सोमवार, 2 नवंबर 2020

भारत के सफल नेताओं की त्रासदी


भारत में जैसे नरेंद्र मोदी सफल हैं वैसे ही नीतीश कुमार भी सफल हैं और लालू प्रसाद भी। ज्योति बसु सफल थे तो नवीन पटनायक भी सफल हैं। इनकी सफलता का पैमाना यह है कि इन्होंने लंबे समय तक शासन किया। इन्हें हर बार या अनेक बार चुनावी जीत मिली। जनता ने इन्हें पसंद किया और उन्होंने खूब सत्ता भोगी। भारत में सफलता का यहीं पैमाना है कि कौन कितनी बार विधायक या सांसद बना और कितनी बार मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बना। अभी हाल ही में भाजपा के लोगों ने इस बात का जश्न मनाया कि नरेंद्र मोदी को सरकारी पद पर बैठे हुए या सरकारी ऑफिस संभाले हुए 20 साल हो गए। वे पहले 14 साल के करीब मुख्यमंत्री रहे और अब छह साल से ज्यादा समय से देश के प्रधानमंत्री हैं। यह अपने आप में एक उपलब्धि है। ऐसी उपलब्धि ज्योति बसु के नाम से भी दर्ज है तो नवीन पटनायक और पवन कुमार चामलिंग के नाम से भी दर्ज है।



परंतु कोई यह नहीं बताता है कि इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के अलावा उनकी क्या उपलब्धि रही? असल में चुनावी राजनीति में सफल हुए सारे नेता अपने ही बनाए एक ऐसे मायाजाल में फंस जाते हैं, जिसमें से उनका निकलना संभव नहीं होता है। वे फिर इस बात का आकलन नहीं करते हैं कि वे क्या कर रहे हैं और जो कर रहे हैं, उसे इतिहास में कैसे याद रखा जाएगा। वे सिर्फ यह सोचते हैं कि वे लोकप्रिय हैं, मसीहा हैं, जनता उन्हें पसंद कर रही है, वोट दे रही है और वे सरकार बना रहे हैं। उनके लिए यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि वे चुनाव जितवाएं और यहीं सबसे बड़ी उपलब्धि हो जाती है। इसलिए वे सारे समय चुनाव जीतने की जुगाड़ में लगे रहते हैं। वे खुद भी और उनकी पार्टियां भी चुनाव लड़ने और जीतने की मशीन बन कर रह जाती हैं। आजादी के बाद के शुरुआती अपवादों को छोड़ दें तो यह देश में राजनीतिक रूप से सफल हुए हर नेता की त्रासदी है।



नई सदी शुरू होने के समय से ही नवीन पटनायक ओड़िशा के मुख्यमंत्री हैं। वे लगातार चुनाव जीतने का रिकार्ड बना रहे हैं पर इससे ओड़िशा की चार करोड़ जनता को क्या मिला है? वे तो अब भी कंधे पर अपने परिजनों का शव उठा कर मीलों चल रहे हैं! हर जिला और प्रखंड अस्पताल में सरकार एक एंबुलेंस और शव वाहन उपलब्ध नहीं करा सकी है। कालाहांडी और क्योंझर के जंगलों में अब भी लोग आम की गुठलियां पीस कर खा रहे हैं। उनके जीवन में कुछ नहीं बदला है। कुछ शहरों में अच्छी सड़कें, अच्छी इमारतें जरूर बनीं है पर उसका कोई लाभ राज्य की बहुसंख्यक जनता को नहीं मिल रहा है। ओड़िशा जैसे खनिज संपदा से संपन्न राज्य में 20 साल तक लगातार मुख्यमंत्री रहा नेता चाहे तो हर एक व्यक्ति को संपन्न बना सकता है। परंतु वह ऐसा नहीं करेगा क्योंकि वह सफलता का पैमाना नहीं है और न वह चुनाव जीतने की गारंटी है।


लगातार 15 साल तक राज करने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किस बात पर वोट मांग रहे हैं? इस बात पर कि उनसे पहले का 15 साल जंगलराज था। अपनी 15 साल की उपलब्धियों के नाम पर कुछ सड़कें, पुल और कुछ इमारतें हैं। बाकी सब कुछ पहले से ज्यादा खराब हुआ है। बाढ़ अब पहले से ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। राजधानी पटना में भी बारिश के बाद हालात ऐसे बन रहे हैं कि उप मुख्यमंत्री को हाफपैंट पहन कर परिवार के साथ भाग कर दूसरी जगह शरण लेना पड़ रहा है। बेरोजगारी पहले से कई गुना ज्यादा हो गई है। फैक्टरियां बंद हुईं तो बंद हो गईं। न पुरानी फैक्टरी चालू हुई और न नई फैक्टरी लगी। जो थोड़े चमकते चेहरे बिहार में दिखते हैं या चमकते घर दिखते हैं यकीन मानें वह किसी सरकारी बाबू का होगा या बिहार से बाहर काम करके पैसा कमाने वाले किसी व्यक्ति का होगा।


पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी दस साल से राज कर रही हैं तो उन्होंने बंगाल में क्या बदल दिया? न बंगाल के लोगों के जीवन में कोई गुणात्मक परिवर्तन आया और न बंगाल की राजनीतिक संस्कृति बदली। पहले वामपंथी पार्टियों के गुंडे सब कुछ कंट्रोल करते थे और अपने विरोधियों की हत्या करते थे आज वहीं काम तृणमूल कांग्रेस के गुंडे करते हैं। यह त्रासदी है कि किसी राजनेता का लंबा और सफल करियर आम लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाता है। इनके मुकाबले जिन्हें कम समय के लिए सत्ता मिली उन्होंने देश, समाज और नागरिक का जीवन ज्यादा प्रभावित किया।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें