भारत सरकार का दावा है कि देश में रोजगार की स्थिति ठीक-ठाक है। सत्ताधारी दल ने आरोप लगाया है कि नौकरियां जाने की अफवाह जानबूझ कर भाजपा विरोधी तत्वों ने फैलाई है। लेकिन उपलब्ध आंकड़े कुछ और कहानी कहते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सूचना तकनीक क्षेत्र में 2016-2017 में 8.6 प्रतिशत की विकास दर रही। मगर इस दौरान नौकरियां बढ़ने की दर महज 5 फीसदी ही रही। ये हैं। अंदेशे जताए गए हैं कि अगले तीन साल में इस क्षेत्र में नौकरियों में 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।
कुल तस्वीर पर गौर करें तो भारत सरकार के रोज़गार और बेरोज़गारी संबंधी सर्वेक्षण के अनुसार के पचास प्रतिशत कामगारों की ही रोज़गार में भागेदारी है। इसके बावजूद निजी क्षेत्र हो या फिर सरकारी, वहां नियुक्तियां रुकी हुई हैं। इस बीच इस साल अप्रैल में भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने एक अध्यादेश जारी कर पिछले दो-तीन सालों के दौरान विभिन्न मंत्रालयों के विभागों में खाली पड़े पदों को निरस्त कर दिया। मज़दूर संगठनों ने बढ़ती बेरोज़गारी के बीच खाली पड़े पदों को खत्म करने के मुद्दे पर सरकार की आलोचना की है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) का कहना है कि मौजूदा पदों को ख़त्म करने के बाद सरकार उन्ही पदों पर ठेके पर नियुक्तियां कर रही है। बीएमएस के महासचिव बृजेश उपाध्याय ने बीबीसी से कहा कि खाली पदों को ख़त्म करने का फ़ैसला बहुत पहले से चला आ रहा है। हर साल खाली पड़े पदों को सरकारें ख़त्म करती चली आ रही हैं। उपाध्याय ने कहा कि क़ानून बनाने वाली एजेंसी भी सरकार है और क़ानून तोड़ने वाली सबसे बड़ी एजेंसी भी सरकार ही है। क़ानून के मुताबिक नियमित स्वरूप के कामों को नियमित कर्मचारियों द्वारा ही किया जाना चाहिए। लेकिन अब सरकार खुद कानून तोड़ रही है। नियमित प्रारूप के कामों में भारतीय रेल का भी नाम है, जहां भी बड़े पैमाने पर मौजूद रिक्तियों को ख़त्म किया जा रहा है। मज़दूर यूनियन भी इस मुद्दे को लेकर पिछले कई सालों से संघर्ष करते आ रहे हैं। 'ऑल इंडिया रेलवेमेन्स फ़ेडरेशन' यानी एआईआरएफ़ के शिव गोपाल मिश्रा ने बीबीसी से कहा कि भारतीय रेल के विभिन्न विभागों में 2.5 लाख रिक्तियां हैं, जिन्हें भरा नहीं जा रहा है। मिश्रा के मुताबिक केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के अधीन विभागों में 46 लाख कर्मचारी होने चाहिए, जबकि उनकी संख्या 32 से 33 लाख के बीच रह गई है। यानी लगभग 13 से 14 लाख पद खाली पड़े हुए हैं।
सरकार ने भी माना है कि काफी पद खाली हैं, जिनमें आईएएस, आईपीएस और वन सेवा के पद शामिल हैं। आईएएस के 1470 और आईपीएस अफसरों के 908 पद खाली पड़े हैं। इससे पहले संसद की एक स्थायी समिति ने संघीय लोक सेवा के अधिकारियों के रिक्त पदों पर अपनी गहरी चिंता जताई थी। इस कमेटी की सिफ़ारिशों के बाद सरकार का कहना है कि चालू वित्तीय वर्ष में दो लाख नई सरकारी नौकरियां सृजित की जाएंगी।
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