सोमवार, 31 जुलाई 2017

समझो राष्ट्रवादियों, समझो!

दुनिया में आज नंबर एक बहस, नंबर एक संकट, नंबर एक धंधे का मुद्दा है कि इंसान के दिमाग पर कैसे कब्जा हो? कब्जे का नंबर एक औजार है फोन, हवा की तंरगों से संचार व आनलाइन इंसानी व्यवहार। इसलिए दुनिया में भारी चिंता है कि गूगल, फेसबुक जैसी कंपनियों का एकाधिकार, मोनोपॉली कैसे खत्म की जाए? ये सरकारों से ज्यादा पॉवरफुल हो गई है। स्थिति ऐसी बन गई है कि यदि कोई व्यक्ति खरीदने का फैसला कर रहा है तो संचार की कंपनियां उस वक्त उसके सामने ऐसा भ्रमजाल बना देगी कि खरीददारी का फैसला व्यक्ति की निज सोच-समझ में नहीं होगा बल्कि उस कंपनी के दिमाग से होगा। भारत में हम लोगों को, हमारे नियंताओं को, हमारी सरकार, अदालतों को पता नहीं है कि संचार, सोशल मीडिया की कंपनियों से कैसे सवा सौ करोड़ लोगों के दिमाग को कंट्रोल करने की मोनोपॉली बनने वाली है। हम अपने आपको बिना जाने गिरवी बना दे रहे है। ध्यान रहे पश्चिम के विकास से अपना उल्लू साधने में अपने कारोबारी पहले से ही अव्वल रहे है। अंबानियों, रिलायंस को हमेशा गम रहा कि उनकी तूती थी फिर भी में अचानक भारत में आईटी कंपनियां ऐसे पनपी कि उनका वैश्विक ढंका बना!  आईटी  में मौका चूकने का गम रहा तो फिर संचार में भी हूंक बनी की वे कैसे चूके? चूके तो अब कैसे नंबर एक बने?  सो फार्मूला सीधे साधे गरीबों को मुफ्त के नाम पर ग्राहक बनाने और फिर उनके ऑनलाईन व्यवहार, उनके दिमाग को कंट्रोल करने का चुना है। 
हां, जियो के छाते में 25-30 करोड़ गरीब ग्राहकों के हाथ में फोन दे कर उसके एकाधिकार से रिलायंस वह करने वाली है जो दुनिया की कोई कंपनी नहीं कर पाई। वह यह करिश्मा कर सकती है कि भारत की भेड़ों को वह चाहे जिस दिशा में मोड़े। जो पश्चिम में चिंता है। जिस पर द इकोनोमिस्ट जैसी पत्रिकाओं और वैश्विक थिंक टैंक या योरोपीय संघ के सच्चे लोकतांत्रिक देश चिंता कर रहे हंै, सोच- विचार कर रहे है वह भारत में मुनाफे के साथ चुपचाप ऐसे हो सकता है जिसमें आपको पता भी नहीं पड़े और ग्राहक, यूजर अपने विवेक, अपनी बुद्दी को भोजपुरी गानों का बंधुआ बना डाले!
यहां भोजपुरी गाने एक प्रतीक, मतलब लिए है। अपनी थीसिस है कि 21 वीं सदी भारत के लिए और खासकर हिंदू समाज, संस्कृति, बुद्वी सबके लिए भयावह संकट बना रही है। भारत में बुद्दवी, विवेक, विरासत खत्म हो रही है और स्मार्टफोन ने जन-जन को (गरीब को खासकर) भोजपुरी गानों का रसिया बना दिया है। आप एंड़्रियोड फोन खोले, यू ट्यूब पर जाए तो देशी कंटेट की जो बाढ़ आएगी उसमें हिंदी या भारतीय भाषाओं का कंटेट सर्च करते-करते जो खुलेगा तो दिमाग घूम जाएगा। इस पर मैं फिर कभी विस्तार से लिखूंगा लेकिन फिलहाल इतना समझ ले कि भारत का आम हिंदूजन (खासकर युवा) आज या तो नरेंद्र मोदी के दिखाएं सपनों में जी रहा है या भोजपुरी गानों और हवस की उस अवस्था में है जिसमें समाज, बौद्धिक विमर्श, समझ-बुद्दी के सभी संस्कार, दरवाजे चुपचाप तार-तार हुए जा रहे है। उसका दिमाग नियंत्रित हुआ पड़ा है। अभी यह प्रारंभिक अवस्था है। इसका वायरस आगे भारत को दुनिया का सर्वाधिक लिजलिजी व बुद्दीहीन आबादी में कनवर्ट करने वाला होगा। 
