गुरुवार, 13 जुलाई 2017

नकेल कस कर बनाएंगे रामराज्य!

कोई राष्ट्र-राज्य कैसे स्वर्ग बनता है? कैसे स्वीडन, डेनमार्क, नीदरलैंड, अमेरिका, जर्मनी, योरोप, स्विट्जरलैंड, जापान, नार्वे रामराज्य, सभ्यता, प्रगति, ज्ञान-विज्ञान के सिरमौर है? एक सूत्र जवाब लोगों की, नागरिकों की वहा तंत्र से आजादी है! नागरिक वहां शेर होता है और तंत्र उसका सेवादार। तभी तंत्र न तो शेर की नकेल कस सकता है और न उसे करप्ट बना सकता है। इतिहास गवाह है कि नकेल में रहे नागरिकों वाला हर देश फेल हुआ है फिर भले हिटलर का जर्मनी रहा हो या स्टालिन का सोवियत संघ। पर भारत और खास कर भारत के लोग हिंदू गुलामी की नकेल में हमेशा बंधे रहे। इसलिए चेतन, अवचेतन में खुद भारत के लोगों का व्यवहार भेड़ का संस्कार लिए रहा है। जिधर शासक ने हांका उधर वह हंकता रहा। शासक खुद क्योंकि उस भेड़ से निकला हुआ होता है इसलिए वह प्रजा को आजाद शेर वाली इज्जत नहीं दे सकता। तभी 15 अगस्त 1947 की आधी रात से लेकर आज तक वही तंत्र कायम है जो अंग्रेजों ने भारत की भीड़ की नकेल बांधने के मकसद से बनाया था। नेहरू ने उसमें नई बातें जोड़ी। उसका माईबाप सरकार याकि खैरात बांटने का रोल भी बनवा दिया। और नरेंद्र मोदी ने पिछले तीन सालों में एक नया और अतिरिक्त रोल जोड़ा है और वह चोरों को सुधारने का है। सो आज की तारीख में भारत में सरकार, तंत्र नागरिक के प्रति तीन रोल लिए हुए है। नकेल कसे रखने का, माईबाप सरकार का और चोरों को ठीक कर देने का सुधारक रोल!
क्या ऐसा अमेरिका में, जापान में, स्वीडन, नार्वे, योरोप के सभ्य देशों में है? अंग्रेजों ने गुलामी का ताना-बाना बना भारत में भीड़ को नकेल में बांधने के स्थाई प्रबंध किए। उसके खतरे नेहरू ने नहीं समझे। उसे बरकरार रखा और उसके साथ गरीब भीड़ को रोटी, राशन, काम-धंधा देने का माईबाप याकि समाजवादी खैराती प्रबंधन बनवाया। उसके अपने नतीजे निकलने थे। अंग्रेजों के वक्त भारत को एक देश, कुछ अंग्रेज लूटते थे। नेहरू ने काले अंग्रेजों, अफसरों की नकेल वाली व्यवस्था से लूट का कल्पवृक्ष बनवा दिया। नतीजतन पूरे कुंए में भांग पड़ी। अब नरेंद्र मोदी का राज है और वे तीन साल से यह परिश्रम कर रहे हैं कि यह जो जनता ससुरी है उसे पहले सुधारना है। उसे डराना है, उसकी चोरी खत्म करानी है।
ध्यान करें अंग्रेज, नेहरू और नरेंद्र मोदी तीनों का माध्यम एक है। और वह हाकिमों, अफसरों का तंत्र है! जिस भाव भीड़ पर (भेड़ों पर) अंग्रेज राज करते थे वही भाव पहले देशी लाट साहब नेहरू का था और अब हिंदू लाट साहब नरेंद्र मोदी का है। तीनों की कमान हाथों में जनता की कस कर नकेल पकड़े होना है।  अंग्रेज इस अभिमान, प्रचार से भीड़ पर राज करते थे कि हम हैं तो हिंदुस्तानियों को राज मिला हुआ है। हिंदुस्तानियों को राज करना नहीं आता। हमारे से इन्हें यह नसीब प्राप्त है। ऐसे ही नेहरू का अभिमान था कि मेरी वैज्ञानिक, समाजवादी समझ है जिससे मूर्ख, जाहिल भीड़ के लिए वेलफेयर व्यवस्था बन रही है। और अब नरेंद्र मोदी का यह अभिमान है कि मैं हार्वड से ऊंचा हार्ड ज्ञानी हूं, ईमानदारी का राजा हरिश्चंद हूं जो मैक इन इंडिया करा दे रहा हूं तो लोगों को ठोक कर ईमानदार भी बना दूंगा!
