइ की विशेष अदालत में पेश हुआ तो खुद को भगवान मानने वाले राम रहीम के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थीं। सीबीआइ की विशेष अदालत के सामने वो रहम की अपील करता रहा।
- डेरा प्रमुख राम रहीम को सीबीआइ की विशेष अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई।
-धारा 376, 511 व 506 के तहत राम रहीम को सजा।                                                                                डेरा प्रमुख राम रहीम की काली करतूतें उसके आश्रम की चारदीवारी को लांघकर मुश्किल से बाहर आती थीं। लेकिन आज जब वो सीबीआइ की विशेष अदालत से गुनहगार साबित हो चुका है, उसके खिलाफ सनसनीखेज जानकारियां सामने आ रही हैं, जो साबित करती हैं कि संत के चोले में राम रहीम के मंसूबे कितने खतरनाक थे। सिलसिलेवार हम ये बताने की कोशिश करेंगे कि राम रहीम वो शख्स था जो एक देश के अंदर अलग देश चला रहा था। वो जबरदस्त उन्माद पैदा कर हरियाणा और पंजाब को अस्थिर करना चाहता था।                                              भगवान बनने की कोशिश में राम रहीम
गुरमीत राम रहीम ने स्वयं को भगवान के रूप में महिमा मंडित करने के लिए करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट सोच रखे थे। इनके जरिये वह खुद को भगवान के रूप में प्रोजेक्ट करता और मोटा मुनाफा भी कमाता। कोर्ट के फैसले के बाद ये सभी प्रोजेक्ट अटक गए हैं। अध्यात्मिक गुरु से रुपहले पर्दे पर आए राम रहीम को फिल्मों का ऐसा शौक लगा कि एक के बाद एक कई फिल्में उसने बनाईं। अब वह फिल्मी दुनिया में अपने सबसे बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था। इस फिल्म पर काम शुरू हो चुका था और ‘द बर्थ’ इसका शीर्षक था। इसके बारे में राम रहीम का दावा था कि वह इसमें मानव की उत्पत्ति का रहस्य खोलेगा। धरती से लेकर अंतरिक्ष तक का रहस्य उजागर होगा। इस फिल्म के लिए बड़े तकनीकी विशेषज्ञों की भी मदद ली जा रही थी। दावा यह भी किया जा रहा था कि तकनीक व इफेक्ट्स में यह हॉलीवुड फिल्मों का मुकाबला करेगी। डेरे से जुड़े सूत्र बताते हैं इसमें डेरा प्रमुख स्वयं को सर्वशक्तिमान के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता। उसका ड्रीम प्रोजेक्ट ड्रीम बनकर ही रह गया।

राम रहीम का मायाजाल
डेरा सच्चा सौदा के भीतर पूरा मायाजाल था। अपनी मुद्रा और अपना कारोबार था। डेरे को इस तरह बसाया गया है कि अगर यहां एक बार कोई बस जाए तो उसे कभी बाहर की दुनिया से जुड़ने की आवश्कता ही न पड़े। डेरे के अपने उत्पाद, अपनी सेवाएं और सब कारोबार अपनी मुद्रा में। न बाहर की मुद्रा और न ही बाहर से कारोबार।
डेरा सच्चा सौदा ने दोनों डेरों में और उनमें बसी कॉलोनियों व संस्थान के लिए अलग से प्लास्टिक की मुद्रा बनवाई थी। बाहर से आए शख्स को डेरे में कुछ भी खरीदने के लिए रुपये को डेरे की करेंसी से बदलवाना पड़ता था। यहां आने वाले हजारों श्रद्धालु इस मुद्रा का प्रयोग करते रहे हैं। किसी एक स्थान से टोकन ले लेते और फिर इनके बदले जहां चाहा वहां से कोई भी सामान यहां तक कि होटल में खाना भी खाया जा सकता था।
डेरामुखी ने स्कूल से लेकर पीजी कॉलेज अपने डेरे में ही खोले हुए हैं। सुपर मार्केट से लेकर फैक्टियां खेल स्टेडियम, विद्यार्थियों के रहने के लिए हॉस्टल, डेरे में नौकरी करने वाले परिवारों के रहने के लिए अलग आवासीय कॉलोनी, सिनेमा घर, फाइव स्टार होटल, रेस्टोरेंट आदि यह सब डेरा सच्चा सौदा में ही हैं। इसके अलावा दुकानों, रेस्टोरेंट में डेरे की खुद की करेंसी भी चलती थी।    पुराने डेरे में ही 'सच' मार्केट है। मार्केट में हर प्रकार के सामान की एक-एक दुकान निर्धारित है। नए डेरे में ऐसी मार्केट तो नहीं है, लेकिन वहां फैक्ट्रियां बनी हुई हैं। बड़े स्तर का अस्पताल बना हुआ है। डेरा की ओर से रिसॉर्ट बनाए गए हैं। थ्री स्टार होटल भी हैं। कशिश डेरा का पुराना होटल है। डेरा ने पतंजलि की तर्ज पर खुद के भी उत्पाद उतार दिए हैं और खुद का ही नेटवर्क स्थापित किया। खाद्य वस्तुओं के अलावा सौंदर्य प्रशासन, कपड़े व इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स में भी कदम रखा। अब एमएसजी के नाम से बैटरियां भी तैयार की गईं।
आतंकी संगठनों से जुड़े तार
डेरा सच्चा सौदा के खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट सहित अन्य आतंकी संगठनों के साथ कनेक्शन होने का शक हरियाणा सरकार को है। इसकी वजह डेरा प्रमुख के साथ पंचकूला सीबीआइ कोर्ट में पेशी पर आए समर्थकों की गाड़ियों से मिले प्रतिबंधित हथियार हैं। पूरे राज्य में डेरों की तलाशी के दौरान भी पुलिस को कई ऐसे हथियार मिले हैं, जो न केवल प्रतिबंधित हैं, बल्कि वीआइपी के पास भी नहीं होते। ऐसे हथियारों के लाइसेंस भी जारी नहीं किए जाते। यह सिर्फ सेना के पास ही हो सकते हैं।
गृह सचिव रामनिवास और पुलिस महानिदेशक बीएस संधू ने इन सभी हथियारों की सूची बनाकर राज्य सरकार को सौंप दी है। राज्य सरकार ने बिना देर किए केंद्रीय गृह मंत्रलय को यह सूची भेज दी, ताकि भारतीय सेना से संपर्क स्थापित कर इस बात की तहकीकात कराई जा सके कि संबंधित हथियार किस तरह के हैं और कौन-कौन से आतंकी संगठन इन हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। डेरा प्रमुख की सीबीआइ कोर्ट में पेशी के दौरान वाहनों में से एके 47 राइफल मिली है। इसके अलावा सैकड़ों ऐसे हथियार मिले हैं, जिनके नाम पुलिस सार्वजनिक नहीं कर रही। प्रदेश में चार दर्जन से अधिक नाम चर्चा में हैं। उनकी तलाशी हो रही है। तलाशी के दौरान भी संगीन किस्म के हथियारों के बरामद हो रहे हैं।                                    

धर्म गुरुओं के न जानें कितने चेहरे

दिन के उजाले में प्रवचन की गंगा में तथाकथित संत अपने भक्तों संग डूबकी लगाते हैं। लेकिन काली रात उन संतों की सोच को जरूरत से ज्यादा काली कर देती है।                                                                                         
                 मोक्ष की प्राप्ति, परमात्मा से मिलन और परलोक में खुद की बेहतरी को भारतीय दर्शन विशेष बल देता रहा है। अनादिकाल से लेकर मौजूदा समय तक सामान्य से लेकर खास भारतीयों की साधु और संतों के साथ समागम एक खास विशेषता रही है। ये बात अलग है कि धर्म के नाम पर खुद को भगवान घोषित करने वाले कुछ लोग आम लोगों की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश करते रहे हैं। तथाकथित साधु-संतों ने अपनी काबिलियत का या डर का ऐसा जाल बुना कि उनके अनुयायियों को लगने लगा कि परलोक सुधार के लिए उनसे बेहतर साधन कुछ और नहीं हो सकता है।
ये बात अलग है कि अपनी तथाकथित काबिलियत के आवरण में वो ऐसे कृत्य को अंजाम देते हैं जो किसी भी कीमत पर न तो नैतिक है, न कानून सम्मत और न ही उसके पीछे कोई आध्यत्मिक आधार है। लाखों अनुयायियों की फौज वाले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक साध्वी के साथ छेड़छाड़ मामले में कानूनी फांस का सामना कर रहे हैं। लेकिन वो अकेले ऐसे नहीं है। आइए आप को उन संतों के बारे में बताने की कोशिश करते हैं। जो प्रवचनों से ज्यादा अनैतिक कृत्यों से चर्चा में रहे।
आसाराम बापू
इस नाम से भला कौन परिचित नहीं है। अपने समर्थकों में बापू के नाम से मशहूर आसाराम इहलोक से ज्यादा परलोक सुधारने का रास्ता बताते थे। लेकिन जब पूरी दुनिया को उनके बारे में चौंकाने वाली जानकारियां मिली तो सफेद लिबास में दर्शन की बात कहने वाला ये शख्स मलिन नजर आने लगा। 2013 में आसाराम बापू पर आरोप लगा कि उन्होंने एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म किया था।पीड़ित लड़की का आरोप था कि आसाराम बापू अनैतिक यौनचार के लिए दबाव बनाते थे, हालांकि आसाराम आरोपों से इनकार करते रहे हैं। इसके अलावा 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ हुए अमानवीय कांड के लिए उन्होंने उसे ही जिम्मेदार बताया। आसाराम बापू ने कहा कि पांच या छह लोग दोषी नहीं हो सकते हैं। निर्भया को अपने गुनहगारों से रहम की अपील करनी चाहिए थी। अगर निर्भया ने वैसा किया होता तो न केवल उसकी इज्जत बच जाती, बल्कि उसकी जान भी सुरक्षित रहती। आसाराम बापू ने निर्भया को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि ताली सिर्फ एक हाथ से नहीं बजती है।                                         चंद्रास्वामी
विवादों में रहने वाले चंद्रास्वामी भी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। ये बात अलग है कि वो अपने दर्शन से ज्यादा अपनी कारगुजारियों से चर्चा में रहे। चंद्रास्वामी अब इस दुनिया में नहीं हैं। बताया जाता है कि पूर्व पीएम पी वी नरसिम्हाराव के कार्यकाल के दौरान उनकी तूती बोलती थी। इसके अलावा वो ब्रिटिश पीएम मार्ग्रेट थैचर, अभिनेत्री एलिजाबेथ टेलर को आध्यात्मिक सलाह दिया करते थे। हालांकि उनका विवाद से नाम तब जुड़ा जब उनका नाम राजीव गांधी हत्याकांड में सामने आया। 1996 में लंदन स्थित कारोबारी लखु भाई पाठक के साथ धोखाधड़ी में नाम जुड़ा।                                                                                                                                                                  स्वामी नित्यानंद
अब देश के दक्षिणी इलाके पर नजर डालते हैं। दिन के उजाले में स्वामी नित्यानंद अपने समर्थकों को आत्मा से परमात्मा के मिलन का रास्ता बताते थे। लेकिन उनके समर्थकों के लिए रात कुछ ज्यादा ही काली होती थी। नित्यानंद के खिलाफ उनकी एक शिष्या ने दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए कहा था कि वो जान से मारने की धमकी देते थे। इसके अलावा बेंगलुरु में नित्यानंद के आश्रम में छापेमारी के दौरान कंडोम और गांजा की बरामदगी हुई थी। ये भी आरोप लगाया जाता है कि तांत्रिक यौन संबंध स्थापित करने के लिए भी बेजा दबाव डाला जाता था। 
संत रामपाल
अब एक बार फिर रुख उत्तर भारत के राज्य हरियाणा की तरफ करते हैं। देश और दुनिया को आध्यात्म की सीख देने से पहले रामपाल हरियाणा सिंचाई विभाग में इंजीनियर थे। 2014 में करीब 30 घंटे के संघर्ष के बाद शांति के संदेश देने वाले अशांत नायक को उनके सतलोक आश्रम से गिरफ्तार किया गया।                                                                  महर्षि महेश योगी
मशहूर बीटल इंग्लिश रॉक बैंड से महेश योगी का संबंध था। महेश योगी पर आरोप है कि उन्होंने मिया फैरो से यौन संबंध स्थापित करने का दबाव बनाया, जिसके बाद बीटल ने उनसे संबंध विच्छेद कर लिया। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि बीटल की आड़ में महर्षि महेश योगी ड्रग्स का कारोबार किया करते थे। ये भी कहा जाता है कि बीच सेक्सी सैडी सांग को लिखने वाले जॉन लेनन ने उन पर हमला किया था। 2008 में महेश योगी की मौत हो गई थी।
 
