नरेंद्र मोदी कांग्रेस में खत्म होते आतंरिक लोकतंत्र को अपने लिए मुद्दा बनाए रखना चाहते हैं।
हर्षवर्धन त्रिपाठी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक दूरदृष्टि के लिए जाने जाते हैं। भाजपा के पार्टी कार्यालय में पत्रकारों के साथ दीपावली मंगल मिलन कार्यक्रम में मोदी ने एक ऐसा ही एजेंडा आगे बढ़ाने की कोशिश की। उन्होंने पत्रकारों से राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतंत्र का अध्ययन करने को कहा है। जाहिर
है, आंतरिक लोकतंत्र के मुद्दे पर कांग्रेस मुश्किल में फंस जाती है। खासकर ऐसे समय में जब सोनिया गांधी से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी राहुल गांधी के पास जा रही है। राहुल गांधी जल्दी ही कांग्रेस के अध्यक्ष घोषित हो जाएंगे।इसको ऐसे समझें कि कांग्रेस पार्टी घोषित तौर पर इसी तरह चलेगी। मणिशंकर अय्यर ने पहले ही बता दिया है कि कांग्रेस में सोनिया और राहुल गांधी के अलावा कोई कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ सकता। इससे कांग्रेस पर सिर्फ एक परिवार की पार्टी होने का आरोप मजबूती से चिपक जाता है और इसी के साथ आंतरिक लोकतंत्र न होने का संपूर्ण प्रदर्शन भी हो जाता है।दरअसल, 1978 में दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद इंदिरा गांधी ने जिस गलती की शुरुआत की, उसी गलती से फायदा लेने की कोशिश प्रधानमंत्री कर रहे हैं। वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी। और संयोग देखिए कि 1978 में इंदिरा गांधी दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन होती हैं।
कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र
दिल्ली में हुए विशेष अधिवेशन में इंदिरा गांधी पहली बार 1959 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थीं। इंदिरा गांधी के पहली बार और दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बीच में लगातार कांग्रेस के अध्यक्ष बदलते रहे। 1960, 61, 62 और 63 में हुए अधिवेशनों में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1964-67 तक के कामराज, 1968-69 में निजलिंगप्पा, 970-71 में जगजीवन राम, 1974 में शंकर दयाल शर्मा, 1975 से 77 तक देवकांत बरुआ ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला। 1959 से 1978 के कांग्रेस अधिवेशनों में कांग्रेस अध्यक्ष का चेहरा बदलते रहने से कार्यकर्ताओं को पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अहसास होता रहा, ये कहा जा सकता है। जब राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर लगातार नया चेहरा दिखे, तो पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल खड़ा करना मुश्किल हो जाता है। यह आसान सी बात दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर इंदिरा गांधी भूल गईं। 1978 में इंदिरा गांधी दोबारा अध्यक्ष बनीं तो जीवनपर्यन्त कांग्रेस अध्यक्ष बनी रहीं। जबकि, 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लगातार बदलते रहे और पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का अहसास कराते रहे। उस दौरान कांग्रेस में कहने को भी आतंरिक लोकतंत्र बड़ी मुश्किल से बचा दिखता है। इसको ऐसे समझा जा सकता है कि 1978 में इंदिरा गांधी जब दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनीं, तब से लेकर आज तक कांग्रेस के सिर्फ पांच राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए हैं। पूरी 39 साल में सिर्फ पांच पार्टी अध्यक्ष और उसे थोड़ा और विस्तार दें, तो 1978 से 84 तक इंदिरा गांधी, 1985-91 तक राजीव गांधी और 1998 से आज तक सोनिया गांधी। यानी पांच में से भी ज्यादातर समय अध्यक्ष रहने वाले तीन परिवार के ही।
बीच के वर्षो में 1992-96 तक पी वी नरसिंहाराव और 1996-98 तक सीताराम केसरी राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। अब फिर से 2017 में राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी तय माना जा रहा है। अब 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को राष्ट्ीय अध्यक्ष के पैमाने पर आंक लेते हैं। 1980 में पार्टी बनी तो पहले अध्यक्ष बने अटल बिहारी वाजपेयी, उसके बाद 1986 में लालकृष्ण आडवाणी, 1991 में मुरली मनोहर जोशी, 1993 में फिर से लालकृष्ण आडवाणी, 1998 में कुशाभाऊ ठाकरे, 2000 में बंगारू लक्ष्मण, 2001 में जना कृष्णमूर्ति, 2002 में वेंकैया नायडू, 2004 में लालकृष्ण आडवाणी तीसरी बार, 2005 में राजनाथ सिंह, 2010 में नितिन गडकरी, 2013 में दोबारा राजनाथ सिंह और 2014 से अभी तक अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 1978 में इंदिरा गांधी के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के 2 साल बाद बनी भाजपा में 1980 से लेकर 2017 तक यानी 37 साल में 9 अलग-अलग लोग राष्टीय अध्यक्ष बन चुके हैं।