अब इसके और विस्तार में जाऊंगा तो किताब लिख जाएगी कॉलम नहीं सिमटेगा। सो आप इतना भर सोचिए कि जापान, अमेरिका, स्वीडन, योरोपीय याकि सभ्य, लोकतांत्रिक आदर्श देशों में पिछले सत्तर साल की क्या ऐसी कोई हकीकत समझ आती है जो अंग्रेज-नेहरू-मोदी की नकेलशाही से भारत ने देखी है। फिर अपना खुद निष्कर्ष निकालें!
बहरहाल, भारत के सवा सौ करोड़ लोगों का मूल मसला है कि उसे नकेलशाही के अंधेरे से मुक्तता कब प्राप्त होगी? जीएसटी का नया कानून इस बात का प्रमाण है कि दुनिया का ऐसा सुधार न्यूजीलैंड, डेनमार्क को और स्वर्ग बना देगा, वहां के नागरिकों को सौ टका साफ-सुथरा, पारदर्शी, निश्चितंतता भरी टैक्स आजादी दिला देगा मगर भारत में वह लोगों के गले में नई नकेले बनवा दे रहा है तो क्या ऐसा सिस्टम के नकेल कसे रहने, लूट के कल्पवृक्ष के स्थाई ताने-बाने के चलते नहीं है? 
पिछले तीन साल में भारत के लोग दस तरह से चोर करार दिए गए हैं। हम टैक्स नहीं देते इसलिए चोर हैं। हमारे कारखाने वाले किसान के यूरिया कोटे में लंगडी मार कारखाना चलाने वाले चोर हैं। हमारे सुनार एक्साइज टैक्स से भाग रहे हैं इसलिए चोर हैं। उद्योगपतियों ने लोन ले, ले कर खा डाला इसलिए लुटेरे हैं। मेडिकल कारोबारी, हार्ट की बीमारी के स्टेन महंगे दाम से बेच रहे थे इसलिए ठग थे। ऐसे ही रियल एस्टेट वाले बिल्डर भी लूटने वाले तो किसान भी गुंडे हैं क्योंकि लोन ले कर खा जाते हैं और फिर कर्ज माफी का आंदोलन करते हैं। ठेकेदार चोर हैं, एजुकेशन में माफियागिरी है तो मीडिया भ्रष्ट है और व्यापारी किसी भी किस्म का हो वह आज यदि जीएसटी को लेकर हड़ताल पर है आंदोलित है तो इसलिए क्योंकि उसे अपने को रजिस्टर कराना होगा, वह जीएसटी डाटा बैस, पैन-आधार कार्ड से नकेल कसने के खिलाफ इसलिए भाग रहा है क्योंकि उसे मुनाफाखोरी, लूट, चोरी का मौका नहीं मिलेगा! मतलब चोर की दाढ़ी में तिनका इसलिए विरोधी!
सोचें, सवा सौ करोड़ लोगों की भीड़ को तीन वर्षों में मोदी सरकार ने नोटबंदी से लेकर जीएसटी के अलग-अलग तरीकों में जैसे चोर, लुटेगा, ठग, भ्रष्ट बतलाया है वैसा दुनिया के किसी और देश में क्या कभी हुआ होगा? तभी नरेंद्र मोदी और सोशल मीडिया के मूर्ख लंगूर प्रचार करते हैं कि वाह नरेंद्र मोदी क्या गजब! वे सबको दुश्मन बना रहे हैं, नाराज कर रहे हैं लेकिन मर्द है, बाहुबली है लोगों को ईमानदार बना कर दम लेंगे! है कोई मोदी जैसा!
