कमंडल में मंडल का समा जाना राजनैतिक तौर पर भले देश की तासीर बदलने वाला हो मगर कमल तो कीचड़ में लथपथ है। कभी भाजपा की पूंजी उसके चाल, चेहरे, चरित्र और सबसे अलग तरह की पार्टी का नारा था। अब कुल मिला कर कीचड़ का फैलना है। पिछले तीन सालों में भाजपा ने जितना दलबदल कराया, सत्ता की भूख, जीतने की अंधी धुन में जैसे जो तरीके अपनाएं, जो राजनीति की, जैसे सरकारें बनाई है वैसा आजाद भारत में कभी नहीं हुआ। दलबदल करा, गले लगा दलबदलूओं को जैसे सत्ता में बैठाया है और जम्मू-कश्मीर में मेहबूबा मुफ्ती से एलायंस से ले कर केरल, गुजरात से अरुणांचल प्रदेश, बिहार में जैसी तोड़फोड़, गंदगी की है या कराई है वह न तो कमल की पुण्यता को चार चांद है और न संघ संस्कार से मेल खाता है और न श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, वाजपेयी, आडवाणी, गडकरी, राजनाथसिंह की अध्यक्षता की सौम्य विरासत की प्रतिनिधी राजनीति है। यह तब है जब अपने आप वक्त, हिंदू की सोच में हवा बनी हुई है। हिंदू वैसे ही बावला हुआ पड़ा है, वोट अपने आप आ रहा है तो विपक्ष को खत्म करने या जीतने की भूख का लगातार बढ़ते जाना भला क्योंकर?
शायद इसलिए कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह इस जल्दी में है कि वे फटाफट साबित कर दिखाएं कि उन्होंने जितनी जल्दी सभी प्रदेशों में अपनी सरकार बनवा डाली वैसा कोई दूसरा नहीं कर पाया। ऐसा होने से हताशा में विपक्ष लड़ने लायक नहीं बचेगा। कमल, चरित्र आदि की चिंता छोड़ों अभी विपक्ष को तोड़ों।
तभी नीतीश-लालू-कांग्रेस महागठबंधन को तुड़ाना और गुजरात की विधानसभा में इंच जमीन भी कांग्रेस की न रहने देने का मिशन पूरे देश को निर्णायक मैसेज होगा। जैसे बिहार में महागठबंधन तुड़ाने की स्क्रीप्ट पर महीनों से काम हो रहा था वैसे ही सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल को एक सीट के लिए भी मोहताज बना देना बहुत बड़ा राजनैतिक मैसेज है। इधर राहुल गांधी के पप्पू होने का प्रचार और उधर तुर्रमखा रणनीतिकार अहमद पटेल की हार से मैसेज बनेगा कि इनमें है क्या दम? न तो कांग्रेस में गुजरात चुनाव लड़ने की हिम्मत बचेगी और न फिर अहमद पटेल या कोई और कांग्रेसी विपक्षी एकता की राजनीति की हिम्मत जुटा सकेगा। कांग्रेस व अहमद पटेल अपने विधायकों को कही भी छुपा कर रखे पहले से ही सबकुछ तय हुआ पडा है। जंग में सब जायज है, का मंत्र अपना कर नरेंद्र मोदी, अमित शाह ने स्क्रीप्ट लिखी हुई है। सो अपने को आश्चर्य होगा यदि अहमद पटेल जीते। अपन उनकी हार देख रहे है।
जो हो, कमल अब न सौम्य-गुलाबी है और न कीचड़ में खिला हुआ। वह तो खुद कीचड़ बना दे रहा है। शायद यह सोचते हुए कि जितना कीचड़ बनाएगे, गंदी राजनीति करेंगे उतना खिलेगे।