राजस्थान में भाजपा का ऑपरेशन लोट्स क्यों कामयाब नहीं हुआ? इसका एक कारण तो अशोक गहलोत की प्री इम्प्ट राजनीति रही। उन्होंने संकट को समझ कर तत्काल कदम उठाए थे। अपनी ही सरकार को समर्थन देने वाले तीन निर्दलीय विधायकों पर कार्रवाई की थी, विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगे दो लोगों को पुलिस ने पक़ड़ा था, बगावती तेवर दिखाने वाले पार्टी विधायकों को नोटिस जारी हुए थे और कांग्रेस के सभी विधायकों को एक साथ होटल में रखा और खुद लगातार उनके संपर्क में रहे। उन्होंने केंद्र सरकार के मंत्री तक को नहीं छोड़ा। अपने इन कदमों से उन्होंने सरकार की सुरक्षा सुनिश्चित कर ली थी। उनकी आक्रामक राजनीति के कारण ही सचिन पायलट उनके समर्थक विधायकों को स्पेस नहीं मिल पाया।
इसके बावजूद बड़ा सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने क्यों ऑपरेशन लोट्स को हवा नहीं दी? ध्यान रहे केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम आने के बावजूद भाजपा आलाकमान इस मामले में ज्यादा सक्रिय नहीं दिखा। अशोक गहलोत ने जरूर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का नाम लिया और हरियाणा सरकार पायलट और उनके करीबी विधायकों की मेजबानी भी कर रही थी। परंतु भाजपा पूरे समय एक कदम आगे और दो कदम पीछे की ही राजनीति करती रही। भाजपा ने खुल कर इस बात का प्रयास नहीं किया कि राजस्थान में कांग्रेस टूटे और सरकार गिरे। जिस तरह से भाजपा के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया से खुल कर मिल रहे थे वैसा कुछ पायलट के साथ देखने को नहीं मिला। इसके दो कारण बताए जा रहे हैं। पहला तो यह पायलट इतनी संख्या नहीं जुटा सके, जिससे सरकार के लिए खतरा हो और दूसरे प्रदेश भाजपा की सबसे बड़ी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सरकार गिराने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। बताया जा रहा है कि दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात में उन्होंने ऑपरेशन लोट्स का नफा-नुकसान समझाया। उसके बाद ही चुपचाप बैठने का फैसला हुआ।

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