                      
      

रविवार, 27 अगस्त 2017

राजद की 'भाजपा भगाओ रैली' में मंच पर दिखें दिग्गज

राजद की 'भाजपा भगाओ रैली' में आज लालू प्रसाद अपनी ताकत दिखाएंगे। इसके लिए पटना के गांधी मैदान में समर्थकों का हुजूम उमड़ रहा है। भाजपा व जदयू ने रैली की आलोचना की है।                                                           पटना । राजधानी के ऐतिहासिक गांधी मैदान में राजद की 'देश बचाओ-भाजपा भगाओ रैली' शुरू हो चुकी है। मंच पर नेताओं का संबोधन शुरू हो गया है। राज्‍य में महागठबंधन सरकार के बिखरने और राजद के सत्ता से बेदखल होने के बाद पूरे देश की नजरें इस रैली पर टिकी हुई है। जदयू के बागी शरद यादव के अगले कदम का भी इंतजार किया जा रहा है। भाजपा विरोधी रैली में शामिल होकर वह एक तरह से जदयू को कार्रवाई के लिए चुनौती देने की तैयारी कर चुके हैं।
दूसरी ओर भाजपा ने जहां रैली की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए हैं, वहीं जदयू ने इसे घोटालेबाजों की रैली करार दिया है। भाजपा का कहना है कि बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित बिहार में इस समय रैली की राजनीति करना जनता के साथ मजाक है। 
रैली में शरद यादव के लालू यादव के साथ गले मिलने पर जदयू नेता नीरज कुमार ने कहा कि कुछ ही दिनों बाद लालू यादव सपरिवार जेल जाने वाले हैं। ऐसे में उनकी अवैध संपत्ति कौन रखेगा। इसके लिए शरद यादव की ताजपोशी की जा रही है। 
शरद यादव के खिलाफ क्‍या कार्रवाई की जायेगी, पूछे जाने पर नीरज कुमार ने कहा कि यह फैसला माननीय मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार करेंगे। उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जायेगी। 
- कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि
- झामुमो नेता हेमंत सोरने ने मंच से कहा कि इस ऐतिहासिक मैदान से देश को बचाने की आवाज निकली है। उस आवाज को उठाने वाले लालू यादव को हम धन्‍यवाद देते हैं। यह जनसैलाब व्‍यवस्‍था के खिलाफ आक्रोश है। नौजवान साथियों से कहूंगा कि हमारे पूर्वजों ने देश की एकता और अखंडता को बचाने के लिए काफी मेहनत किया है। लेकिन दुर्भाग्‍य की बात है कि देश पर ऐसी साप्रदायिक ताकत का शासन है जो इसे तोड़ने में लगी है। दलितों से दलितों को और पिछड़ों को पिछड़ों से लड़ाने का कम कर रही है ।
इस डिजिटल इंडिया के सरकार में 19 करोड़ लोग भूखे सोते हैं। ये लोग आज तक मात्र साढ़े 6 लाख रोजगार ही पैदा करने में सक्षम हो सके हैं। जितने भी बातें कही, वह जुमला साबित हुआ। खाते में 15 लाख देने की बात कही थी, लेकिन पैसा तो आया नहीं, घर का भी पैसा निकलवा लिया।
हमारा देश कृषि प्रधान देश है, लेकिन कहीं किसान सड़कों पर सब्‍जी फेंकने को मजबूर हो रहे हैं तो कहीं दूध फेंक रहे हैं। आज ये देश अजीब हालात से गुजर रहा है। देश अजीब भंवर में फंस गया है। इससे इसको निकालने की जरूरत है। उम्‍मीद है कि हम सब एकसाथ मिलकर देश से भंवर को निकालने का प्रयास करेंगे। भाजपा को गोवा से लेकर पूरे देश में कहीं भी बहुमत नहीं मिला, लेकिन भाजप सरकार बनाती है। ये धर्म के लूटरे के साथ-साथ लोकतंत्र के भी लूटेरे हैं। इन देशद्रोहियों और राष्‍ट्रदोहियों को जवाब देना है।
आज पूरे देश में आक्रोश है। दलितों, पिछड़ों को सताया जा रहा है। गुजरात में नंगा कर पीटा जा रहा है। आवाज उठाने पर जेल में डाल दिया जाता है। यह व्‍यापारियों की पार्टी है। चाणक्‍य ने कहा है कि जिस देश का राजा व्‍यापारी होता है, उस देश की प्रजा भिखारी होती है। आज हमें इन व्‍यापारियों को देश की सत्‍ता से हटाने का संकल्‍प लेना है।
- समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष और उत्‍तरप्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आदरणीय लालू प्रसाद यादव जी को बधाई देना चाहता हूं। ये जो जनसैलाब दिखाई दे रहा है, यह सब डिजिटल इंडिया वाली पार्टी भाजपा वाले भी देख रहे होंगे। यह आवाज 11 करोड़ जनता की आवाज है। उत्‍तर प्रदेश 22 करोड़ का  है। आपकी आवाज से आवाज मिला देगा। बंगाल से भी आवाज निकलेगी कि हमें देश बचाना है।
हम देश इसलिए बचाना चाहते हैं क्‍योंकि इन्‍होंने देश को पीछे कर दिया। गरीबों और किसानों को सबसे अधिक परेशानी हुई है। अब तो तीन साल बीत गये, अब तो समझा दो कि अच्‍छे दिन कब आयेंगे। हम बिहार की जनता से पूछेेंगे कि तीन साल में उनके जीवन में कितना परिवर्तन आया है। नौजवानों को तो कुछ मिला नहीं है और मिलेगा भी नहीं। वे जानते हैं कि हम मोबाइल पर कुछ फैला देंगे, टीवी पर कुछ फैला देंगे। ये तो भला हुआ कि राम-रहीम के चक्‍कर में कुछ सच सामने आने लगा है।
अाप बताओ तो कि कहां हैं भगवान, हम वहीं झुक जायेंगे। कहीं चोरी हो जाये, डकैती हो जाये, लेकिन पेड़ से टंगा घंटा आजतक चोरी होते नहीं देखा। हमारा देश आबादी में बहुत बड़ा हो गया है। इन्‍होंने कहा कि नोटबंदी से भ्रष्‍टाचार खत्‍म हो जायेगा, आतंकवाद खत्‍म हो जायेगा, हम बिहार की जनता से पूछना चाहते हैं कि आखिर किसी फायदा हुआ। हम पहले से ही कहते हैं कि पैसा काला-सफेद नहीं होता। लेन-देन के तरीके से होता है। नोटबंदी बैंकों में पैसा वापस लाने के लिए किया गया।
बिहार में बाढ़ आयी है, यूपी में बाढ़ आयी है। पैकेज दिया गया है। लेकिन जिनकी जान चली गई, जिनका गाय बह गया, उनका क्‍या होगा। न्‍यू इंडिया वाले लोग पता नहीं कौन से भारत बनाने चाहते हैं। हम तो किसानों और नौजवानों का भारत बनाना चाहते हैं। हमने उत्‍तर प्रदेश में काम भी किया है। उत्‍तर प्रदेश में समाजवादी लोगों ने सबसे बड़ा एक्‍सप्रेस वे बनाकर दिखाया है। डिजिटल इंडिया की बात करने वालों ने हमारी योजना चुरा ली। हम यूपी में फ्री मोबाइल देना चाहते थे। लेकिन आज कोई कंपनी फ्री में देने वाली है। 
बिहार की धरती क्रांतिकारी धरती है। जब यह धरती रथ रोक सकती है तो बीजेपी को भी रोक सकती है। आपको रोक कर दिखाना है। हमारे उपर भी जांच हो रही है। हमारे यहां रोमियो को पकड़ा जा रहा है। लेकिन ये तो बता दो कि सबसे अधिक किस पार्टी के रोमियो को पकड़ा जा रहा है। 
हम चाहते हैं कि ऐसा देश बने कि किसानों, नौजवानों सबको हक मिले। आज तो आधार बन गया है। देश में 80 प्रतिशत तक आधार बन गया है। जो कुछ हिसाब-किताब लगाना है तो आधार से लगाओ। सबको हक दो। गिनती आपके पास है। सबको उनका हक दे दो। बिहार के लोगों से आग्रह करता हूं कि आप सब इस संघर्ष में हमारा साथ दें। भाजपा को भगाने काम करें। 
रालोद के नेता चौधरी जयंत सिंह ने कहा कि यह महारैली नहीं, रैला है रैला। हम बिहार की जनता का अभिवादन करते हैं। सभी लोग लालू जी के साथ खड़े हैं। पूरे देश में जब-जब समाजिक क्रांति आयी है, उसकी चिंगारी बिहार से ही निकली है। चंपारण से राजकुमार शुक्‍ला जी, स्‍वामी सहजानंद जी आदि ने जो चिंगारी जलाई, वह सब लोग जानते हैं। आज दुबारा वहीं परिस्‍थतियां हैं। देश में लोगों को बोलने नहीं दिया जा रहा है। वक्‍त आ गया है सवाल पूछने का। तेजस्‍वी ने आज सारे सवाल जनता की अदालत में रखे हैं। तेजस्‍वी जी आपने कहा कि आपके साथ धोखा दिया। जनता के जनादेश के साथ धोखा हुआ। नीतीश कुमार ने जनता के साथ धोखा किया है।
मोदी सरकार ने वादा किया था कि खातों में 15-15 लाख देंगे। 2 करोड़ लोगों को रोजगार देंगे। लेकिन न तो लोगों को रोजगार मिला और न ही खाते में पैसे आये। नोटबंदी के बाद अर्थव्‍यवसथा चौपट हो गई। गरीबों और मजदूरों का रोजगार छीन लिया।
गोरखपुर की घटना कोई नहीं भूला सकता है। मोदी जी कहते हैं कि यह आपदा है। यह आपदा नहीं हत्‍या है। बिहार के लोग समझदार हैं। मैं सिर्फ यही कहना चाहता हूं कि बिहार के सपूत दिनकर जी ने जो कहा था कि सिंहासन खाली करो, जनता अब आती है।
-राकंपा नेता तारिक अनवर ने संबोधित करते हुए कहा कि देश एक एेसे रास्‍ते पर चल रहा है, जिससे आने वाले दिनों में एकता और अखंडता खतरे में पड़ सकती है। लोग डरे हुए हैं। हम सब को एकसाथ आकर पूरे देश से भाजपा को भगाना है।
राजद अध्‍यक्ष लालू प्रसाद यादव के पुत्र और बिहार के पूर्व उपमुख्‍यमंत्री तेजस्‍वी यादव ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि बाढ़ के बावजूद भी जो जोश और जुनून दिख रहा है, उसके लिए अाप सब का अभिनंदन करते हैं। आपसब कहें तो अपने प्रिय चाचा नीतीश जी को भी हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। हमारे परिवार ने बड़े-बुजुर्गों का सम्‍मान करना सिखाया है। वो हमारे चाचा हैं और रहेंगे लेकिन अब अच्‍छे चाचा नहीं रहे।
