प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक नवंबर को बिहार में चुनाव प्रचार के लिए तीसरे दौरे पर गए थे। उससे पहले 23 और 28 अक्टूबर को उन्होंने तीन-तीन चुनावी सभाएं की थीं। एक नवंबर को उन्होंने चार चुनावी रैलियां कीं। प्रधानमंत्री पहली बार एक नवंबर को अपने पुराने लय में दिखे। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी की पहली रैली में उनका भाषण और देह-भंगिमा सब भाजपा और जदयू कार्यकर्ताओं को निराश करने वाली थी। उनका भाषण रूटीन का और बिल्कुल सरकारी भाषण की तरह था। उसमें चुनावी रंग-ढंग नहीं दिख रहा था। प्रधानमंत्री खुद भी ढीले-ढाले से दिखे, जिसे लेकर बाद में कहा गया कि नवरात्रों के उपवास की तरह ऐसा था। दूसरा दौरा भी औपचारिकता वाला था। हालांकि पहले से ठीक था।
परंतु तीसरे दौरे में प्रधानमंत्री पूरी तरह से लय में दिखे। उन्होंने खूब सारे जुमले बोले। जंगलराज के युवराज वाले जुमले को दोहराते हुए ‘डबल डबल युवराज’ यानी राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ होने का मुद्दा उठाया और इसकी तुलना उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव में बनी राहुल और अखिलेश की जोड़ी से की। यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश के ‘दो लड़कों’ का हस्र हुआ वहीं बिहार में भी होगा। उन्होंने बिहार में बच्चों को डराने के लिए प्रचलित ‘लकड़सुंघवा’ के मिथ का इस्तेमाल किया और कहा कि लोगों को सावधान हो जाना चाहिए नहीं तो ‘लकड़सुंघवा’ आ जाएगा। तीसरे दौरे की दो सभाओं में उनके साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मौजूद थे। उन्होंने नीतीश की जम कर तारीफ की। उन्हें वोट देने और फिर से मुख्यमंत्री बनाने की अपील की। दूसरे चरण से ठीक पहले प्रधानमंत्री के इस तरह लय में लौटने से भाजपा और जदयू के नेता खुश हैं पर कई लोग यह भी कह रहे हैं कि अब देर हो गई है।

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