आडवाणी 10 साल तक रहे भाजपा अध्यक्ष
इसमें से सिर्फ लालकृष्ण आडवाणी ही अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके पास 3 बार में करीब 10 साल भाजपा के अध्यक्ष का पद रहा। शायद यही वजह रही कि तीसरी बार जब लालकृष्ण आडवाणी 2004 में अध्यक्ष बने, तो पार्टी में जान नहीं फूंक पाए। उस समय भाजपा में खत्म होते आंतरिक लोकतंत्र को पार्टी का कार्यकर्ता ही नहीं पचा पा रहा था। अब जब ये बात जोर-शोर से मान ली गई है कि मोदी-शाह की जोड़ी ही भाजपा हैं और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बीते जमाने की बात हो गई है।
उसी दौर में सर्वशक्तिमान दिखने वाले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह कह रहे हैं कि मुङो नहीं पता कि मेरे बाद भाजपा का अध्यक्ष कौन होगा और उसी समय मोदी-शाह के मुकाबले खड़े होते राहुल गांधी की ताजपोशी मां सोनिया गांधी करने जा रही हैं। अकसर सामाजिक विश्लेषक यही कहते हैं कि भारतीयों में गुलाम मानसिकता घर कर गई है। चुनावी राजनीति में भी परिवारों के सफल होने को इसका पुख्ता प्रमाण मान लिया जाता है। मगर सामाजिक विश्लेषक एक जरूरी बात भूल जाते हैं कि लोकतंत्र भी भारतीयों में मूल रूप से है। इसीलिए पूर्ण सत्ता के खिलाफ वे खड़े होते हैं। कांग्रेस के विरोध में इस कदर भारतीयों के खड़े होने के पीछे पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का खत्म हो जाना है। और, कांग्रेस में खत्म होते इसी आतंरिक लोकतंत्र को अपने फायदे के लिए प्रधानमंत्री मोदी बनाए रखना चाहते हैं। मां से बेटे के हाथ में आता कांग्रेस अध्यक्ष का ताज मोदी-शाह को मजबूत हथियार दे रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
हर्षवर्धन त्रिपाठी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक दूरदृष्टि के लिए जाने जाते हैं। भाजपा के पार्टी कार्यालय में पत्रकारों के साथ दीपावली मंगल मिलन कार्यक्रम में मोदी ने एक ऐसा ही एजेंडा आगे बढ़ाने की कोशिश की। उन्होंने पत्रकारों से राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतंत्र का अध्ययन करने को कहा है। जाहिर
है, आंतरिक लोकतंत्र के मुद्दे पर कांग्रेस मुश्किल में फंस जाती है। खासकर ऐसे समय में जब सोनिया गांधी से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी राहुल गांधी के पास जा रही है। राहुल गांधी जल्दी ही कांग्रेस के अध्यक्ष घोषित हो जाएंगे।इसको ऐसे समझें कि कांग्रेस पार्टी घोषित तौर पर इसी तरह चलेगी। मणिशंकर अय्यर ने पहले ही बता दिया है कि कांग्रेस में सोनिया और राहुल गांधी के अलावा कोई कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ सकता। इससे कांग्रेस पर सिर्फ एक परिवार की पार्टी होने का आरोप मजबूती से चिपक जाता है और इसी के साथ आंतरिक लोकतंत्र न होने का संपूर्ण प्रदर्शन भी हो जाता है।दरअसल, 1978 में दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद इंदिरा गांधी ने जिस गलती की शुरुआत की, उसी गलती से फायदा लेने की कोशिश प्रधानमंत्री कर रहे हैं। वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी। और संयोग देखिए कि 1978 में इंदिरा गांधी दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन होती हैं।
कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र
