बुधवार, 18 नवंबर 2020

सरकार के लिए विपक्ष है गैंग



 लोकतंत्र में पार्टियां एक दूसरे की वैचारिक विरोधी होती हैं। एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ती हैं और हारती-जीतती हैं। पर कोई पार्टी दूसरी पार्टी के लिए दुश्मन नहीं होती है। अब तो भारत में वैसे भी वैचारिकता की सारी सीमाएं मिट गए हैं इसलिए पार्टियां वैचारिक विरोधी भी नहीं हैं। पार्टियां चुनावी विरोधी हैं। एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ती हैं और चुनाव बाद आपस में मिल पर सरकार बना लेती हैं। जैसे 2014 में जम्मू कश्मीर में भाजपा और पीडीपी अलग अलग लड़े थे और भाजपा ने पीडीपी को अलगावववादियों का समर्थक बताया था। लेकिन चुनाव के बाद भाजपा ने दो बार उसके साथ ही मिल कर सरकार बना ली। कश्मीर की दूसरी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस पहले भाजपा के साथ रह चुकी है। लेकिन अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को ‘गुपकर गैंग’ बताया है और कहा है कि ये लोग घाटी में आतंकवाद वापस लाना चाहते हैं।


असल में भाजपा ने अपने तमाम विरोधियों को गैंग या गिरोह बना दिया है। राजनीतिक दल हों या छात्र संगठन हों या गैर सरकारी संगठन हों या मीडिया समूह हों, अगर वे सरकार की आलोचना करते हैं तो उनको ब्रांड कर दिया जाता है। जैसे जेएनयू के छात्रों ने सरकार का विरोध किया उन्हें ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का नाम दिया गया। जेएनयू के छात्रों का जिसने भी समर्थन किया उसे ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ का सदस्य बताया गया। इसी तरह कुछ सामाजिक कार्य़कर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों से जुड़े लोगों के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘खान मार्केट गैंग’ का जुमला बोला। यह सब कुल मिला कर विपक्ष और हर किस्म की असहमति की आवाज की साख खराब करने का प्रयास है।


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