शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

राजस्थान में जातीय खूनी संघर्ष के मंडरा रहे है बादल

 कुख्यात अपराधी आनंदपाल सिंह की मौत के बाद राजस्थान में दो मार्शल कौम जाट और राजपूतो के बीच खूनी संघर्ष के बादल मंडराते दिखाई दे रहे है । राजपूत नेताओ को आनंदपाल की मौत से इतनी हमदर्दी नही है जितना उनको अब जाटो को नीचा दिखाने में मजा आ रहा है । राजपूत लोग लंबे अरसे से जाटो को नीचा दिखाने का अवसर तलाश रहे थे । आनंदपाल की मौत ने उन्हें स्वर्णिम अवसर प्रदान कर दिया है । आज राजपूत नेता अपने सभी मतभेद भुलाकर जाटो को अपनी शक्ति और एकता दिखाने के लिए एक ही जाजम पर बैठ गए है । यधपि आनंदपाल रावणा राजपूत था । जबकि असली राजपूत रावनाओ को सदैव से हेय दृष्टि से देखते आये है । रावणा राजपूतो को असली राजपूत अपने पास बैठाना भी अपनी तौहीन समझते है । लेकिन आनंदपाल ने इस खाई को पाट दिया है ।
राजपूतो के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन और जाटो के दबदबे को खत्म करने का अवसर हाथ आया है । राजपूत एकजुट होकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे है । यही वजह है कि 12 दिन व्यतीत होने के बाद भी आनंदपाल के शव का अंतिम संस्कार नही हो पाया है । इसके पीछे एक सुनियोजित योजना है । राजपूत नेता यह बखूबी जानते है कि जब तक शव का वजूद है तब तक उनकी एकजुटता बरकरार रहेगी । अंतिम संस्कार होने के बाद खेल खत्म और पैसा हजम । राजपूत नेता लंबे समय तक राजनीति की मशाल को जलाये रखना चाहते है ।
उधर जब तक शव का अंतिम संस्कार नही हो जाता तब तक सरकार की सांस हलक में ही अटकी रहेगी । सरकार भले ही आनंदपाल की मौत की जांच सीबीआई से कराने से कतरा रही हो । लेकिन राजपूत समाज की एकता और उनके हिंसक आंदोलन को देखते हुए देर-सवेर सीबीआई से जांच कराने के आदेश जारी कर सकती है । वैसे तो सरकार बहुत पहले ही आनंदपाल के परिजनों और राजपूत समाज की मांग स्वीकार कर लेती । लेकिन दिक्कत यह है कि सीबीआई से जांच कराने पर गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया, ग्रामीण विकास मंत्री राजेन्द्र राठौड़ और परिवहन मंत्री यूनुस खान की पोल खुलने का डर है । ये तीनो मंत्री वसुंधरा के सबसे खास है । अगर सीबीआई जांच करती है तो खींवसर से निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल इन मंत्रियों को गंगा जी पहुँचा सकते है । उनके पास इन मंत्रियों के खिलाफ खूब मसाला है । वे कई बार विधानसभा में इन मंत्रियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगा चुके है । आरोप है कि आनंदपाल को यूनुस खान और राजेंद्र राठौड़ का संरक्षण हासिल था । यूनुस खान कई बार जेल जाकर आनंदपाल सिंह से मिले भी थे और आनंदपाल के कहने पर उन्होंने कई तबादले भी करवाये ।
दरअसल नागोर जिला जहां का आंनदपाल मूल निवासी था, जाट बाहुल्य क्षेत्र है । यहाँ शुरू से जाटो का दबदबा रहा है । इस दबदबे को आनंदपाल ने काफी हद तक खत्म किया । यही वजह है कि आनंदपाल जैसे कुख्यात अपराधी की पैरवी के लिए आज राजस्थान ही नही गुजरात, हरियाणा, बिहार, यूपी आदि के बहुत सारे राजपूत हिंसक आंदोलन करने पर आमादा है । जाटो की बहुलता और एकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1978 में राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से 24 पर जनता पार्टी काबिज हुई जबकि नागोर से अकेले नाथूराम मिर्धा विजय पाने में कामयाब रहे । स्व मिर्धा जाटो के बहुत कद्दावर नेता रहे है । राजपूतो की एकता और उनके तेवरो को देखते हुए जाहिर तौर पर जाट खामोश है । लेकिन अंदर ही अंदर चिंगारी सुलग रही है । जिस दिन यह चिंगारी भड़क गई तो राजस्थान में अभूतपूर्व जातीय संघर्ष की काली गाथा लिखी जाएगी ।