नीतीश जी हमारे साथ छोड़ कर भले ही चले गये, लेकिन महागठबंधन टूटा नहीं है। असली जदयू के नेता हमारे चाचा शरद यादव हैं। हमारे प्रिय चाचा नीतीश जी का आज से उल्‍टी गिनती शुरू हो गया है। हम युवाओं को कहना चाहते हैं कि अाप लोग जो हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा लगाते थे, वो बड़-बड़ मोदी और गड़बड़ मोदी हैं।
आप सब लोग जानते हैं कि चाचा नीतीश ने कहा था कि संघ मुक्‍त भारत बनायेंगे लेकिन आज संघ के गोदी में जाकर बैठ गये। हे राम की जगह जयश्रीराम कहने लगे। गांधी जी के हत्‍यारों के साथ जा मिले।
हम भालगपुर गये तो धारा 144 लगा दिया गया। हमारे रूकने की व्‍यवस्‍था तक नहीं की। ये लोग डरे हुए लोग हैं। जनादेश की डकैती है। सृजन घोटाले में जदयू और भाजपा के नेता शामिल हैं। मुख्‍यमंत्री जी पर आर्म्‍सएक्‍ट का मुकदमा चल रहा है। दिल्‍ली हाईकोर्ट ने 20 हजार का जुर्माना लगा दिया है।
तेजस्‍वी तो बहाना था, सृजन का पाप छुपाना था, भाजपा की गोद में जाना था। हम डरने वाले नहीं हैं। लालू जी का खून है। इन लोगों ने जो भ्रष्‍टाचार किया है, वह सब सामने आयेगा। यह तो मात्र एक जिला का है। कुछ दिन पहले नीतीश जी भागलपुर गये थे ताकि सारी सबूतों को मिटा दिया जाये। सृजन में भी दो मौत हो चुकी है। जो मुख्‍यआरोपी था, उसकी रहस्‍यमतरीके से मौत हो गई।
हम पूछना चाहते हैं कि अब आपकी अंतरआत्‍मा कहां गई। क्‍या वह मोदी आत्‍मा था या कुर्सी आत्‍मा था। नीतीश कुमार ने हमारी पीठ में छुरा घोपने का काम किया। जनादेश का अपमान करने का काम किया। यह जनसैलाब उसी अपमान का बदला लेने आयी है।
पीएम मोदी ने बिहार के डीएनए पर सवाल उठाया था। नीतीश जी और उनके लोगों ने बाल और नाखून काटकर दिल्‍ली भेजे थे। क्‍या हुआ उस डीएनए की जांच का। उसे फिर से दिल्‍ली से लाकर पटना के म्‍यूजियम में रख दिया जाये।
आज हम भाजपा के लोगों से पूछना चा‍हते हैं कि क्‍या आपलोगों ने भी घोटाला किया था, जो मंत्रिमंडल से हटा दिया था। नीतीश कुमार जी ने सभी लोगों के साथ धोखा दिया है। बीजेपी के लोग अभी ही एफिडेविट पर लिखवा लें कि वे फिर से पलटी नहीं मारेंगे। ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे नीतीश ने ठगा नहीं।
जनता इस जनादेश के अपमान का बदला लेगी। हिन्‍दुस्‍तान का मेरा पहला परिवार होगा, जिसकी तीन-तीन पीढ़ीयों ने सीबीआइ का छापा देखा। जब तक हम देश से बीजेपी और आरएसएस को भगा नहीं लेते, चैन से नहीं बैठेंगे। जिस तरह से श्रीकृष्‍ण भगवान ने सुदामा की मदद की थी। उसी तरह से हमें कृष्‍ण बनकर पिछड़ों, दलितों और समाज के अंतिम पायदान पर बैठे लोगों की मदद करनी है।
तेजस्‍वी ने जनता से पूछा कि क्‍या हम भ्रष्‍टाचारी हैं। सही से पहचान लिजीए कि ईमानदारी का चोंगा पहने भ्रष्‍टाचारी आपको फिर से ठगने आयेगा। लेकिन आप सबको इस धर्म और अधर्म की लड़ाई में आप सब धर्मपुत्र को बचाने का काम करेंगे। देश बचाना है आपको, भाजपा को भगाना है आपको। हम जोड़ने की बात करते हैं, ये तोड़ने की बात करते हैं। हम न्‍याय की बात करते हैं, ये अन्‍याय की बात करते हैं। सब गोलबंद हो जाइये। हमें साथ मिलकर लड़ाई लड़नी है।
तेजस्‍वी ने केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कहा कि ये पूंजिपतियों की सरकार है। गरीब किसानों का कर्ज माफ नहीं करेगी। अडानी-अंबानी का कर्ज माफ करेगी।
मैं हाथ जोड़कर पीएम मोदी से कहता हूं आप प्रत्‍येक वर्ष 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने का काम कीजिए। गरीबों के खातों में 15-15 लाख रूपये देने का काम कीजिए।
ये मंडल और कमंडल की लड़ाई है। गरीब और अमीर की लड़ाई है। सब एकजुट होकर लड़ाई लड़ें। मैं कसम खाता हूं कि जब तक इन जुमलेबाजों को बिहार और दिल्‍ली से नहीं हटायेंगे तब तक चैन से नहीं बैठैंगे।
झारखंड विकास मोर्चा के नेता और झारखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने कहा कि देश संकट के दौर से गुजर रहा है। नरेंद्र मोदी की सरकार न तो कानून को मानती है और न हीं संविधान को। अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता पर खतरा मंडराने लगा है। हम क्‍या करेंगे और क्‍या लिखेंगे, सब वे तय करने लगे हैं। यदि उनके मन-मुताबिक काम नहीं करेंगे तो सीबीआइ का छापा मरवा देंगे।
झारखंड में तो वह यह भी तय कर चुके हैं कि आप किस भगवान की पूजा करेंगे। आप बिना पूछे कहीं जा नहीं सकते हैं। झारखंड में किसान भाजपा सरकार की मर्जी के बिना खेती भी नहीं कर सकते हैं। हम सब को लोकतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए एक साथ आकर आगे बढ़ना होगा। भाजपा की सरकार को पूरे देश से भगाना होगा, तभी लोकतंत्र जिंदा रहेगा।
राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने गुजरात में कहा कि हर जगह भाजपा पैसों का खेल कर रही है। गुजरात में जब कांग्रेस पैसे से न बिके और बैंगलोर में जा कर छिप गये तो वहां भी नरेंद्र मोदी ने छापा पड़वा दिया। जब बिहार में लालू यादव ने महागठबंधन बनाकर भाजपा विरोधी खेमों को मजबूत करने की कोशिश की तो यहां भी तोड़-फोड़ शुरू कर दी। 
नीतीश कुमार ने जनता के साथ विश्‍वासघात किया है। भाजपा के साथ नीतीश की सरकार अनैतिक सरकार है। इस सरकार को हटना चाहिए। लंबा आंदोलन चलेगा। जनादेश के साथ विश्‍वासघात हुआ, नैतिकता का गला घोंट दिया। आज भी भाजपा की हुकूमत में करोंड़ों लोगों का रोजगार छीन लिया। पढ़ाई चौपट है। स्‍कूल-कॉलेज में टीचर नहीं है। अस्‍पताल में डॉक्‍टर नहीं है। मध्‍यप्रदेश में किसानों पर गोलियां चलवायी गई। किसान आत्‍महत्‍या कर रहे हैं। महाराष्‍ट्र में आंदोलन हुआ है। 
देश पर खतरा है। यह जनसैलाब को देखो। पटना भरा हुआ है। पूरे देश से नेता लोग आये हुए हैं। हम सब मिलकर भाजपा को देश से हटाने का काम करेंगे। नौजवानों के भविष्‍य को उज्‍जवल बनाने का काम करेंगे। गांव-गांव में लोग बोल रहा है कि एक है आसाराम, दु गो है झासाराम। इन दोनों से सावधान रहना है। 
- मंच से जनता को संबोधित करते हुए समाजवादी नेता और राजद के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा कि नीतीश कुमार ने जनता को धोखा देने का काम किया। सब लोग जानते हैं कि लालू यादव के घर जो सीबीआइ  रेड हुआ, एफआइआर में तेजस्‍वी का नाम डाला गया, वह सब प्रायोजित था। नीतीश कुमार से जनता सवाल कर रही है कि आपने हमें धोखा क्‍यों दिया। 
- तृणमूल कांग्रेस की अध्‍यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी मंच पर पहुंच चुकी हैं। राबड़ी देवी और लालू यादव ने गुलदस्‍ता देकर उनका स्‍वागत किया।
- लालू यादव ने मंच से कहा कि यहां जितने लोग मौजूद हैं, उससे अधिक लोग और आ रहे हैं। सभी लोग अनुशासन बनाकर रहें। अभी इंद्र भगवान का कृपा है। 
- जदयू के बागी नेता शरद यादव भी मंच पर पहुंच चुके हैं। शरद यादव और लालू यादव गर्मजोशी के साथ मंच पर गले मिले। बालू लाल मरांडी भी मंच पर पहुंच चुके हैं। 
- राजद अध्‍यक्ष लालू प्रसाद यादव मंच पर पहुंच चुके हैं। उनकी एक झलक पाने को कार्यकर्ता बेचैन दिखे। चारो ओर लालू यादव जिंदाबाद का नारा गूंजने लगा। 
- राजद अध्‍यक्ष लालू प्रसाद यादव की बेटी और राज्‍यसभा सांसद मीसा भारती गांधी मैदान पहुंच चुकी हैं। उनके पहुंचते ही समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की। मीसा ने मंच से सभी लोगों का अभिवादन किया। उनके साथ उनकी मां राबड़ी देवी भी पहुंची।  
- कांग्रेस के प्रतिनिधि गुमान नबी आजाद पटना पहुंच चुका है। वहीं, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी पटना के गांधी मैदान में पहुंच चुके हैं। राबड़ी देवी ने गलदस्‍ता देकर उनका स्‍वागत किया। लालू यादव और अखिलेश ने एक साथ हाथ उठाकर चट्टानी एकता के संकेत दिये। 
- रैली में जाने के पहले बोले तेजस्‍वी, आज से नीतीश व भाजपा की उल्‍टी गिनती शुरू।
- रैली के लिए लालू प्रसाद घर ने निकल चुके हैं। उनके साथ राबड़ी देवी भी हैं। इसके करीब 15 मिनट पहले तेजस्‍वी यादव निकल चुके हैं। तेजप्रताप भी रवाना हो चुके हैं।
- रैली के लिए जा रहे राजद समर्थकों ने आयकर गोलंबर पर नकली स्‍टेनगन से फायरिंग की। हथियार बिलकुल असली जैसे होने के कारण अफरा-तफरी मच गई। पुलिस ने दो समर्थकों को हिरासत में लिया।
- रैली को लकर पटना में सड़कों पर राजद समर्थकों का हुजूम उमड़ पड़ा है। गांधी मैदान में भी भीड़ बढ़ने लगी है।
- रैली को लेकर नेताओं का पहुंचना आरंभ है। गांधी मैदान पहुंचे रमई राम की गेट पर सुरक्षा बलों से गाड़ी अंदर करने के सवाल पर नोंक-झाेंक हुई।

