मंगलवार, 11 जुलाई 2017

अगले चुनाव का एजेंडा क्या होगा ?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ठीक कहा कि जब तक विपक्ष वैकल्पिक विमर्श नहीं पेश करेगा, अपना एजेंडा आगे नहीं करेगा तब तक भाजपा का मुकाबला संभव नहीं है। अभी सारा एजेंडा भाजपा या केंद्र सरकार तय कर रही है और विपक्ष उस पर प्रतिक्रिया दे रहा है। विपक्ष का अपना कोई एजेंडा नहीं है। लेकिन सवाल है कि क्या विपक्ष एजेंडा तय कर सकता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जैसे हाइपर एक्टिव नेताओं के रहते विपक्ष के लिए अपना एजेंडा सेट करना संभव नहीं दिख रहा है। 
वैसे खुद नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी अभी ऐसा लग रहा है कि ये तय नहीं कर पाए हैं कि अगले चुनाव का एजेंडा क्या होगा। इसलिए वे अलग अलग मुद्दों को आजमा रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से लेकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तक के कई मुद्दे उनके पास हैं। विकास, निवेश आदि का मुद्दा ऐसा लग रहा है कि अब बहुत प्रमुख नहीं रह गया है। हालांकि इसके लिए तमाम जरूरी प्रयास हो गए हैं। प्रधानमंत्री ने दर्जनों योजनाएं चला दी हैं और यहां तक की जीएसटी भी लागू कर दी गई है। अब अगर इसका कुछ फायदा होता है तो ठीक नहीं तो बाकी एजेंडे पर अमल होगा। 
बाकी एजेंडे में सबसे अहम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का है। जब भी किसी नेता के यहां छापे पड़े हैं, खास कर पिछले दिनों कांग्रेस के पी चिदंबरम और राजद के लालू प्रसाद के यहां तो भाजपा की ओर से यहीं कहा गया कि केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार भ्रष्टाचार खत्म करने का जनादेश लेकर आई है। खुद प्रधानमंत्री मोदी यह बात कह चुके हैं कि उनकी सरकार को भ्रष्टाचार मिटाने का जनादेश मिला है। सो, सरकार वह काम कर रही है। केंद्रीय एजेंसियां कथित तौर पर भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। 
भ्रष्टाचार से लड़ने का काम सरकार दो स्तरों पर कर रही है। एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। सकारात्मक प्रयास यूनिक पहचान वाले आधार के जरिए किया जा रहा है। सरकार हर जगह सीधे नकदी लाभ ट्रांसफर कर रही है। लोगों को उनके खाते में पैसे पहुंचाने का प्रयास चल रहा है और इस तरह सरकारी पैसों की लीकेज रोकी जा रही है। आम लोगों को मिलने वाले हर किस्म के लाभ के लिए आधार अनिवार्य किया जा रहा है। इससे थोड़े से लोगों को परेशानी जरूर हुई है, लेकिन लीकेज रोकने में कामयाबी मिली है। 
इसका नतीजा यह हुआ है कि जिन बिचौलियों को सब्सिडी की लूट से फायदा होता था, वे बेचैन हैं। यह बेचैनी पिछले दिनों कई राज्यों में देखने को मिली है। सरकार ने रासायनिक खाद और बीज की सब्सिडी को आधार से जोड़ने का ऐलान किया है। यह काम शुरू होने से पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के तीन सौ से ज्यादा खुदरा कारोबारियों ने खाद बेचने का अपना लाइसेंस छोड़ दिया है। 
उनको पता है कि अगर खाद और बीज की सब्सिडी को मोनिटर किया गया तो उनका धंधा चौपट होगा। हालांकि इससे सब्सिडी का लाभ वास्तविक जरूरतमंद तक पहुंचेगा। सीधे नकदी ट्रांसफर और सब्सिडी को आधार से जोड़ने से कई स्तर पर भ्रष्टाचार रोकने में कामयाबी मिली है। 
इसी के साथ साथ नोटबंदी और जीएसटी जैसे उपायों को भी जोड़ा जा सकता है। नोटबंदी से भी सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने का मैसेज दिया है तो जीएसटी से भी कारोबारियों की बेईमानी पर लगाम लगाने का मैसेज दिया है। 
इस तरह के सकारात्मक उपायों के साथ साथ विपक्षी पार्टियों को भ्रष्टाचारी साबित करने का नकारात्मक अभियान भी चल रहा है। बरसों पुराने गड़े मुर्दे उखाड़ कर विपक्षी नेताओं पर छापेमारी हो रही है और उनको कानूनी पचड़ों में उलझाया जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे अपने सकारात्मक कदमों से ज्यादा इन छापेमारियों का मैसेज जनता को देने का प्रयास किया जा रहा है। 
सरकार और भाजपा को इससे यह फायदा तो हुआ है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा के तौर पर स्थापित करने में कामयाब हुई है। सोशल मीडिया में यह प्रचार जोर शोर से चल रहा है कि मोदी देश के भले के लिए सबसे दुश्मनी मोल ले रहे हैं। उन्होंने मध्य वर्ग को नाराज किया, सवर्णों को नाराज किया, कारोबारियों, जौहरियों, बिचौलियों आदि को नाराज किया। सो, भ्रष्टाचार से लड़ाई अगले चुनाव का एक मुख्य एजेंडा होने वाला है। 
इसके अलावा दूसरा एजेंडा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का हो सकता है। इस एजेंडे पर कई हिंदुवादी संगठन अपने आप काम कर रहे हैं और उनकी प्रतिक्रिया में अल्पसंख्यकों की ओर से दिए जा रहे जवाब और भाजपा विरोधी पार्टियों की राज्य सरकारों की कार्रवाई से अपने आप यह एजेंडा मजबूत हो रहा है। गोरक्षा इस एजेंडे का केंद्रीय मुद्दा है। पूरे देश में गोरक्षकों की फौज खड़ी हो गई है, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असामाजिक तत्व कहा था। 
इसके बावजूद उनकी गतिविधियों में कमी नहीं आ रही है। जाने अनजाने में सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने हिंदुवादी संगठनों के इस एजेंडे को और धार दी है। कश्मीर से लेकर केरल और बंगाल से लेकर गुजरात और महाराष्ट्र तक में इस एजेंडे पर काम चल रहा है। सो, कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार से लड़ाई और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ये दोनों अगले चुनाव का मुख्य मुद्दा होंगे। 

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