अब कोई पूछे कि लोग चोर क्यों हैं? टैक्स क्यों नहीं देते? यूरिया की चोरी क्यों होती थी, बैंक दिवालिया क्यों हुए, उद्योगपति-व्यापारी भ्रष्ट क्यों हैं या मीडिया, बिल्डर, एजुकेशन माफिया, खनन माफिया याकि कुंए में भांग क्यों तो क्या वजह यह नहीं थी और है कि सिस्टम की जिन दिवालों ने कुआं बना उसमें भांग का रिसाव 70 सालों से बनवाया है वही जिम्मेदारी का जड़ कारण है? सिस्टम दोषी है या 70 साल से नकेल कसवाई भारत की बेचारी भेड़ें? यदि आजादी के साथ पहले दिन से ही भारत का नागरिक बिना नकेल के शेर होता तो वह सिस्टम से भिड़ते हुए, उसकी परवाह न करते हुए भ्रष्टाचार से आजाद जीवन जी रहा होता। पर नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक का मिशन जब तरह-तरह के औजारों से जनता की नकेल कसे रखने का है तो इंस्पेक्टर, अफसर, लाइसेंस- सब्सिडी- मनरेगा मजूदरी, गैस चूल्हे से लेकर खरबों रुपए के लोन देने वालों की नकेल में तो रिश्वत लेना-देना नागरिक की अनिवार्य नीयती होगी ही। 
पर साहब कौन समझाए! नरेंद्र मोदी ने पिछले तीन सालों में भ्रष्ट तंत्र पर चाबुक नहीं चलवाए। न उसे, उसकी दादागिरी को खत्म कराया। आज भी जिले में कलक्टर मालिक है तो कोतवाल इलाके का बादशाह व सरकारी दफ्तर कृपा के ठिकाने। जमीन पर इंच भर फर्क नहीं है। अफसरों की नकेल नहीं कसी। उलटे अफसर, कर्मचारी तीन साल में अकेला वह तबका है जिसकी तनख्वाह, भत्ते सुरसा की तरह मोदी सरकार ने बढ़वाए हैं। लोगों को टैक्स चोर कहा। व्यापारी को मुनाफाखोर कहा। उद्योगपतियों को लुटेरा बताया। किसानों को गुंडा कहा गया मगर नरेंद्र मोदी ने अफसर, अफसरशाही से, जनता को कायर बनवाने वालों से, उसे भ्रष्ट बनवाने वाले तंत्र से मिठी-मिठी बातें की। इनकी नकेल कस कर एक वह काम नहीं किया जिससे जनता अपने को शेर मान भ्रष्टाचार की जरूरत महसूस न करें। भेड़ों ने भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बनाया है तो वजह सिर्फ और सिर्फ उनकी नकेल कसे हुए होना है। उनका शेर नहीं होना है। 
मैं भटक गया हूं। पते की बात राष्ट्र-राज्य, कौम को जिंदादिल बनाने वाले उस तत्व की है जिससे नागरिक अपने को स्वतंत्र, उजियारे में पाता है। यदि जीएसटी के खिलाफ आज पूरे देश में अलग-अलग तरह से व्यापारी नाराज, आंदोलित है तो उसकी कोर वजह यह है कि सरकार सुधार नहीं ला रही है बल्कि इससे भी वह नकेल कस रही है। नरेंद्र मोदी ने जिद्द पकड़ ली है कि वे लोगों को सुधार कर रहेंगे। उनका फोकस लोग हैं वह तंत्र, वह सिस्टम नहीं जिसमें अंग्रेजों ने लूट, दमन और नेहरू के समाजवादी भ्रष्टाचार के संस्कार कूट-कूट कर भरे हुए हैं। 
सो क्या आधी रात का अंधेरा न माना जाए? इस अंधेरे से भारत बदलेगा नहीं बल्कि और जकड़ेगा। जापान, अमेरिका, योरोप और रामराज्य बनना तो दूर भारत के दोयम दर्जे में और इजाफा होगा। इसलिए कि देश तो लोगों के मन की हूंक, बेधड़क जज्बे से बनता है और वह तब होता है जब न नकेल बंधी हो और न चोर कहलाते हों।

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