भारत को खरीदना ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों के लिए आसान था तो चीन, अमेरिका के मौजूदा व्यापारियों और भारत के अपने व्यापारियों के लिए भी इसलिए आसान है और रहेगा क्योंकि भारत के हम लोगों का चेतन, अवचेतन जहां गुलाम है वहीं भूखा है और चांदी की जूती को ललचाता है। आजाद भारत के इतिहास में धीरूभाई अंबानी ने इसे बखूबी समझा और कोटा-परमिट लाइसेंस राज में चांदी की जूती मारो व लाइसेंस लो का फार्मूला अपना कर दिल्ली की सत्ता को खूब नचाया। अंबानी के चांदी की जूती के अहंकार में ही भारत के दुर्लभ बहादुर उद्यमियों में एक रामनाथ गोयनका ने इंडियन एक्सप्रेस में अंबानी के खिलाफ जम कर कैंपेन चलाया था। मैं उन दिनों रिपोर्टिंग में एक्टिव था, और धीरूभाई को पहला आयात लाइसेंस देने वाले 1969 से पहले के वाणिज्य उपमंत्री मोहम्मद शफी कुरेशी से अंबानी को समझने की गपशप की थी। अपन बालू, टोनी सबके जानकार हैं। कुरैशी के बाद आजाद भारत में क्रोनी पूंजीवाद के अपने हाथों प्रतिमान बनाने वाले प्रणब मुखर्जी की मेहरबानी ने धीरूभाई अंबानी को क्या बनाया और चांदी की जूतियों का सर्वत्र कैसा उपयोग हुआ इसकी वह दास्तां है, जिस पर लिखने, जिसे जांचने, समझने की हिम्मत 138 करोड़ लोगों में से एक व्यक्ति, एक संस्था, एक एजेंसी, एक प्रधानमंत्री की नहीं है क्योंकि ईस्ट इंडिया कंपनी में जीया हुआ भारत है।
तो अंबानी ने 1967 से भारत खरीदा हुआ है। एक वीपी सिंह के समय के छोटे कालखंड के अपवाद को छोड़ें तो अंबानी के भारत खरीदे हुए होने की अवधि पचास साल पार हो गई है। हर धंधा मोनोपॉली की स्थिति बना कर, सरकार, सरकारी कंपनियों को ही मार्केटिंग करके, सरकार की कृपा से हुआ है। नरेंद्र मोदी के लिए अंबानी तभी से रोल मॉडल है जब गुजरात में मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली थी। राजनीति में पैसा कैसे काम करता है और उद्योगपति बना कर राजनीति करना कैसे आसान होता है इस बेसिक समझ के साथ बतौर मुख्यमंत्री गुजरात में नरेंद्र मोदी ने जो अरबपति बनाए तो दिल्ली में सत्ता के बाद तो अंबानी हो या अदानी सभी के अच्छे दिन आने ही थे। अदानी देश-विदेश सब तरफ छाए हुए हैं। तमाम बंदरगाह उनके हो गए हैं, वे अब तमाम एयरपोर्ट ले रहे हैं। पॉवर प्लांट लेने और पॉवर सप्लाई में भी दिन दूनी रात चौगुनी छलांग।
सो, अंबानी और अदानी भारत में जिधर हाथ रख देंगे वह उनका हो जाएगा। एक दिन अदानी ने जाना कि मुंबई के भव्य एयरपोर्ट की मालिकाना कंपनी जीवीके मुश्किल में है। कोराना काल ने कड़की बना दी है और वह विदेशी निवेशकों को शेयर देने के लिए बात कर रही है तो मन हुआ एयरपोर्ट अपने को ले लेना चाहिए। पर जीवीके की दूसरी कंपनियों से बात आगे बढ़ चुकी थी वह अदानी के लिए राजी नहीं हुई तो सीबीआई व ईडी छापा मारने जीवीके के ऑफिस जा पहुंचे। रेड्डी को नानी याद दिला दी गई। नतीजतन अब वह अदानी के यहां शरणागत हो कर उन्हे एयरपोर्ट बेच रहा है।
अंबानी, अदानी को बना-बनाया, पका-पकाया माल, बाजार चाहिए। फोन, इंटरनेट, कम्युनिकेशन, आईटी में अपनी बुद्धि से पहले धंधे की कल्पना नहीं की। जब सरकार के लाइसेंस ले कर पुरुषार्थ दिखा मित्तल, टाटा, बिड़ला आदि (तब दर्जनों प्लेयर थे) ने बाजार बनाया तो अंबानी ने अचानक सीडीएम तकनीक के हवाले अपनी झुग्गी सस्ते ग्राहकों के लिए डाली और अनिल अंबानी ने खाया, लूटा तो तीन साल पहले मुकेश अंबानी ने 4जी के हवाले डाटा खेल चालू किया। सरकार और अदालत से ऐसे फैसले करवाए कि कंपीटिशन की तमाम कंपनियां एक-एक कर खत्म हों।
धंधे के नाते जो बाजार गारंटीशुदा हो, उसमें बने बनाए को खरीदना या उसमें से कंपीटिटर को बाजार से आउट करा देने की योजना बना कर एकाधिकार से भारत के लोगों से, सरकार से मुनाफा कमाना अंबानी-अदानी का कुल लब्बोलुआब है। यह भारत के क्रोनी पूंजीवाद का वह रूप है, जो रूस में भी नहीं है। रूस और चीन में यों सरकार की मेहरबानी में सब होता है मगर नेता के अलावा कम्युनिस्ट पार्टी की निगरानी होगी। दूसरे वहां के अंबानी-अदानी बने बनाए एयरपोर्ट, पोर्ट लेने या फेसबुक, गूगल, अमेजान के एजेंट बन कर उनको देश में घुसा कर जनता को गुलाम बनवाने वाला धंधा नहीं करते हैं। चीन ने, चीन के उद्यमियों ने अपना गूगल, अपना फेसबुक बनाया हुआ है। डिजिटल चीन सचमुच खुद चीनी कंपनियों से बना है। इसी से वहां इतनी भारी टेलीकॉम कंपनियां विकसित हुईं कि चीन न केवल 5जी की अपनी तकनीक लिए हुए है, बल्कि गूगल, फेसबुक जैसी अमेरिकी कंपनियों को उसने आउट किया हुआ है। सबसे बड़ी बात कि चीन ने देश में लाखों कंपनियों के फूल खिलाए हुए हैं वैसा कतई नहीं है जैसे भारत में अबांनी-अदानी जैसी चंद कंपनियों में भारत के 138 करोड़ लोगों को बंधक बनाया जा रहा हैं।

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