सोमवार, 31 जुलाई 2017

डिजिटल साक्षरता की राह में रुकावटें

बात जब ई-लर्निंग की आती है, तो संसाधन और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण गांव साफ तौर पर शहरों से पिछड़ते नजर आ रहे हैं। सरकार ने देश के हर हिस्से में ई-लर्निंग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं तैयार की हैं। लेकिन बुनियादी समस्याओं को दूर किए बिना इस अंतर को पाटना मुश्किल है। स्मार्टफोन के बढ़ते चलन की वजह से गावों और शहरों के बीच डिजिटल खाई कम हुई है। शहर ही नहीं, बल्कि गांवों में भी अब मोबाइल और स्मार्टफोन फोन पहुंच गए और इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है। इसलिए कंप्यूटर और इंटरनेट से अब गांव देहात के लोग शायद उतने अनजान नहीं है, जितने कुछ साल पहले हुआ करते थे। जानकारों के मुताबिक गांवों में भी आज बच्चे फेसबुक और व्हाट्सएप के बारे में बात करते हैं। बच्चे उनसे फेसबुक और गूगल के बारे में बाते करते रहते हैं। जानकारों के मुताबिक सरकारी स्कूलों में बहुत कम काम हो रहा है। सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर लैब तो बना रही है, लेकिन कई जगहों पर बिजली ही नहीं आती तो फिर कंप्यूटर कैसे चलेंगे। कंप्यूटर को जैसी सर्विस की जरूरत होती है, वह नहीं हो पाती है। ऐसे में, साल भर के भीतर कंप्यूटर खराब होने लगते हैं। उनके मुताबिक 25 से 30 हजार का लैपटॉप या कंप्यूटर खरीदना गांव वालों के बस में नहीं होता। लेकिन साढ़े तीन या चार हजार रुपये का टैबलेट वे आसानी से खरीद सकते हैं।
 ई-लर्निंग के तहत ऐसी डिजिटल ऑडियो और वीडियो सामग्री तैयार की जा रही है, जिससे पढ़ाना और पढ़ाना दोनों सहज और मजेदार बने। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का अऩुभव है कि डिजिटल सामग्री से चीजें आसान हो गई हैं। सिलेबस की जितनी भी किताबें हैं, वह एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन में आ गयी हैं। स्मार्टक्लास का चलन बढ़ रहा है। किताब पीडीएफ की शक्ल में प्रोजेक्टर पर दिखती हैं। साथ में वीडियो होते हैं। आकृतियां होती हैं। छात्रों के लिए भी इस तरह पढ़ना एक मजेदार अनुभव होता है। अब उन्हें चीजें ज्यादा रटनी नहीं पड़ती हैं।
राष्ट्रीय डिजिटल सारक्षरता मिशन के तहत हर घर से एक बच्चे को डिजिटल साक्षर बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। इसके तहत नेट कैफे होंगे, जहां पर 10-12 कंप्यूटर लगे होंगे। वहां इंटनेट होगा और लोगों को वहां आकर ट्रेनिंग लेनी होगी। लेकिन ग्रामीण इलाकों में नेट कैफे हैं ही नहीं। लेकिन ऐसे मॉडल महंगे हैं। आलोचकों का कहना है कि हमें सस्ते मॉडल्स के बारे में सोचना चाहिए जिन्हें गांवोंत में लागू किया जा सके।
 बहरहाल, ई-लर्निंग को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमकिताओं में शामिल है। कई बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं। कक्षाओं को डिजिटल सामग्री से लैस किया रहा हैं। स्किल डेवेलपमेंट मंत्रालय ने इस दिशा में बहुत ऊंचे लक्ष्य तय किए हैं और उन्हें हासिल करने के लिए कई सारी प्राइवेट कंपनियों के साथ मिल कर काम हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में ई-लर्निंग तीन अरब डॉलर के उद्योग का रूप ले चुका है और इस दायरा लगातार बढ़ रहा है।

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