बचपन से पढ़ता आ रहा था कि सिंह झुण्ड में नहीं चलते और संतों की जमात नहीं होती.. लेकिन अब तो जमात में साधु संत नेताओं से आ कर मिलने लगे हैं जिन्हें ईश्वर की भक्ति में डूबे हुए होना चाहिए वे राजनीति में तैरने लगे हैं. इसमें दोष नेताओं का नहीं है जो अपनी सत्ता के लिए समाज को किसी भी दिशा में ले जा सकते हैं.. यहाँ श्रीमद भगवत गीता के २रे अध्याय के ४६ वे श्लोक की विसंगतियां उजागर होती है जो साधु संतों के लिए कहा गया है "" हे अर्जुन जैसे बड़े जलाशय के प्राप्त होने पर जल के लिए छोटे जलाशयों की जरूरत नहीं होती वैसे ही ब्रम्हानंद की प्राप्ति होने पर आनंद के लिए वेदो की आबश्यकता नहीं होती..'' . तो ये साधु संत ;यदि परमात्मा को जानते हैं तो नेताओं से क्या सीखते है. ? यदि नेताओं से सीखते हैं तो साधु संत कहलाने का क्या फायदा?
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