कुख्यात गैंगस्टर आनन्दपाल सिंह की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। ये दास्तान है गांव के एक ऐसे युवक की जो पढ़ लिखकर अपना करियर बनाना चाहता था लेकिन बचपन में हुए सामाजिक भेटभाव, उसकी महत्वकांक्षाओं और राजनैतिक दुश्मनी ने उसे बना दिया राजस्थान का सबसे बड़ा गैंगस्टर । राजस्थान के नागौर जिले के डीडवाना रोड पर बसा है एक छोटा सा गांव सांवरदा। वैसे तो राजस्थान के नक्शे पर इस गांव की कोई खास पहचान नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों में अगर ये गांव किसी खास वजह से जाना गया तो आनन्दपाल सिंह की वजह से। इसी गांव में ठाकुर हुकुम सिंह के घर आनन्दपाल सिंह का जन्म हुआ था। आनन्दपाल सिंह को घर और गांव में सब पप्पू कहकर बुलाते थे। उसका बचपन गांव की गलियों में ही बीता। पढ़ाई में वह काफी होशियार था। इसी के चलते आगे की पढ़ाई के लिए वह वर्ष 1988-89 में लाडनूं चला गया। वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उसने डीडवाना के बांगड़ कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से उसने स्नातक तक की पढ़ाई की। बाद शिक्षक बनने के लिए उसने बैचलर ऑफ एज्यूकेशन की डिग्री भी प्राप्त की।
सूत्रो के मुताबिक आनन्दपाल सिंह को अपनी पढ़ाई के समय पहली बार सामाजिक असमानता का पता चला। उसे नीचा दिखाया जाने लगा। इसकी टीस उसके मन में बैठ गई। वह जाति से रावणा राजपूत था । राजपूतो में रावणा राजपूतो को काफी हिकारत की दृष्टि से देखा जाता है । ये दरोगा या गोळ्या होते है । यानी राजा-महाराजाओं की चाकरी करने वाले । राजस्थान में गोळ्या अथवा दरोगा कहना बहुत बड़ी गाली मानी जाती है । इसी के चलते आनंदपाल सामाजिक दूरियों को मिटाना चाहता था। लेकिन उसे ही इस असमानता का शिकार होना पड़ा। साल 1992 में आनन्दपाल सिंह की शादी की बिन्दौरी को कुछ दबंगो ने रूकवा दी थी और पथराव भी किया। शादी की तैयारिया हो रही थी । घर में मंगलगीत गाये जा रहे थे । उसी दौरान गाँव के दबंग लोगो ने आनंदपालसिंह के पिताजी को दूल्हे की घोड़ी पर बन्नोरी नहीं निकालने की हिदायत दे डाली । उस समय छात्र नेता के रूप में जीवनराम गोदारा का दबदबा था औरआनंदपाल सिंह ने पूरी बात अपने दोस्त जीवनराम को बताई। ख़ास दोस्त जीवनराम और उसके साथी सांवराद पहुंचे और आनन्दपाल के साथ मिलकर असमानता का विरोध कर गांव में बिन्दौरी निकलवाई | मगर इस घटना ने आनदपाल की जिंदगी की धारा ही बदल डाली और आनदपाल सिंह बन गया सीधे साधे पप्पू से बदमाश एपी ।
जीवण गोदारा और आनन्दपाल के बीच थी गहरी दोस्ती । जीवण गोदारा और आनन्दपाल कोलेज के दिनो से एक दूसरो को जानते थे। जीवण ही वो शख्स था जिसने आनन्दपाल की मुश्किल घडी में हर प्रकार की मदद की थी। जीवण ने आनन्दपाल की शादी के दरमियान भी आर्थिक मदद की थी। तब से दोनों मे गहरी दोस्ती थी।प्रारंभिक शिक्षा गांव में होने के बाद आनन्दपाल 12वीं की पढाई करने लाडनू और फिर आगे की पढाई करने डीडवाना चला गया। डीडवाना में स्नातक करने के बाद आनन्दपाल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा था । लेकिन इसी दौरान उसका रुझान राजनीति की तरफ हुआ ।
साल 2000 में हुए पंचायत समिति का चुनाव जीता । सामाजिक भेदभाव की टीस आन्नदपाल को अपराध के दलदल मे ले गई। आंनदपालसिंह ने बदमाशी शुरू कर दी और अपना वर्चस्व बढ़ने की कोशिश करने लगा । इसी दौरान वर्ष २००० में उसने राजनीति में कदम रखा। उसने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लाडनूं पंचायत समिति सदस्य का चुनाव जीता। इसके बाद उसने लाडनूं पंचायत समिति के प्रधान पद का भी चुनाव लड़ा । लेकिन प्रधान चुनाव के दौरान तत्कालीन विधायक तथा जाट नेता हरजीराम बुरड़क के बेटे जगनाथ बुरड़क के सामने फ़ार्म भरा। लेकिन 2 वोट से आंनदपालसिंह प्रधान का चुनाव हार गया । इसी दौरान आंनदपालसिंह पर राजकार्य में बाधा डालने का पंचायत समिति के विकास अधिकारी द्वारा एक मामला दर्ज हुआ | विधायक के दबाव में दर्ज हुए मामले के बाद गुस्साए आनदपालसिंह से खेराज हत्याकांड हुआ और उसके बाद आनदपालसिंह अपराध के दलदल में धसता गया । अपने ख़ास दोस्त जीवण गोदारा से भी रिश्ते तोड़कर रास्ता अलग कर लिया । उसके बाद शराब माफिया बन गया और प्रदेश में अवैध रूप से चलने वाले हुंडीया लूटने लग गया | और यही से शुरू हुआ एपी के आतंक का सफ़र |