मन की बात' में जन धन योजना की प्रशंसा

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज आकाशवाणी से ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 35वें संस्‍करण के जरिए लोगों के साथ अपने विचार साझा किए। प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए सबसे पहले हरियाणा के हिंसा पर चिंता और नाराजगी जतायी और अहिंसा परमो धर्म की याद दिलायी। उन्‍होंने कहा आस्‍था के नाम पर हिंसा को बर्दाश्‍त नहीं किया जाएगा और दोषियों को कानून सजा देगी। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने स्‍वच्‍छता अभियान, जन धन योजना, राष्‍ट्रीय खेल दिवस, शिक्षक दिवस का भी जिक्र किया। इसके अलावा उन्‍होंने देशवासियों को गणेश चतुर्थी और ओणम के साथ र्इद उल जुहा की शुभकामनाएं दे ते हुए स्‍वच्‍छता पर भी जोर दिया। आधुनिकता को स्‍वच्‍छता से जोड़ते हुए उन्‍होंने कहा कि इन दिनों पर्यावरण के प्रति सजगता देखा जा सकता है। उन्‍होंने गणेश चतुर्थी में इकोफ्रेंडली गणेश की मूर्तियों की तारीफ की।
हरियाणा में हिंसा पर पीएम की नाराजगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में हरियाणा में नाराजगी जताते हुए कहा कि संप्रदाय, धर्म या व्‍यक्ति के नाम पर आस्‍था के आधार पर हिंसा की इजाजत नहीं दी जा सकती। कानून हाथ में लेने का इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। हर व्‍यक्ति को कानून का पालन करना होगा। पीएम नरेंद्र मोदी ने हरियाणा हिंसा पर चिंता जाहिर करते हुए यह बात कही। ऐसे में धर्म या किसी व्‍यक्ति के नाम पर हिंसा को कतई बर्दाश्‍त नहीं किया जाएगा। पीएम मोदी ने कहा कि हमारा देश अहिंसा परमो धर्म को मानने वाला देश है। यह महात्‍मा गांधी और सरदार पटेल का देश है। बाबा साहेब को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि उनके बनाए संविधान के अनुसार ही देश चल सकता है। ऐसे में कोई भी कानून से ऊपर नहीं हो सकता।
स्‍वच्‍छता मिशन के तीन साल पूरे
स्‍वच्‍छता मिशन के तीन साल पूरे होने की बात कहते हुए उन्‍होंने कहा, शौचालय की प्रतिशतता बढ़ी है। गुजरात के बाढ़ का जिक्र करते हुए उन्‍होंने वहां के बनासकांठा में स्‍वच्‍छता के सद्भाव का उदाहरण दिया। उन्‍होंने बताया कि जमीयत उल उलेमा हिंद ने मंदिर की सफाई की। उन्‍होंने इस साल दो अक्‍टूबर को स्‍वच्‍छता का संकल्‍प लेने की बात कही। उन्‍होंने इस साल दो अक्‍टूबर को स्‍वच्‍छता का संकल्‍प लेने की बात कही। उन्‍होंने देश वासियों से इस साल स्‍वच्‍छ 2 अक्‍टूबर बनाने की अपील करते हुए गांधी जयंती पर देश को चमकाने की बात कही।
पीएम ने जताया आभार
उन्‍होंने कहा, ‘मन की बात के इस कार्यक्रम के साथ देश के हर कोने से लाखों लोग जुड़ जाते हैं। मुझे पत्र लिखते हैं, मैसेज भेजते हैं, फोन पर संदेश देते हैं, मैं आपके संदेशों का इंतजार करता हूं क्‍योंकि आपकी बातों से सीखने का मौका मिलता है और आपके इसी योगदान के लिए आभार व्‍यक्‍त करता हूं।‘
कार्यक्रम के दौरान दिया जवाब
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, हम मेहनतकश लोगों से मोल भाव करते हैं। गरीब की इमानदारी पर शक करते हैं। बड़े रेस्‍त्रां और शोरूम में मोल भाव भी नहीं करेंगे।
खुले मैदान में खेलने जोर
29 अगस्‍त मेजर ध्‍यानचंद की जयंती की याद दिलाते हुए उन्‍होंने राष्‍ट्रीय खेल दिवस का जिक्र किया और युवा पीढ़ी से खेलों से जुड़ने को कहा। उन्‍होंने बताया कि खेल मंत्रालय की ओर से खेल को बढ़ावा देने वाले विशेष पोर्टल के शुरुआत की जाएगी। उन्‍होंने कंप्‍यूटर के बजाय खुले मैदान में खेलने पर जोर दिया। पीएम मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम को सुनने के लिए देशभर में स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) के केंद्रों में पहले से ही खास तैयारी की गई थी। 
बदलाव के संकल्‍प की अपील
इसके बाद 5 सितंबर को मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस पर बदलाव का संकल्‍प लेने की अपील करते हुए उन्‍होंने राधाकृष्‍णन के शिक्षण के प्रति समर्पण को याद किया।
जन धन योजना की प्रशंसा
उन्‍होंने आगे बताया, ‘28 अगस्‍त को जन धन योजना के तीन साल पूरे हो जाएंगे। यह दुनिया में चर्चा का विषय है। इस योजना से 30 करोड़ लोगों को जोड़ा गया है। इसमें गरीबों द्वारा 65 हजार करोड़ कर रकम जमा है। रुपे कार्ड से लोगों के बीच समानता का भाव जगा।‘