दिल्ली में हुए विशेष अधिवेशन में इंदिरा गांधी पहली बार 1959 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थीं। इंदिरा गांधी के पहली बार और दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बीच में लगातार कांग्रेस के अध्यक्ष बदलते रहे। 1960, 61, 62 और 63 में हुए अधिवेशनों में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1964-67 तक के कामराज, 1968-69 में निजलिंगप्पा, 970-71 में जगजीवन राम, 1974 में शंकर दयाल शर्मा, 1975 से 77 तक देवकांत बरुआ ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला। 1959 से 1978 के कांग्रेस अधिवेशनों में कांग्रेस अध्यक्ष का चेहरा बदलते रहने से कार्यकर्ताओं को पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अहसास होता रहा, ये कहा जा सकता है। जब राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर लगातार नया चेहरा दिखे, तो पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल खड़ा करना मुश्किल हो जाता है। यह आसान सी बात दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर इंदिरा गांधी भूल गईं। 1978 में इंदिरा गांधी दोबारा अध्यक्ष बनीं तो जीवनपर्यन्त कांग्रेस अध्यक्ष बनी रहीं। जबकि, 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लगातार बदलते रहे और पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का अहसास कराते रहे। उस दौरान कांग्रेस में कहने को भी आतंरिक लोकतंत्र बड़ी मुश्किल से बचा दिखता है। इसको ऐसे समझा जा सकता है कि 1978 में इंदिरा गांधी जब दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनीं, तब से लेकर आज तक कांग्रेस के सिर्फ पांच राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए हैं। पूरी 39 साल में सिर्फ पांच पार्टी अध्यक्ष और उसे थोड़ा और विस्तार दें, तो 1978 से 84 तक इंदिरा गांधी, 1985-91 तक राजीव गांधी और 1998 से आज तक सोनिया गांधी। यानी पांच में से भी ज्यादातर समय अध्यक्ष रहने वाले तीन परिवार के ही।बीच के वर्षो में 1992-96 तक पी वी नरसिंहाराव और 1996-98 तक सीताराम केसरी राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। अब फिर से 2017 में राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी तय माना जा रहा है। अब 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को राष्ट्ीय अध्यक्ष के पैमाने पर आंक लेते हैं। 1980 में पार्टी बनी तो पहले अध्यक्ष बने अटल बिहारी वाजपेयी, उसके बाद 1986 में लालकृष्ण आडवाणी, 1991 में मुरली मनोहर जोशी, 1993 में फिर से लालकृष्ण आडवाणी, 1998 में कुशाभाऊ ठाकरे, 2000 में बंगारू लक्ष्मण, 2001 में जना कृष्णमूर्ति, 2002 में वेंकैया नायडू, 2004 में लालकृष्ण आडवाणी तीसरी बार, 2005 में राजनाथ सिंह, 2010 में नितिन गडकरी, 2013 में दोबारा राजनाथ सिंह और 2014 से अभी तक अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 1978 में इंदिरा गांधी के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के 2 साल बाद बनी भाजपा में 1980 से लेकर 2017 तक यानी 37 साल में 9 अलग-अलग लोग राष्टीय अध्यक्ष बन चुके हैं।
आडवाणी 10 साल तक रहे भाजपा अध्यक्ष
इसमें से सिर्फ लालकृष्ण आडवाणी ही अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके पास 3 बार में करीब 10 साल भाजपा के अध्यक्ष का पद रहा। शायद यही वजह रही कि तीसरी बार जब लालकृष्ण आडवाणी 2004 में अध्यक्ष बने, तो पार्टी में जान नहीं फूंक पाए। उस समय भाजपा में खत्म होते आंतरिक लोकतंत्र को पार्टी का कार्यकर्ता ही नहीं पचा पा रहा था। अब जब ये बात जोर-शोर से मान ली गई है कि मोदी-शाह की जोड़ी ही भाजपा हैं और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बीते जमाने की बात हो गई है।
उसी दौर में सर्वशक्तिमान दिखने वाले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह कह रहे हैं कि मुङो नहीं पता कि मेरे बाद भाजपा का अध्यक्ष कौन होगा और उसी समय मोदी-शाह के मुकाबले खड़े होते राहुल गांधी की ताजपोशी मां सोनिया गांधी करने जा रही हैं। अकसर सामाजिक विश्लेषक यही कहते हैं कि भारतीयों में गुलाम मानसिकता घर कर गई है। चुनावी राजनीति में भी परिवारों के सफल होने को इसका पुख्ता प्रमाण मान लिया जाता है। मगर सामाजिक विश्लेषक एक जरूरी बात भूल जाते हैं कि लोकतंत्र भी भारतीयों में मूल रूप से है। इसीलिए पूर्ण सत्ता के खिलाफ वे खड़े होते हैं। कांग्रेस के विरोध में इस कदर भारतीयों के खड़े होने के पीछे पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का खत्म हो जाना है। और, कांग्रेस में खत्म होते इसी आतंरिक लोकतंत्र को अपने फायदे के लिए प्रधानमंत्री मोदी बनाए रखना चाहते हैं। मां से बेटे के हाथ में आता कांग्रेस अध्यक्ष का ताज मोदी-शाह को मजबूत हथियार दे रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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