सूत्रो के मुताबिक आनन्दपाल खेराज को नही मारना चाहता था। लेकिन होनी को कुछ औऱ मंजूर था। खेराज हत्याकांड के बाद एक साथ काम करने वाले दो दोस्त एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए । साल 2006 में आनंदपालसिंह ने डीडवाना में दिन दहाड़े जीवण गोदारा की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी और अपने गैंग के सदस्यों के साथ फरार हो गया | गोदारा हत्याकांड में आनदपाल के मंझले भाई मंजीतपालसिंह का भी नाम सामने आया। सूत्र बताते हैं कि शराब के धंधे में अलग होने के बाद जीवनराम गोदारा और आनन्दपाल के संबंध भी बिगड़ते चले गए। इसी बीच खेराज हत्याकांड के अहम गवाह महीप कुमार को लेकर जीवनराम द्वारा संरक्षण दिए जाने से उनके बीच दुश्मनी बढ़ती गई। इसी के चलते 14अगस्त 2004 को डीडवाना के डाक बंगले के समीप जीवनराम पर जानलेवा हमला हुआ। जिसका आरोप भी आनन्दपाल पर ही लगा। इस मामले में आनन्दपाल गिरफ्तार भी हुआ, लेकिन 4 महीने बाद ही उसे जमानत मिल गई। इसके बाद जीवनराम व उसके साथियों पर हवाई फायर करने का भी आनन्द पर आरोप लगा। लगातार बढ़ती दुश्मनी में दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। सूत्र बताते हैं कि दुश्मनी में अपशब्द बोले जाने को लेकर आनन्दपाल सिंह खफा हो गया इसी के परिणाम स्वरूप 2006 में डीडवाना में जीवनराम गोदारा की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई।
सूत्र कहते है कि साल 2006 में जीवण गोदारा हत्याकांड के बाद आंनदपालसिंह प्रदेश में दहशत का दूसरा नाम बन गया | फरारी के दौरान 6 साल तक आंनदपाल ने पूरे प्रदेश मे कई वारदातों को अंजाम दिया लेकिन पुलिस उसे किसी भी मामले मे पकड़ नही पाई थी । जीवण राम गोदारा हत्याकांड ने आनन्दपाल को रातों रात अपराध की दुनिया में कुख्यात कर दिया। यहां से आनन्दपाल ने अपना एक बड़ा नेटवर्क बना लिया। और यूपी,एमपी और बिहार के बदमाशों की मदद से आधुनिक हथियार जुटा लिए। शेखावाटी के बदमाश बलवीर बानुड़ा के साथ मिलकर नागौर से निकलकर शेखावाटी की तरफ रुख किया। शेखावाटी में राजू ठेठ गैंग के खिलाफ आनन्दपाल सिंह के गैंग की कई बार मुठभेड़ हुई।आखिरकार आंनदपाल सिंह औऱ सहयोगी दातार सिंह को जयपुर पुलिस और एसओजी की संयुंक्त टीम ने हथियारों के जखीरे के साथ नवंबर 2012 मे फागी से गिरफ्तार किया था |
फागी से गिरफतार होने बलवीर बानूडूा के साथ उसे बीकानेर जेल में भेजा गया था लेकिन जेल में राजू ठेठ के गैंग की ओर से हुई फायरिंग में बलबीर बानूड़ा मारा गया लेकिन आनन्दपाल बच गया। सुरक्षा कारणों के चलते आनन्दपाल को अजमेर की सिक्योरिटी जेल में भेजा गया था। पेशी के दौरान कई बार आनन्दपाल मुख्यधारा में आने की बात मीडिया के सामने कह चुका था और आईबी की रिपोर्ट में भी उसकी सुरक्षा को लेकर चिंताए जाहिर की जा चुकी थी। आंनदपाल सिंह कोर्ट में चल रही पेशियों पर रोजाना अजमेर जेल से लाया जाने लगा मगर पुलिस सुरक्षा धीरे धीरे कम होती गयी | यह देख आंनदपाल ने फिर से फरार होने की साजिश रच डाली और 3 सितम्बर, 2015 को फरार होने में कामयाब हो गया। उसी दिन ADJ कोर्ट से 2006 में हुए निमोद के नानुराम हत्याकांड की आखिरी पेशी पर आये फैसले में कोर्ट ने सबूतो के अभाव में आनंदपालसिंह को बरी कर दिया था |
बताया जाता है कि आनंदपाल सिंह की मौत के बाद जीवन राम गोदारा और गोपाल फोगावट के परिवार और मित्रजनो ने जमकर डांस किया था । फोगावट और गोदारा की मृत्यु पर हजारों जाट सड़को पर उतर आए थे । जीवन राम को जाटो ने शहीद बताते हुए आनंदपाल से निपटने की चेतावनी दी । फोगावट की शव यात्रा में 50 हजार से ज्यादा लोग सम्मलित हुए । करीब 11 किलोमीटर लंबी शवयात्रा थी । राजपूत और जाटो की लड़ाई कहाँ विराम लेगी, कुछ कहा नही जा सकता है ।

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