भारतीय राजनीति में रामविलास पासवान जैसा भाई बहुत दुर्लभ है। उनका दिल हमेशा अपने भाइयों के लिए धड़कता है। वे हर बार कोशिश करते हैं कि उनके साथ साथ उनका एक भाई सांसद रहे और दूसरा विधायक रहे। लेकिन पिछले चुनाव में उनको बड़ा झटका लगा था। उन्होंने भाजपा से तालमेल करके अपने साथ साथ अपने भाई रामचंद्र पासवान और बेटे चिराग पासवान को तो सांसद बना लिया था। लेकिन दूसरे भाई पशुपति कुमार पारस, जिनको बिहार में उप मुख्यमंत्री का दावेदार माना जा रहा था, वे अलौली की अपनी पारंपरिक सीट से हार गए थे।
तब से रामविलास पासवान उनको लेकर चिंतित थे। कई जानकारों का कहना है कि वे अपने भाई की चिंता में ही बार बार नीतीश कुमार को एनडीए में आने का न्योता देते थे। यह हकीकत है कि नीतीश को एनडीए में लाने के लिए सबसे ज्यादा चिंतित पासवान ही थे। और जैसे ही नीतीश ने महागठबंधन छोड़ कर भाजपा का दामन थामा, पासवान सक्रिय हो गए और अपने भाई पशुपति पारस को सरकार में शामिल करा दिया।
पारस इस समय विधायक नहीं हैं। सो, जाहिर है कि मंत्री बनाए जाने के उनको विधायक भी बनाया जाएगा। विधान परिषद की एक सीट उनको मिलेगी। इस तरह पासवान ने भाई को विधायक भी बना दिया और मंत्री भी बना दिया। असल में मौजूदा स्थिति में पासवान को अपनी स्थिति का अंदाजा है। भाजपा ने बिहार की दलित बेटी मीरा कुमार का विरोध करके दलितों के एक वोट समूह को नाराज किया है। ऐसे में भाजपा को पासवान के चेहरे की जरूरत है। सो, उन्होंने अपना काम कर लिया। लालू प्रसाद के ऊपर परिवारवाद का आरोप लगाने वाले भाजपा के नेता भी इस पर चुप हैं। सिर्फ दूसरे सहयोगी जीतन राम मांझी ने इसका विरोध किया।
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