शुक्रवार, 14 अगस्त 2020



जयपुर। राजस्थान  में पिछले करीब 34 दिन से चल रही सियासी उठा पटक आखिर खत्म हो गई है।गहलोत सरकार  ने सदन में विश्वास मत हासिल कर लिया है। शुक्रवार को सत्ता पक्ष की ओर से विधानसभा में विश्वास मत लाया गया जिसे चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।इसके साथ ही एक लिहाज से देखा जाए तो अब कम से कम 6 महीनों के लिए सरकार से संकट टल गया है। दरअसल, अब 6 महीने तक सदन में विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है। चाहे सरकार खुद विश्वास प्रस्ताव लेकर आए या फिर विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए, दोनों ही स्थितियों में सदन में बहस और वोटिंग होती है। विधानसभा की अध्यक्षीय व्यवस्था के मुताबिक दोनों ही स्थितियों में 6 महीने तक वापस अविश्वास प्रस्ताव  नहीं लाया जा सकता है।ऐसी स्थिति में कम से कम 6 महीनों के लिए सरकार को सुरक्षित कहा जा सकता है।


कहीं ये फौरी राहत तो नहीं!


सरकार ने सदन में विश्वास मत हासिल कर लिया है, लेकिन विपक्ष द्वारा इसे फौरी राहत बताया जा रहा है। विपक्ष की ओर से आया यह बयान हालांकि राजनीतिक मायने ज्यादा रखता है, लेकिन एक स्थिति में संवैधानिक तौर पर भी सरकार पर 6 महीने से पहले दोबारा संकट खड़ा हो सकता है। दरअसल, अगर कोई दल या व्यक्ति राज्यपाल के समक्ष जाकर यह दावा करता है उसके पास सदन में बहुमत लायक संख्या है और सरकार अल्पमत में है तो राज्यपाल द्वारा 6 महीने से पहले भी सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए कहा जा सकता है। भाजपा को लगता है कि गहलोत और पायलट खेमे के बीच करवाई गई सुलह ज्यादा दिन नहीं चलेगी।दोनों के बीच मतभेद बहुत जल्द फिर से उभर कर सामने आएंगे। यही वजह है कि भाजपा विश्वास मत को फौरी राहत बताते हुए इसे सरकार के लिए चंद दिनों की संजीवनी बता रही है।


राज्यपाल की भूमिका पर आमने-सामने


पूरे सियासी प्रकरण में राज्यपाल की भूमिका को लेकर भी पक्ष-विपक्ष में मतभेद सामने आ रहे हैं। सत्ता पक्ष जहां राज्यपाल की भूमिका को पक्षपाती और केन्द्र के दबाव में उठाया गया कदम बता रहा है तो विपक्ष इसे विधिसम्मत करार दे रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यपाल सत्र बुलाने के लिए केबिनेट का फैसला मानने को तो बाध्य हैं, लेकिन अगर सत्र शॉर्ट नोटिस पर बुलाया जाता है तो राज्यपाल इसका कारण पूछ सकता हैं।सरकार द्वारा जो भी प्रस्ताव बार-बार राज्यपाल को भेजे गए उनमें कारण का जिक्र नहीं किया गया. लिहाजा राज्यपाल की आपत्ति नियमों के तहत है। भाजपा भी भले ही बार-बार सरकार के अल्पमत में होने की बात मीडिया में कहती रही हो लेकिन राज्यपाल के समक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाने का जिक्र नहीं किया गया। ना तो सरकार ने शॉर्ट नोटिस पर सत्र बुलाने का वाजिब कारण बताया और ना ही विपक्ष ने सत्र जल्दी बुलाए जाने की मांग की लिहाजा प्रकरण में राज्यपाल का दामन दागों से अछूता रहा। 


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