शनिवार, 26 अगस्त 2017

कांग्रेस के भाग्योदय का सही समय

मई 2014 में नरेंद्र मोदी के चलते कांग्रेस की जो सियासी-गत बनी, उससे मेरा गाल तो अभी तक झन्ना रहा है। लेकिन तब भी मैं आपको खम ठोक कर यह बताना चाहता हूं कि कांग्रेस के लिए हालात बेहद सुर्ख़रू हैं। जिन्होंने 1977-99 के बीच का कांग्रेसी-दौर देखा है, उनके दिल से पूछिए कि खा़कनशीन होना किसे कहते हैं? 2014 की 44 की तुलना में 34 साल पहल ’77 में, उत्तर भारत में घनघोर पराजय के बावजूद, कांग्रेस को मिल तो 189 सीटें गई थीं, लेकिन पार्टी के लिए संघर्ष आज से कहीं बहुत बड़ा था। आज, बावजूद इसके कि मोदी-सरकार कांग्रेस कांग्रेस, विपक्ष-मुक्त भारत की स्थापना के लिए अपने तरकश का हर तीर कमान पर चढ़ाए बैठी है, कम-से-कम कांग्रेस के शिखर-नेतृत्व को अपने बाल-बच्चों से यह नहीं कहना पड़ रहा है कि घर में रात बिताना उनके लिए महफू़ज़ नहीं है, सो, वे अपने दोस्तों के घर रात गुज़ारें। ’
77 में तो इंदिरा गांधी ने राजीव-सोनिया-प्रियंका-राहुल को 20 मार्च की रात बिताने के लिए इसलिए 12-विलिंगडन क्रीसेंट से बाहर भेजा था कि ख़बरें आ रही थीं कि चुनाव नतीजों के बाद भीड़ भेज कर परिवार को नुक़सान पहुंचाया जा सकता है।
इंदिरा जी अपने पिता जवाहरलाल नेहरू के साथ 17 साल प्रधानमंत्री-निवास में रहने और खुद 11 साल प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठने के बाद बेदखल हुई थीं। 28 बरस की सत्तानशीनी के बाद एकाएक अपने को पथरीली धरती पर पाना अच्छे-अच्छों के हौसले गुम करने को काफी है। इंदिरा जी अगर स्वाधीनता संग्राम की उपज न होतीं तो कांग्रेस को उस दौर के चक्रवात से बाहर ला पाना उनके लिए पता नहीं कितना संभव होता? कांग्रेस उस अंधी सुरंग से बाहर आ पाई तो इसलिए कि इंदिरा जी ने किसी भी हाल में हार नहीं मानी। शाह आयोग के ज़रिए हो रही अर्द्ध-नग्न बेताल-पच्चीसी से वे जम कर निपटीं। 
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि उस दौर में इंदिरा गांधी पर मणिपुर की अदालत में यह मुकदमा तक चला कि उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए चार मुर्गियां और दो अंडे चुराए थे! मोरारजी भाई ने उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया, मगर वे सिर तान कर खड़ी रहीं।
आज की कांग्रेस के सामने तो एक अदद नरेंद्र मोदी, एक अदद अमित शाह और एक अदद भारतीय जनता पार्टी ही हैं। कांग्रेस का मुक़ाबला आज सिर्फ़ दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादियों से है। वाम, समाजवादी और सेकुलर शक्तियां मौजूदा शासन और उसके हथकंडों के खि़लाफ़ खुल कर कांग्रेस के साथ मैदान में हैं। इंदिरा गांधी को तो जनसंघ जैसी घोर दक्षिणपंथी ताक़त के साथ-साथ समाजवाद के पुरोधा माने जाने वाले जयप्रकाश नारायण, चरण सिंह, जगजीवन राम, राजनारायण, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडिस और मधु लिमये जैसे दिग्गजों से भी निपटना पड़ा था। उनके सामने अटल बिहारी वाजपेयी जैसे प्रखर लोग थे। आज के मोदी और शाह तेजस्विता और साख में वाजपेयी का पासंग भी नहीं हैं।
आज की कांग्रेस सोनिया-राहुल के पीछे एकजुट खड़ी है। ’77 में बाद इंदिरा गांधी ने तो ऐसे-ऐसे चेहरों को रंग बदलते देखा था, जो उनके कसीदे पढ़ते न अघाते थे। देवकांत बरुआ और सिद्धार्थ शंकर राय जैसों ने अपनी बर्छियां खुल कर निकाल ली थीं। प्रत्यक्ष निशाने पर संजय गांधी थे, लेकिन शंतरंज की ढाई चाल इंदिरा जी की तरफ़ ही जा रही थी। कमलापति त्रिपाठी और यशवंत राव चह्वाण को मन-मन यह सब भा रहा था। उस साल मई की शुरुआत में जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ तो ब्रह्मानंद रेड्डी, सिद्धार्थ शंकर राय और डॉ. कर्ण सिंह के भीतर इस कुर्सी के लड्डू फूटते किस ने नहीं देखे थे? 
आज तो दो महीने बाद होने वाले पार्टी-संगठन के चुनाव में राहुल गांधी निर्विरोध अजेय हैं। कांग्रेस को भीतर से कोई खतरा है नहीं। बाहरी खतरे का सामना करने के लिए लालू प्रसाद यादव, मायावती, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और शरद यादव से लेकर वाम मोर्चा तक सब उसके साथ हैं। 
मोदी-शाह की भाजपा का हाल यह है कि शिवसेना और अकाली दल भी अपना मन मसोस रहे हैं। कुछ दूसरे सहयोगी दल भी संघ-परिवार के साम्राज्य-विस्तार की हवस की मार से छटपटा रहे हैं। आर्थिक मोर्चे पर मोदी-सरकार की नाकामियां खुल कर सामने आ गई हैं। मोदी के अजगरी-ख़्वाबों ने जिन लाखों नौकरियों को लील लिया है, उसकी आंच बेरोज़गार नौजवानों को परेशान करने लगी है। बढ़ती कीमतों का चाबुक ग़रीब और मध्यमवर्ग की पीठ पर सपाक-सपाक बरस रहा है। वे अपने बंधे हाथों को प्रतिकार के लिए खोलने की कशमकश के अंतिम छोर पर खड़े हैं।
’77 से ’79 के बीच का डेढ़ बरस ऐसे तमाम पन्नों का ग़वाह है, जब शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब इंदिरा जी देश में कहीं जाएं और उनकी कार पर जानलेवा पथराव न होता हो। मगर तब भी उन्हें न तो कोई बेलछी जाने से रोक पाया और न गुजरात के आदिवासी इलाक़ों में जाने से। हर प्रदेश में इंदिरा जी के लिए अपनी जान पर खेल जाने वाले कांग्रेसजन की इसलिए कभी कमी नहीं हुई कि खुद इंदिरा जी हर रोज़ अपनी जान से खेलती रहीं। संघ-कुनबे ने राहुल गांधी की कार पर पथराव करने की शुरुआत कर के परीक्षण-गुब्बारा उड़ाया है। यही वक़्त है कि इन पत्थरबाज़ों को राहुल ताल ठोक कर जवाब दें। मरजीवड़ों की एक फ़ौज उनके पीछे खड़ी हो जाएगी।
’77 के बाद एक बरस बीतते-बीतते इंदिरा गांधी की कांग्रेस ने उत्तर-भारत में अपनी वापसी का मज़बूत संकेत दे दिया था। 1978 में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ से हुए लोकसभा उप-चुनाव में कांग्रेस ने मोहसिना किदवई को उम्मीदवार बनाया और प्रचार के अंतिम तीस घंटों में इंदिरा जी ने 24 जनसभाएं संबोधित कर ऐसा तूफ़ान खड़ा किया कि जनता पार्टी के प्रत्याशी रामबचन यादव को जिताने के लिए हफ़्तों से गांव-गांव घूम-घूम रहे आपातकालीन-सितारे अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडिस और राजनारायण की किस्सागोई के परखच्चे उड़ गए। आज़मगढ़ तब चरण सिंह का गढ़ हुआ करता था। लेकिन उनकी बिछाई बिसात भी मतदाताओं ने नकार दी और नतीजा इंदिरा जी के पल्लू में डाल दिया। 
इस एक जीत ने कांग्रेस की कुंडली के खानों में तब ग्रहों को नए सिरे से स्थापित करने की शुरुआत कर दी थी। अपनी फ़जीहत की सबसे निचली पायदान पर पड़ी कांग्रेस ने तो इन साढ़े तीन वर्षों में अलग-अलग राज्यों के पंचायत, नगर-निकाय और विधानसभा के चुनाव-उपचुनावों में ठोस जीत हासिल कर चुकी है। तमाम दुरूहताओं के बावजूद लोकसभा का एक उप-चुनाव भी कांग्रेस ने जीता है। इसलिए कोई वजह नहीं कि वह मोदी-शाह की झोली से बार-बार निकल रहे 2019 के हौवे को अपने पर हावी होने दे। इस जुगल-जोड़ी की हल्ला-बोल शैली मानसिक दबाव बनाने भर की रणनीति है। 
अगले आम-चुनाव के पहले होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा के बांस उलटे लदवाने की स्थिति में है। मोदी-शाह के गृह-राज्य गुजरात में भाजपा की धमक को नकारने के दौर की शुरुआत ताज़ा राज्यसभा चुनाव नतीजों ने कर दी है। सुनने-पढ़ने में यह बात आज अजीब लग सकती है कि देश के घर-गलियां कांग्रेस के बिना बेतरह सूनापन-सा महसूस करने लगे हैं। लेकिन आप-हम देखेंगे की इस साल की सर्दियां शुरू होते-होते विपक्षी-अलाव के आसपास जमा होने वाली भीड़ सत्तासीनों को ठिठुराने लगेगी।

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

.ये है डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की पूरी कहानी

 हरियाणा और पंजाब समेत विभिन्न राज्यों में डेरा सच्चा सौदा का जितना प्रभाव है, उतना ही यह विवादों से भी घिरा रहा है। डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह और उनके प्रमुख अनुयायियों के खिलाफ अदालत और पुलिस थानों में करीब आधा दर्जन बड़े मामले चल रहे हैं। इसके बावजूद डेरा अनुयायियों की श्रद्धा कभी डेरा प्रमुख के प्रति प्रभावित होती दिखाई नहीं दी है। पंचकूला में सीबीआइ की विशेष अदालत ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम सिंह को साध्वी यौन शोषण में दोषी करार दिया है। 
डेरा सच्चा सौदा का इतिहास
उत्तर भारत में डेरा सच्चा सौदा सिरसा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह बड़ी ताकत हैं। 29 अप्रैल 1948 को तत्कालीन पंजाब के सिरसा में बलोचिस्तीनी साधू शाह मत्तन जी ने डेरा डाला, जो बाद में मस्ताना बाबा के नाम से जाने गए। उन्हीं ने अपने डेरे को सच्चा-सौदा का नाम दिया। उनका सूफी फकीर जैसा स्वाभाव था। नतीजतन लाखों लोग उनसे जुड़ते चले गए। 1960 में सतनाम सिंह डेरा प्रमुख बने। 13 सितंबर 1990 में गुरमीत सिंह (वर्तमान डेरा प्रमुख) ने गद्दी संभाली।
गुरमीत राम रहीम सिंह का साम्राज्य
गुरमीत राम रहीम सिंह का जन्म 15 अगस्त, 1967 को राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के गुरूसर मोदिया में जाट सिख परिवार में हुआ। इन्हें महज सात साल की उम्र में ही 31 मार्च 1974 को तत्कालीन डेरा प्रमुख शाह सतनाम सिंह जी ने ये नाम दिया था। 23 सितंबर, 1990 को शाह सतनाम सिंह ने देशभर से अनुयायियों का सत्संग बुलाया और गुरमीत राम रहीम सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।गुरमीत राम रहीम सिंह अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। डेरा प्रमुख की दो बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी चरणप्रीत और छोटी का नाम अमरप्रीत है, जबकि उन्होंने इन दो बेटियों के अलावा एक बेटी को गोद लिया हुआ है। गुरमीत राम रहीम के बेटे की शादी बठिंडा के पूर्व एमएलए हरमिंदर सिंह जस्सी की बेटी से हुई है। इनके सभी बच्चों की पढ़ाई डेरे की ओर से चल रहे स्कूल में हुई है। इनके दो दामाद रूहेमीत और डॉ. शम्मेमीत हैं।शुरुआत में डेरा का प्रभाव हरियाणा के सिरसा, फतेहबाद, हिसार और पंजाब के मनसा, मुक्तसर और बठिंडा तक ही सीमित था, लेकिन 1990 में जब बाबा राम रहीम डेरा प्रमुख बने तो इसका विस्तार तेज हुआ। डेरा सच्चा सौदा 104 तरह के सामाजिक कार्यक्रम चलाने का दावा करता है। डेरा के मुताबिक, प्राकृतिक आपदा में लोगों की मदद करना, अस्पतालों को देहदान, रक्त दान करना, स्वच्छता अभियान चलाना, वृक्षारोपण करना, भ्रूण हत्या और नशे के मुक्ति सबसे प्रमुख कार्य हैं। डेरा का यह भी दावा है कि अनाथ बच्चों को अपनाने और वेश्यावृत्ति उन्मूलन के क्षेत्र में भी हम काम करते हैं।
65 साल से चल रहा है डेरा का आश्रम
हरियाणा के सिरसा जिले में डेरा का आश्रम 65 सालों से चल रहा है। डेरा का साम्राज्य विदेशों तक फैला हुआ है। देश में डेरा के करीब 46 आश्रम हैं और उसकी शाखाएं अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड से लेकर ऑस्ट्रेलिया और यूएई तक फैली हुई हैं। दुनियाभर में इसके करीब पांच करोड़ अनुयायी हैं, जिनमें से 25 लाख अकेले हरियाणा में ही मौजूद हैं।
रॉक स्टार गुरमीत राम रहीम सिंह
अपने समर्थकों के बीच नाचते-गाते और झूम-झूमकर थिरकते बाबा राम रहीम का नाम यूं तो पिछले करीब दो दशकों से देश और विदेश में गूंज रहा है। यही कारण है कि वे अपने अनुयायियों के बीच एक संत होने के साथ एक 'रॉक स्टार' भी हैं। राजनीति के क्षेत्र में भी पंजाब और हरियाणा में डेरा को एक बड़ी ताकत माना जाता है और यही वजह है कि ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव तक सभी दलों के नेता बाबा से समर्थन की आस लगाकर उनकी शरण में आते रहे हैं।
MSG के नाम से कारोबार में डेरा सच्चा सौदा
बाबा रामदेव के पतंजलि प्रोडक्ट्स की तरह ही राम रहीम भी MSG नाम से प्रोडक्ट्स बाजार में बेचते हैं। MSG के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर में 200 स्टोर हैं। कंपनी के प्रोडक्ट्स में दाल, अनाज, चावल, आटा, देसी घी, मसाले, अचार, जैम, शहद, मिनरल वॉटर और नूडल्स शामिल हैं। बाबा के पास हरियाणा के सिरसा में करीब 700 एकड़ की खेती की जमीन है। वो एक गैस स्टेशन और मार्केट कॉम्पलेक्स भी चलाते हैं।
 