आपको विश्वास नहीं होता? तो आप गरीब याकि सामान्य गांव-देहात के नौजवान के फोन में उसके व्यवहार को कभी देखे-समझे। उसके सरोकार, उसकी खोज, उसके टेस्ट, टाइमपास के भटकाव से तब आपको समझ आएगा कि समाज और तरूणाई किधर जा रही है। 
भला इस सबका अंबानी, रिलायंस, जियो का क्या लेना-देना होगा? है और बहुत भारी है। ये अपने स्मार्टफोन के साथ कंटेंट की मोनोपॉली भी बनाने वाले है। एक अनुमान है कि टीवी चैनलों- मीडिया की कंपनियों को खरीद कर रिलायंस ने कुल मीडिया के 45 प्रतिशत पर कब्जा कर लिया है। सांस-बहू के किस्से हो या खबर सबमें आगे भारत की तीन-चार कंपनियां होगी जो सवा सौ करोड़ लोगों के मनोरंजन, उनके टाइमपास, खबरों, बुद्धि का रिमोट लिए होगी। कल मुझे एक प्रकाशक ने सूचना दी कि उसका अखबार भी अब दस करोड़ ग्राहकों वाले जियो प्लेटफार्म पर है! उसे यह समझ नहीं आया कि एक स्वतंत्र आवाज बिना समझे गिरवी हो गई है। जियो की मोहताज रहेगी। सोचे यदि जियो 25-30 करोड़ ग्राहक बना कर फिर उन्हंे लगभग मुफ्त की रेट में पांच-दस साल सारे अखबार, सारी चैनल दिखाने की मोनोपॉली बना ले तो उससे भारत की भीड़ पर उसका कैसा कंट्रोल होगा? 
तर्क के नाते ठीक है कि इसमें हर्ज क्या है?  कंपनी को बिजनेश का हक है तो वह चाहे जो करें। पर देश के संर्दभ में सोचना जरूरी है। आखिर कंटेट किंग होता है। मतलब बुद्दी के बिना न देश बनता है न कौम बनती है और न इंसान। गरीब को पटाया जा रहा है, गरीब को उल्लू बनाया जा रहा है तो उसमें समझ बनाम नासमझ, बुद्दी बनाम अंधविश्वास, संस्कृति बनाम अपसंस्कृति, संगीत बनाम देवर-भौजी के भोजपुरी संगीत का भेद सब खत्म होना इसलिए है क्योंकि वह एक सोर्स के, एक परोसे हुए व्यवसायी कंटेट में व्यवहार बनाए होगा। बता दूं कि सास-बहू या भोजपुरी संगीत प्रतीक है इसके साथ जो प्रवृतिया हजारों तरह के एप से अपने यहां जैसे चल रही वह बहुत कुत्सित है। हो सकता मैं गलत हूं पर मै जो देख-समझ रहा हूं और नौजवान अपने आसपास के लड़के-लड़कियों के फोटो देखने के लिए नशे माफिक जैसे समय बरबाद करते है वैसे एप यदि भारत में हिट है और अमेरिका, योरोप में नहीं तो मौटे तौर पर आगे की तस्वीर यह भी बनती है कि गरीब को मुफ्त डाटा, मुफ्त फोन दे और मोनोपॉली वाले कंटेट से उन्हे किधर धकेला जा रहा है।
गरीब पर फोकस है। उससे मोनोपॉली बनानी है और उसके टेस्ट को ( जो स्वभाविक तौर पर अभी कच्चा, अपसंस्कृति वाला होगा) हवा देते हुए कंटेट परोसा जाना है तो अंततः धंधा भले हो जाए, भारत का क्या बनेगा?  
सो नोट करके रखे कि संचार क्रांति के नाम पर जो हो रहा है और अगले 20-25 साल जो होगा वह न केवल हिंदू परिवार, समाज रचना, बुद्दी विकास, वैज्ञानिक समझ सबको चौपट कराने वाला है बल्कि दिमाग को नियंत्रित, कुंठित कर उसे ऐसा बनवा देगा कि कौम न स्वतंत्र चेता होगी और न समर्थ-काबिल। इसलिए कि 20-50 करोड़ गरीब आबादी को उसके स्मार्टफोन से जो ज्ञान-समझ मिलेगी तो उसकी नौजवान पौध किसी भी सूरत में अमेरिका, योरोप, जापानियों जैसी स्वतंत्रचेता और बुद्धिमततापूर्ण नहीं हो सकती। 
सो है राष्ट्रवादियों सोचो, समझो और बूझों की मोनोपोली, बुद्धिहीनता अंततः कौम को गुलाम बनवाती है।
नहीं समझे? यही तो हम हिंदुओं का सनातनी संकट है!

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