क्या नरेंद्र मोदी सरकार के लिए गाय या पशु रक्षा महज राजनीतिक मुद्दा है? इन जानवरों का सचमुच भला हो- क्या यह उसकी चिंता नहीं है? जिस तरह गुपचुप गोवंश और भैंस वंश के पशुओं की हत्या के लिए बिक्री पर लगी रोक को उसने हटाया है, उससे ये सवाल उठे हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले 23 मई को पशुओं से क्रूरता निरोधक अधिनियम-1960 के नियमों में संशोधन किया था। उसके तहत कत्ल के लिए जानवरों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी गई। जो जानवर इस नियम के दायरे में थे उनमें गाय, सांड, भैंस, बछिया, बछड़ा और ऊंट शामिल थे। लेकिन पिछले 30 नवंबर को ये रोक हटा ली गई। दो दिसंबर उस बारे में जारी अधिसूचना सार्वजनिक की गई। वैसे मद्रास हाई कोर्ट ने नए नियमों पर 30 मई को स्टे दिया था। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, तो 30 जुलाई को उसने सारे देश में स्टे की अवधि बढ़ा दी। तब कहा गया कि सरकार नियमों में हुए बदलाव को कानून का हिस्सा बनाने के लिए विधेयक लाएगी। लेकिन अब बदलाव को ही वापस ले लिया गया है। याद रहे कि मई में नियम बदलने की अधिसूचना जारी होने के बाद एनडीए सरकार को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। केरल सहित कई राज्यों ने उसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दी। मगर तब केंद्र ने अपने कदम का जोरदार बचाव किया था।
सवाल है कि छह महीनों में आखिर ऐसा क्या हुआ कि केंद्र ने कदम वापस खींच लिए? नए नियमों का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बहुत खराब असर हुआ। ना सिर्फ इससे पशुपालकों को भारी नुकसान हुआ, बल्कि पशु बिक्री का बाजार लगभग ढह गया। इससे गैर-उपयोगी पशु छूट्टा घूमने लगे। वे खेतों में खड़ी फसलों के लिए समस्या बन गए। इसके खिलाफ कई जगहों से किसान असंतोष की खबरें आईं। लेकिन ये ऐसी बातें हैं, जिनका पूर्वानुमान कदम उठाने के पहले लगाया जा सकता था। लेकिन केंद्र ने इसकी जरूरत नहीं समझी। आरोप है कि उसकी निगाहें गाय से जुड़ी जन भावना पर टिकी रहीं। गोहत्या पर रोक के साथ अन्य पशुओं के प्रति भी हमदर्द होने का संदेश उसने देना चाहा। इससे बेशक गाय लेकर हुआ राजनीतिक ध्रुवीकरण और आगे बढ़ा। यह सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के हित में है। इसीलिए अब यह कहा जा रहा है कि ये हित साधने के बाद पशुओं के लिए सरकार की हमदर्दी खत्म हो गई है।
सवाल है कि छह महीनों में आखिर ऐसा क्या हुआ कि केंद्र ने कदम वापस खींच लिए? नए नियमों का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बहुत खराब असर हुआ। ना सिर्फ इससे पशुपालकों को भारी नुकसान हुआ, बल्कि पशु बिक्री का बाजार लगभग ढह गया। इससे गैर-उपयोगी पशु छूट्टा घूमने लगे। वे खेतों में खड़ी फसलों के लिए समस्या बन गए। इसके खिलाफ कई जगहों से किसान असंतोष की खबरें आईं। लेकिन ये ऐसी बातें हैं, जिनका पूर्वानुमान कदम उठाने के पहले लगाया जा सकता था। लेकिन केंद्र ने इसकी जरूरत नहीं समझी। आरोप है कि उसकी निगाहें गाय से जुड़ी जन भावना पर टिकी रहीं। गोहत्या पर रोक के साथ अन्य पशुओं के प्रति भी हमदर्द होने का संदेश उसने देना चाहा। इससे बेशक गाय लेकर हुआ राजनीतिक ध्रुवीकरण और आगे बढ़ा। यह सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के हित में है। इसीलिए अब यह कहा जा रहा है कि ये हित साधने के बाद पशुओं के लिए सरकार की हमदर्दी खत्म हो गई है।

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