शाह सतनाम सिंह मस्ताना की विरासत को गुरमीत राम रहीम सिंह ने अपने कार्यकाल में कई गुना बढ़ा दिया। उन्होंने सर्वधर्म के प्रतीक के रूप में अपने नाम के साथ राम, रहीम, सिंह जोड़ा। जब डेरा प्रमुख ने सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का वेष धारण किया तो सिखों का गुस्सा फूट पड़ा। फलस्वरूप पंजाब में कई दिनों तक सांप्रदायिक तनाव बना रहा। 
डेरे से जुड़े इन विवादों ने भी पाई राष्ट्रीय सुर्खियां
- 24 अक्टूबर 2002 को सिरसा के सांध्य दैनिक के संपादक रामचंद्र छत्रपति पर कातिलाना हमले का आरोप। छत्रपति को घर से बुलाकर पांच गोलियां मारी गई। साध्वी से यौन शोषण और रणजीत की हत्या पर खबर प्रकाशित करने के कारण उन पर हमला हुआ।

- 400 साधुओं को नपुंसक बनाने के मामले की भी चल रही सीबीआई जांच। साधुओं को ईश्वर से मिलाने के नाम पर उनके अंडकोष काटकर नपुंसक बनाए जाने का आरोप है। सीबीआई इस मामले की सात से ज्यादा सील बंद रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश कर चुकी है। हंसराज चौहान की याचिका पर केस दर्ज हुआ। डेरे के पूर्व मैनेजर फकीर चंद 1991 में गायब हो गए थे। हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया गया कि फकीर चंद को डेरा प्रमुख ने गायब कराया। यह मामला भी सीबीआई के पास जांच के लिए आया।
- पंजाब पुलिस ने डेरा प्रमुख के खिलाफ धार्मिक भावना आहत करने के आरोप में बठिंडा में मामला दर्ज किया। खालसा दीवान और श्रीगुरु सभा बठिंडा के अध्यक्ष राजिंदर सिंह सिद्धू की शिकायत पर केस दर्ज हुआ।
- मिलिट्री इंटेलीजेंस की रिपोर्ट पर हाईकोर्ट ने लिया था संज्ञान। आरोप था कि पूर्व सैनिक डेरे में अनुयायियों को सैनिक ट्रेनिंग दी जा रही है।                                                                                                                          साध्वी यौन शोषण मामले में डेरा सच्चा
डेरा प्रमुख पर आने वाले सीबीआईकोर्ट के फैसले के मद्देनजर हरियाणा और पंजाब सरकारों की सांसें फूली हुई हैं। विपरीत फैसला आने की स्थिति में डेरा समर्थकों को काबू करना जहां हरियाणा सरकार के लिए चुनौती होगा, वहीं कानून व्यवस्था बनाए रखने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं। देश की आजादी के करीब एक साल बाद अस्तित्व में आए इस डेरे का हरियाणा और पंजाब की राजनीति में पूरा दखल है। इन दोनों राज्यों के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में भी डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह के अनुयायी काफी तादाद में फैले हुए हैं।
पिछले कई चुनाव में डेरा प्रमुख के एक इशारे ने हरियाणा और पंजाब में सरकारें बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई है। चुनाव में किस पार्टी का समर्थन करना है और किसकी अनदेखी की जानी है, इसका निर्णय हालांकि डेरा प्रमुख स्वयं करते हैं, लेकिन इशारा डेरे की राजनीतिक विंग की तरफ से आता है, जिसके बाद डेरा अनुयायी मतदान करते हैं। पिछले चुनाव में हरियाणा में डेरे ने भाजपा का समर्थन किया था, जिसके बाद दो दर्जन सीटों पर भाजपा उम्मीदवार जीत की स्थिति में पहुंच पाए थे।
हरियाणा और पंजाब में डेरे का जबरदस्त प्रभाव
हरियाणा और पंजाब दो राज्य ऐसे हैं, जहां डेरे का पूरा दखल और प्रभाव है। 2007 के विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने पंजाब में कांग्रेस का समर्थन कर मालवाक्षेत्र में इस पार्टी को बढ़त दिलाई थी। 2014 के विधानसभा चुनाव में डेरे ने हरियाणा में भाजपा का समर्थन किया था, जबकि पंजाब में भी इसी पार्टी के प्रति नरम मिजाज दिखाया। पंजाब के मालवा क्षेत्र में 13 जिले आते हैं, जिनमें पांच दर्जन विधानसभा सीटें हैं।
हरियाणा के नौ जिलों की करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर डेरे का पूरा दखल रखता है। हरियाणा में 15 से 20 लाख अनुयायी डेरे से जुड़े हैं, जिनके नियमित सत्संग होते हैं। ऐसे में यदि कोई भी सरकार विपरीत कार्रवाई करती है तो उसे राजनीतिक नुकसान का डर हमेशा सताता रहता है। प्रदेश में सिरसा, हिसार, फतेहाबाद, कैथल, जींद, अंबाला, यमुनानगर और कुरुक्षेत्र जिले ऐसे हैं, जहां डेरा सच्चा सौदा का पूरा असर महसूस किया जा सकता है।

कर्पूरी, नीतीश फार्मूले पर मोदी!

अन्य पिछड़ी जातियों में वर्गीकरण कराने और क्रीमी लेयर के दायरे को छोटा करने का केंद्र सरकार का फैसला इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्पूरी ठाकुर और नीतीश कुमार के मॉडल की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। बिहार में सबसे पहले कर्पूरी ठाकुर ने एनेक्सचर-1 और एनेक्सचर- 2 की जातियों का विभाजन किया था और आरक्षण के भीतर आरक्षण देने का फैसला किया था। बाद में नीतीश कुमार ने इस फार्मूले को आगे बढ़ाया और अति पिछड़ी जातियों का अलग समूह बना कर उन्हें आरक्षण के भीतर आरक्षण दिया।
ध्यान रहे बरसों से इस बात की मांग उठती रही है कि अन्य पिछड़ी जातियों में जो आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत जातियां हैं उनको आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है और बिल्कुल हाशिए पर की जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। इसे ठीक करने के लिए केंद्र सरकार ने वर्गीकरण करने का फैसला किया है। इसके लिए एक कमेटी बनाई जाएगी, जो इस बात की भी समीक्षा करेगी कि किन जातियों को आरक्षण का ज्यादा फायदा मिल रहा है और कौन सी जातियां इसके लाभ से वंचित हैं।
बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और काफी हद तक मध्य प्रदेश में भी यादव और कुर्मी ऐसी जातियां हैं, जिनको आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा मिला है। अगर सरकार वर्गीकरण करके आरक्षण के लाभ से वंचित जातियों को आरक्षण के भीतर आरक्षण का फैसला करती है तो इन दो जातियों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। भाजपा पहले से ही यादव वोट बैंक के मुकाबले अति पिछड़ी जातियों के वोट बैंक पर ध्यान रही थी। केंद्र सरकार के इस फैसले से भाजपा की वह राजनीति आगे बढ़ेगी। इसी तरह क्रीमी लेयर की सीमा छह लाख से बढ़ा कर आठ लाख सालाना कर दी गई है। इससे आरक्षण के दायरे में आने वालों की संख्या बढ़ जाएगी।
बिहार में नीतीश कुमार ने अति पिछड़ी और महादलित का विभाजन किया था। लेकिन केंद्र सरकार ने दलितों में आरक्षण के भीतर आरक्षण का कोई प्रयास नहीं किया है। यानी केंद्र में महादलित किस्म का कोई अलग वर्ग नहीं बनेगा। इसका भी कारण राजनीतिक बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि रामविलास पासवान, रामदास अठावले, जीतन राम मांझी जैसे तमाम दलित नेताओं को साथ लेकर और मायावती को कमजोर करते हुए भाजपा पूरे दलित वोट की राजनीति कर रही है। इसलिए वहां वर्गीकरण के बारे में नहीं सोचा गया है। इस तरह से भाजपा की राजनीति का फोकस सवर्ण, अति पिछड़ी जातियां और दलित, आदिवासी पर दिख रहा है।                                                  नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने वादा भारत की नव-आकांक्षाओं को पूरा करने का किया था। मकसद बताया गया था- जाति-मजहब की संकीर्ण सोच से लोगों को निकालना। भरोसा बंधाया गया था कि सरकार की ‘सबका साथ-सबका विकास’ नीति से ऐसी खुशहाली आएगी कि लोगों को ऐसी सोच में जकड़े रहने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तब दशकों से चला रहा आरक्षण का विमर्श अपने-आप अप्रासंगिक हो जाएगा। लेकिन अब तीन साल बाद जाहिर यह हो रहा है कि एनडीए सरकार न सिर्फ उसी विमर्श में उलझ गई है, बल्कि समाज को भी उसी में उलझाए रखने में अपना फायदा देख रही है। तो अन्य पिछड़ी वर्गों (ओबीसी) को मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत मिले आरक्षण पर वह “नीतीश फॉर्मूला” लागू करना चाहती है। वैसे पिछड़ी जातियों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर बांटने का ये तरीका नीतीश कुमार का ढूंढा हुआ नहीं है।
1978 में कर्पूरी ठाकुर ने इसे बिहार में आजमाया था। 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट पर अमल के बाद इसे जरूर सबसे बहुप्रचारित रूप में नीतीश कुमार लागू किया। वहां उन्होंने ओबीसी के अंदर अति-पिछड़ी जातियों की एक अलग श्रेणी बनाई। इसी तरह दलितों के भीतर महादलित की श्रेणी बनाई गई। इन दोनों समुदायों को मिले आरक्षण को उन जातियों की जनसंख्या के अनुपात में बांट दिया गया। तब से कई राज्य यह फॉर्मूला लागू कर चुके हैं। अब एनडीए सरकार उसे राष्ट्रीय स्तर पर अमल में लाना चाहती है। इसके लिए एक आयोग के गठन का फैसला हुआ है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने बाकी पिछड़ी जातियों को यादवों और शेष दलित जातियों को जाटवों के खिलाफ गोलबंद कर उसका खूब चुनावी लाभ उठाया था। अनुमान लगाया जा सकता है कि ताजा कदम उसी ‘सफल प्रयोग’ से प्रेरित है।
रणनीति है कि जातियां एक दूसरे के खिलाफ उलझी रहें और उसके भावावेग में मतदान करती रहें। क्या यह विकास और जातिवाद से उबरने का रास्ता है? इसके साथ ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ओबीसी आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर की आय सीमा को बढ़ाकर छह से आठ लाख रुपए सालाना करने का फैसला किया है। यह भी विवादास्पद है। क्या हर महीने 66,000 रुपए कमाने वाले परिवार को गरीब माना जाएगा? क्या उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए? पूर्व सरकारें ऐसे फैसले लेती थीं, तो उसे वोट बैंक की राजनीति कहा जाता था। अब इसे क्या कहा जाना चाहिए?

