शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

काँग्रेस में फिर ‘‘आजादी की अगस्त क्राँति’’…!



 इतिहास के दोहराने की तर्ज पर देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल और मुल्क को अंग्रेजों से आजादी दिलाने वाली कांग्रेस में ‘आजादी की अगस्त क्रांति’ शुरू हो गई है, कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई आज से अठहत्तर साल पहले अगस्त 1942 में ‘भारत छोड़ो’ क्राँति के साथ शुरू की थी, जिसके फलस्वरूप पांच साल बाद पन्द्रह अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी शासन से आजाद हो गया था और अब उसी कांग्रेस के बुजुर्गो ने अब अपनी पार्टी को आजादी दिलाने के लिये ‘गाँधी परिवार’ के खिलाफ ‘अगस्त क्राँति’ की शुरूआत की है और गांधी परिवार की मुखिया सोनिया गांधी को सम्मान के साथ पार्टी से मुक्ति का ‘समन’ थमा दिया है, अर्थात् पार्टी के बुजुर्गों को पार्टी को नया जन्म देने की ‘प्रसवपीड़ी’ शुरू हो गई है, जिसके संकेत पार्टी के दो दर्जन बुजुर्गों ने सोनिया जी को पत्र थमाकर दे दिए है।  


इन बुजुर्गों की मुख्य पीड़ा यह है कि गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस का धीरे-धीरे अद्यौपतन हो रहा है, इसलिए पार्टी को कोई ऐसा ‘गैर-गाँधी’ नेतृत्व चाहिए, जो इस बुजुर्ग पार्टी की जवानी लौटा दे। इसी गरज से दो दर्जन बुजुर्ग नेताओं ने सोनिया को एक पत्र लिखा जो उन्हें ‘‘अस्पताल के बिस्तर’’ पर मिला। इस पत्र से कांग्रेस के अघोषित युवराज राहुल जी नाराज हो गए और उन्होंने चिट्ठी लिखने वाले पार्टी के निष्ठावान बुजुर्ग नेताओं पर भाजपा के ईशारे पर उक्त पत्र लिखने का आरोप लगा दिया अर्थात् ‘राजनीतिक तीखी गाली’ उन नेताओं पर चस्पा कर दी। पिछले दिनों कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक मंे यद्यपि इस मामले को ठण्डा करने का भरसक प्रयास किया गया, किंतु लगता है कि आग ठण्डी अवश्य पड़ गई है, किंतु उसकी चिंगारी अभी भी जीवित है, जो किसी भी दिन पुनः विस्फोटक स्थिति पैदा कर सकती है।


पार्टी के जिन बुजुर्ग नेताओं ने इस ‘अगस्त क्रांति’ की शुरूआत की, उनमें सबसे वरिष्ठ कपिल सिब्बल, गुलामन बी आजाद, अनिल शास्त्री, अहमद पटेल, आनंद शर्मा तथा कई राज्यों के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री है। ये नेता पार्टी के पुर्नजन्म के खातिर अपने मौजूदा पद तक छोड़ने को तैयार है, जैसे कपिल सिब्बल ने कहा कि उनके लिए पार्टी का पद नहीं, देश व पार्टी अहम् है। सोनिया गांधी के सबसे निकट माने जाने वाले अहमद पटेल ने तो पार्टी को गांधी पविार से मुक्त कराने की ही मांग रख दी और गैर-गांधी को पार्टी नेतृत्व सौंपने की वकालत कर दी।


जबकि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के सुपुत्र अनिल शास्त्री का कहना है कि गांधी परिवार को सबको साथ लेकर और सबकी राय लेकर पार्टी चलाना चाहिए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री वीरप्पा मोईली ने भी कहा है कि ‘‘मृत कांग्रेस में प्राणों के संचार के लिए नेतृत्व में बदलाव जरूरी हो गया है। यदि यही स्थिति रही तो कुछ ही वर्षों बाद इस पार्टी का नाम लेने वाला भी कोई शेष नही बचेगा।’’ ऐसे ही विचार पार्टी के कई वरिष्ठ सांसदों ने भी व्यक्त किये है।


अब यहां सबसे अहम् सवाल यह है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को किन स्थितियों में पार्टी नेतृत्व के प्रति बगावत के लिए मजबूर किया? तो सच्चाई यह है कि वे स्थितियाँ किसी से भी छुपी नहीं है। इन वरिष्ठ नेताओं को अपने वे दिन याद है जब उनकी युवावस्था के समय तत्कालीन पार्टी नेतृत्व नेहरू-इंदिरा ने इन्हें आगे बढ़ने का मौका दिया था, जिसके कारण वे पार्टी के लिए कुछ कर पाए, आज इनकी तड़प यह है कि आज युवा नेतृत्व को कोई तवज्जोह नही दी जा रही है, पार्टी का युवा वर्ग घुटन भरी जिन्दगी जी रहा है और मजबूरी में उसे पार्टी छोड़कर उन पार्टियों की शरण में जाना पड़ रहा है,


जिसे वे अपनी किशोरावस्था से कोसते आ रहे है, पार्टी के हर युवा नेता में ज्योतिरादित्य या सचिन पायलट जैसा साहस तो है नहीं तो उसे पार्टी में ही रहकर विद्रोह की राह पकड़नी पड़ रही है, इस तरह पार्टी नेतृत्व की अनदेखी के कारण पार्टी की नींव कमजोर होती जा रही है, इसके अलावा समूची पार्टी ने पार्टी नेतृत्व की निष्क्रीयता के कारण बैचेनी व्याप्त हो रही है, एक ओर सत्तारूढ़ भाजपा मोदी के नेतृत्व में मजबूत होती जा रही है, वही दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व ही मोदी जी के ‘कांग्रेस विहीन भारत’ के सपने को साकार करने में जुटा है, अब ऐसे में वरिष्ठ कांग्रेसी चुप कैसे रह सकते है? यह कथित विद्रोह इसी का प्रतिफल है, अब यदि नेतृत्व द्वारा इन दो दर्जन वरिष्ठ बागी नेताओं की उपेक्षा ही गई तो पार्टी का ‘भट्टा’ पूरी तरह बैठ जाएगा।

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