गुरुवार, 24 अगस्त 2017

मौलिक अधिकार बना निजता का अधिकार, इससे क्या फर्क पड़ेगा

अब किसी मामले में अगर आधार से जुड़ी या कोई अन्य निजी जानकारी आपसे मांगी जाती है तो आप आपत्ति जता सकते हैं।                                                                                                                                                    भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कई मौलिक अधिकार दिए हैं। बहस इस बात को लेकर थी कि क्या निजता का अधिकार, मौलिक अधिकारों में आता है या नहीं। आखिरकार मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से इसे अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना है।

इस फैसले का आधार से कोई संबंध नहीं
सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का आधार से कोई संबंध नहीं है। 9 जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सिर्फ निजता के अधिकार पर अपना फैसला सुनाया है। इस बेंच में आधार पर कोई बात नहीं हुई। आधार निजता के अधिकार का हनन है या नहीं, इस पर तीन जजों की एक अन्य बेंच सुनवाई करेगी।

क्या हैं मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं। इन मौलिक अधिकार को व्यक्ति के विकास के लिए अहम माना जाता है। 
1. समानता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के खिलाफ अधिकार
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. सांस्कृति और शिक्षा का अधिकार
6. संवैधानिक उपचार का अधिकार
7. निजता का अधिकार

इन जजों ने सुनाया फैसला
इन नौ जजों की बेंच ने निजता को मौलिक अधिकार माना।
1. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर
2. जस्टिस चमलेश्वर
3. जस्टिस आरके अग्रवाल
4. जस्टिस एसए बोबड़े
5. जस्टिस एएम सापरे
6. जस्टिस आरएफ नरिमन
7. जस्टिस जीवाई चंद्रचूड़
8. जस्टिस संजय किशन कौल
9. जस्टिस एस एब्दुल नजीर

'सुप्रीम' फैसले का क्या फर्क पड़ेगा?                                                                                               इस मामले में jagjahirnews ने भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी से बात की। उन्होंने बताया कि अब किसी मामले में अगर आधार से जुड़ी या कोई अन्य निजी जानकारी मांगता है तो आप आपत्ति जता सकते हैं। अगर आपको लगता है कि फलां व्यक्ति आपके निजी जीवन में दखल दे रहा है तो आप कोर्ट में जाकर याचिका पेश कर सकते हैं और कोर्ट उस पर सुनवाई करेगी। इसमें आंखों का रंग, डीएनए, ब्लड से जुड़ी जानकारी, फिंगर प्रिंट आदि सरकार अपने पास रख सकती है। सरकार हमें विश्वास दिलाएगी कि यह डाटा चोरी नहीं होगा और हमारी निजता भंग नहीं होगी।

सरकारी योजनाओं में निजी जानकारी का क्या?
सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी अब आधार जरूरी हो गया है। आप नाम, पता देने से तो इनकार नहीं कर सकते, लेकिन स्वामी के अनुसार अन्य जानकारियां देने से उपभोक्ता मना कर सकते हैं। विवाद की स्थिति में उपभोक्ता अदालत की शरण में जा सकता है और कह सकता है कि हमें विश्वास दिलाएं कि हम जो जानकारी दे रहे हैं वह किसी और के पास नहीं जाएगा। 

मोबाइल फोन नंबर से आधार लिंक करना जरूरी है?
सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार बना दिया है तो ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जिस तरह से निजी टेलिकॉम कंपनियां मोबाइल नंबर को आधार से लिंक कराने की बात कर रही हैं उसका क्या होगा। इस मामले में सुब्रह्मण्यम स्वामी में कहा कि जब आधार पर ही चुनौती हो जाएगी तो इन कंपनियों को भी रुकना पड़ेगा।

निजता की श्रेणी कैसे तय होगी?
निजता की श्रेणी को लेकर भी सवाल हैं। क्योंकि हो सकता है किसी व्यक्ति के लिए उसकी कोई खास जानकारी निजता की श्रेणी में आती हो, लेकिन दूसरों के लिए नहीं। ऐसे में निजता की श्रेणी कैसे तय हो। इस बारे में भी स्वामी ने Jagran.Com से बात करते हुए कहा कि इसके बारे में भी अदालत ही तय करेगी।

संविधान में नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य भी हैं
संविधान ने नागरिकों को मौलिक अधिकार ही नहीं मौलिक कर्तव्य भी दिए हैं। कई बार हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि मौलिक अधिकारों की बात तो करते हैं, लेकिन जब मौलिक कर्तव्यों की बात आती है तो बगले झांकने लगते हैं। आइए जानें संविधान से हमें कौन से मौलिक कर्तव्य मिले हैं...

1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण रखे।
4. देश की रक्षा करे।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे।
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे।
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे।
11. माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन). 

तीन तलाकः भाजपा का ट्रंप कार्ड?

भाजपा के कई नेता, कार्यकर्ता और सोशल मीडिया में पार्टी के समर्थक मान रहे हैं कि तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला अगले चुनाव में भाजपा के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है। इस आधार पर यह उम्मीद भी की जा रही है कि नौ करोड़ मुस्लिम महिलाओं में से एक बड़ा हिस्सा भाजपा को वोट कर सकता है। हालांकि मुस्लिम मानस को समझते हुए इसे एक सदिच्छा से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है। राजीव गांधी ने तो शाहबानो मामले में आधी नहीं पूरी मुस्लिम आबादी को पटाने का दांव चला था, लेकिन बड़ी मुस्लिम आबादी ने वीपी सिंह को वोट दे दिया था।
बहरहाल, तीन तलाक के फैसले का भाजपा को क्या फायदा मिलता है, यह इस पर निर्भर करेगा कि आगे इस पर किस किस्म की राजनीति होती है। अगर भाजपा इसे समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ने का पहला कदम बता कर प्रचार करने में कामयाब रही तो हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का उसको फायदा हो सकता है। जैसा कि फैसले के तुरंत बाद केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों और भाजपा के नेताओं ने कहा कि यह समान नागरिक संहिता की शुरुआत है। भाजपा ने जोर देकर कहा कि समान नागरिक संहिता उसके एजेंडे में हमेशा रहा है और आगे भी रहेगा। सो, इस पर ध्रुवीकरण की राजनीति हो सकती है।
अगर सरकार को कानून बनाने का मौका मिलता तो उसे ज्यादा फायदा होता। लेकिन सर्वोच्च अदालत की संविधान पीठ के बहुमत के फैसले ने अपने आप कानून का रूप ले लिया है। इसलिए भी भाजपा और सरकार ने संकेत किया है कि वह कोई कानून नहीं बनाएगी। लेकिन दूसरी ओर मुस्लिम संगठन इस पर अपना सम्मेलन करेंगे। कई संगठन अभी से विरोध करने लगे हैं। अगर उन्होंने इसे लागू करने की बजाय शरीयत की सर्वोच्चता का राग अलापा तो उससे भी भाजपा को फायदा होगा।

बुधवार, 23 अगस्त 2017

जीएसटी के कारण देश के 11 राज्यों को हो सकता है नुकसान

इस वित्त वर्ष जीएसटी के कारण हुए राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए देश के कुछ राज्यों को भारी मुआवजा देना पड़ सकता है
 वित्त वर्ष 2018 के दौरान सभी राज्यों का कुल रेवेन्यू 16.6 फीसद सीएजीआर की दर से बढ़ रहा है, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से देश के 11 राज्यों को 9,500 करोड़ रुपए का मुआवजा दिए जाने की जरूरत होगी। यह बात एक हालिया रिपोर्ट में कही गई है।
इंडिया रेटिंग की एक नोट में कहा गया, “नई कर व्यवस्था जीएसटी के अंतर्गत सभी राज्य संयुक्त रूप से वित्त वर्ष 2018 में वित्त वर्ष 2016 के मुकाबले 16.6 फीसद के सीएजीआर से बढ़ेंगे, लेकिन अलग अलग राज्यों के लिहाज से यह तस्वीर अलग होगी। ऐसे में 11 राज्यों को केंद्र सरकार की ओर से 9,500 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दिए जाने की जरूरत होगी।”
किन राज्यों को देना पड़ेगा मुआवजा:
वित्त वर्ष 2018 में आधारभूत परिदृश्य के तहत किसी भी राजस्व हानि के लिए आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल, एमपी, ओडिशा, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों को केंद्र की ओर से 5,600 करोड़ रुपये का मुआवजे दिए जाने की जरुरत होगी। जबकि छोटे राज्य जैसे गोवा, जम्मू एवं कश्मीर और झारखंड जैसे राज्यों को 3,900 करोड़ रुपए का मुआवजा दिए जाने की जरुरत पड़ेगी।
यह इसलिए जरूरी है क्योंकि जीएसटी लागू होने के कारण वित्त वर्ष 2018 में राज्यों का खुद का राजस्व गिरकर 15.5 फीसद तक पहुंच सकता है जबकि आधारभूत परिदृश्य 16.6 फीसद का है, क्योकि वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों पर ही इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा उपलब्ध है।
इसमें आगे कहा गया कि इस लिहाज से वित्त वर्ष 2018 में कुल मुआवजा बढ़कर 9,500 करोड़ रुपए (आधारभूत परिदृश्य 5,600 करोड़ रुपए) तक पहुंच जाएगा। यह उन अवधारणाओं पर आधारित है कि वस्तु एवं सेवाओं के अंतिम उत्पादन में 10 फीसद हिस्सा सेवाओं का है।

...जब राजीव गांधी सरकार ने SC से मिली जीत को इस तरह बदला था हार में

नई दिल्‍ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक पर छह महीने के लिए रोक लगा दी है और केंद्र सरकार से इस पर कानून बनाने के लिए कहा है। मुस्लिम महिलाओं के लिए यह एक बड़ी जीत है, जिसकी शुरुआत काफी पहले हो गई थी। इंदौर की शाहबानो ने इस संघर्ष की शुरुआत की थी। शाहबानो को उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने वर्ष 1978 में तलाक दे दिया था।
तलाक के वक्त शाहबानो के पांच बच्चे थे। इनके भरण-पोषण के लिए उन्होंने निचली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन 1980 में मुस्लिम समाज के लगभग सारे पुरुष शाहबानो की अपील के खिलाफ थे। इसी का ख्याल करते हुए तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला अधिनियम पारित कर दिया। इसके आधार पर शाहबानो के पक्ष में सुनाया गया फैसला कोर्ट ने पलट दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने जब शाह बानो के पति मोहम्मद अहमद खान से पूछा कि आखिर वे भरण-पोषषण भत्ता क्यों नहीं देना चाहते, तो खान ने कहा, 'मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाकशुदा महिलाओं को ताउम्र भरण-पोषषण भत्ता दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है।' वहीं बानो के वकील का तर्क था, 'दंड प्रक्रिया संहिता देश के हर नागरिक (चाहे वह किसी भी धर्म का हो) पर समान लागू होती है।' कोर्ट ने शाह बानो की दलील मानते हुए 23 अप्रैल 1985 को उनके पक्ष में फैसला दे दिया। मुस्लिम धर्मगुरओं ने फैसले के विरोध में आवाज बुलंद कर दी। भारी दबाव के चलते तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को मुस्लिम महिला अधिनियम पारित करना पड़ा। इस कारण शाह बानो जीतकर भी हार गई।
शाहबानो के बेटे जमील अहमद ने साझा की यादें
जमील बताते हैं, '38 साल पहले जब कोर्ट ने अम्मी (शाह बानो) को भरण-पोषण के 79 रुपए अब्बा से दिलवाए थे, तो लगा था जैसे दुनियाभर की दौलत मिल गई। जो खुशी उस समय मिली थी, वही आज फिर महसूस हो रही है। जब फैसले को लेकर विवाद बढ़ने लगा तो अम्मी इतनी आहत हुई कि उन्होंने भरण पोषण की राशि ही त्याग दी। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराकर मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला सुनाया है। जो मशाल 38 साल पहले अम्मी ने जलाई थी, उसकी रोशनी आज पूरे देश में फैल रही है।'
वकील थे शाहबानों के पति
जमील ने बताया कि अब्बा एमए खान जाने-माने वकील थे, उनकी दो पत्नियां थीं। इनमें मेरी अम्मी शाह बानो बड़ी थीं। दो पत्नियां होने से वालिद सामंजस्य नहीं बैठा पाते और विवाद होता। इसी के चलते 1978-79 में वालिद ने अम्मी को तलाक दे दिया। वह बच्चों को लेकर अलग रहने लगीं। वालिद शुरुआत में तो खाने-खर्चे का इंतजाम कर देते थे, लेकिन बाद में ध्यान देना बंद कर दिया। परेशान होकर अम्मी ने जिला कोर्ट में भरण-पोषण केस दायर कर दिया। एक मुस्लिम महिला का भरण-पोषषण के लिए कोर्ट तक पहुंचना समाज को नागवार गुजरा। विरोध होने लगा। लोग ताने कसने लगे। अम्मी ने हिम्मत नहीं हारी, वे लड़ीं और कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए अब्बा को हुक्म दिया कि वे हर महीना 79 रुपए खर्च उन्हें दें। अब्बा ने जिला कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को कायम रखा और रकम को बढ़ा दी। अब्बा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कोर्ट के फैसले को जस का तस रखते हुए भरण-पोषषण कायम रखा।
जमकर हुआ विरोध, पीएम ने मिलने बुलाया 
जमील अहमद ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरे देश में विरोध हुआ। किसी मुस्लिम महिला को भरण-पोषषण दिलाने का यह एक अहम फैसला था। विरोध कर रहे लोगों का कहना था कि शरियत के हिसाब से तलाक के बाद भरण-पोषण का कोई रिवाज नहीं है। मामला इतना बढ़ा कि प्रधानमंत्री तक को दखल देना पड़ा। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अम्मी शाह बानो को मिलने बुलाया। मैं उनके साथ गया। मुलाकात करीब आधे घंटे की थी। बाद में सरकार ने मुस्लिम महिला प्रोटेक्शन एक्ट का मसौदा तैयार किया। विवादों से अम्मी इतनी आहत हुईं कि उन्होंने कोर्ट में जीतने के बावजूद भरण-पोषण की रकम त्याग दी।

..... मुस्लिम महिलाओं को आजादी नहीं नसीब होगी।

तसलीमा ने कहा तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुसलिम लॉ बोर्ड के गाल पर तमाचा हो सकता लेकिन इससे मुस्लिम महिलाओं को आजादी नहीं नसीब होगी।                                                                                    कोलकाता, [जेएनएन]। जब तक समानता पर आधारित एकरूप नागरिक संहिता (यूनीफार्म सिविल कोड) को लागू नहीं किया जाएगा, तब तक मुस्लिम महिलाओं को आजादी नहीं मिलेगी। तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बांग्लादेश की विवादास्पद लेखिका तसलीमा नसरीन ने इसी तरह प्रतिक्रिया जाहिर की।
उन्होंने कहा-'तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुसलिम लॉ बोर्ड के गाल पर तमाचा हो सकता है लेकिन इससे मुस्लिम महिलाओं को आजादी नहीं नसीब होगी।' मुस्लिम लॉ बोर्ड की आलोचना करते हुए तसलीमा ने कहा-'सिर्फ धर्म के आधार पर कानून तैयार नहीं किए जा सकते। एक आधुनिक देश में धर्म पर आधारित कानून का वजूद नहीं होना चाहिए। नियमों को मानवाधिकारों को ध्यान में रखकर समानता एवं इंसाफ के आधार पर लागू किया जाना चाहिए। कानून एकरूप होना चाहिए। इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
महिलाओं को शिक्षित कर स्वतंत्र बनाया जाना चाहिए।' तसलीमा ने आगे कहा-'मैं इस बात को लेकर आश्चर्यचकित हूं कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक देश में तीन तलाक अब तक वजूद में क्यों था। यह सिर्फ इस दिशा में पहला कदम है और यह इतना धीमा नहीं होना चाहिए था। लोकतंत्र में पुरूषों एवं महिलाओं के लिए समान अधिकार होने चाहिए।'

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

भारत में दो ध्रुवीय राजनीति की नींव पड़ गई है।

भारत में दो पार्टियों वाली राजनीति की सदिच्छा बहुत पहले से जताई जाती रही है। अमेरिका की तरह दो दलीय प्रणाली की बात गाहेबगाहे उठती रही है। भारत जैसे विविधता वाले देश में यह तो संभव नहीं है कि सिर्फ दो पार्टियां बचें और बाकी खत्म हो जाएं या इन्हीं दो पार्टियों में विलीन हो जाएं। परंतु यह संभावना अब साकार होती दिख रही है कि भारत में दो ध्रुवीय राजनीति हो जाए। ऐसा भी हो जाता है तो यह बहुत बड़ी बात होगी क्योंकि इससे दो दलीय राजनीति की ओर बढ़ने का रास्ता खुलता है।
भारत में दो ध्रुवीय राजनीति की नींव पड़ गई है। इसे गठबंधन की राजनीति की अनिवार्य परिणति कहा जा सकता है। चुनाव बाद गठबंधन करके सरकार बनाने वाली पार्टियां अब चुनाव पूर्व गठबंधन पर जोर देने लगी हैं और उसके वैचारिक आधार को रेखांकित किया जाने लगा है। इस लिहाज से बिहार में भाजपा के विरोध में 2015 में हुए महागठबंधन को प्रस्थान बिंदु माना जा सकता है। संभवतः पहली बार राज्य के स्तर पर इस तरह का प्रयोग हुआ था। केंद्रीय स्तर पर कई बार कांग्रेस के खिलाफ पार्टियां गठबंधन करके लड़ी हैं, लेकिन तब भी वैचारिक आधार पर कुछ पार्टियां अलग रहीं, भले उन्होंने बाद में सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया।
जेपी आंदोलन के बाद भी कांग्रेस बनाम जनता पार्टी की लड़ाई से अलग लेफ्ट का एक वैचारिक खेमा था या वीपी सिंह के आंदोलन में भी कांग्रेस के खिलाफ भाजपा और लेफ्ट का अलग मोर्चा था। हालांकि बाद में इन दोनों ने वीपी सिंह की सरकार बनाने में मदद की। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि जेपी या वीपी के आंदोलन में वैचारिक आधार पर भारत की राजनीति दो ध्रुवीय हुई थी। लेकिन अब सचमुच वैचारिक आधार पर देश की राजनीति दो ध्रुवीय हो रही है।
इस राजनीति का एक ध्रुव भाजपा है और दूसरी कांग्रेस है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जैसा प्रदर्शन किया, उससे अपने आप उसका एक राजनीतिक मुकाम बना। उसके बाद पार्टी ने अपने पुराने आर्थिक दर्शन को छोड़ कर नया दर्शन अपनाया। गरीब के साथ हिदुत्व को जोड़ने का प्रयास शुरू हुआ और प्रयास में अभी तक भाजपा सफल होती दिख रही है। तभी आज वह पुराने एनडीए से बड़ा स्वरूप बनाने में सक्षम है। एक तरह से कहा जा सकता है कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय एनडीए का जो विस्तार था, वह नरेंद्र मोदी के समय भी हो रहा है, लेकिन बदले हुए वैचारिक दर्शन के आधार पर।
भाजपा के साथ इस समय कुल 31 पार्टियां जुड़ गई हैं। ध्यान रहे वाजपेयी के समय एनडीए के घटक दलों की संख्या 24 थीं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह 31 पार्टियों से ही संतुष्ट नहीं हैं। वे नई और अलग वैचारिक आधार वाली पार्टियों को साथ ला रहे हैं। इसमें सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाली पार्टियां शामिल हैं तो कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वाली पार्टियां भी हैं यहां तक की मुस्लिम तुष्टिकरण और अलगाववादियों का समर्थन करने की आरोपी पार्टियां भी इसमें शामिल हैं। इस वैचारिक दर्शन का क्या नाम होगा, यह कहना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन मोटे तौर पर अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी या ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी और लिबरल पार्टी की तरह इसका स्वरूप बन रहा है।
इससे मुकाबले में जो एक ध्रुव बन रहा है, उसका गठन मजबूरी में शुरू हुआ, लेकिन अब उसका एक स्वरूप उभरने लगा है। इसका वैचारिक आधार भाजपा के मुकाबले ज्यादा स्पष्ट है। इसमें पारंपरिक रूप से उदार और समावेशी राजनीति करने वाली, सामाजिक न्याय की प्रतिनिधि पार्टियां शामिल हैं। इसके बावजूद इसे भी कोइलेशन ऑफ एक्सट्रीम यानी अतिवादी गठबंधन कह सकते हैं। क्योंकि इसमें एक दूसरे के विरोध में खड़ी हुई पार्टियां एक साथ हैं। यहां तक कि अलग अलग सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियां भी इसमें एक साथ आई हैं। इसके बावजूद कि इनके समर्थक सामाजिक समूहों के बीच जमीनी स्तर पर कई तरह के झगड़े और अंतर्विरोध हैं। इसमें सपा और बसपा या लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस का नाम लिया जा सकता है। यह भी हकीकत है कि इस तरह के स्वरूप वाली पार्टियां और गठबंधन ज्यादा बिखरते रहे हैं। लेकिन वह बनने के बाद के बात है। कहा जा सकता है कि अमेरिका के डेमोक्रेटिक पार्टी ये ब्रिटेन की लेबर पार्टी की तरह भारत में दूसरा ध्रुव बन रहा है।
भारत की राजनीति भाजपा और कांग्रेस के दो ध्रुवों पर घूमने लगी है। इस बार देश की लगभग सभी पार्टियों का ध्रुवीकरण इनके आसपास होगा और यह काम चुनाव से पहले होगा। चुनाव के बाद दोनों बड़ी पार्टियां समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ तालमेल करती रही हैं, लेकिन इस बार यह काम चुनाव से पहले हो रहा है। लोकसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल का समय है। इस डेढ़ साल में दोनों पार्टियों का ध्रुवीकरण तेज होगा और दोनों विलय और गठबंधन के जरिए ज्यादा से ज्यादा पार्टियों को अपने साथ लाने का प्रयास करेंगी। इस प्रयास के दायरे से बाहर अब सिर्फ एक या दो बड़ी पार्टियां दिख रही हैं। लेकिन अगले डेढ़ साल तक ये पार्टियां अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखते हुए दो बड़े गठबंधनों से दूर रहेंगी, यह कहना थोड़ा मुश्किल है।