वाह रे, मेरे प्यारे देश। क्या बताऊं तुझे, मैं आज तेरे बारे में। जिन धर्मों के कारण तू विश्व शान्ति का प्रतीक माना जाता था, जिन धर्मों से तुझमें अपार प्रेम का सागर उमड़ता था, जिन धर्मों से तुझमें सकारात्मकता से परिपूर्ण उर्जा, उत्साह, उल्लास और उमंग की अनंत धाराएं प्रवाहित होती थी और तुझमें बसे अनेकों तरह के धर्म, अनेको प्रकार की जातियां और बहुत सी विभिन्नताएं सभी मिलकर पूर्ण एकता और अखंडता का बोध कराते थे। क्या-क्या याद करूं मै, तेरी इन यादों को।
लेकिन वो सब अब कहां चला गया ए मेरे प्यारे देश। ये अब सिर्फ यादें ही बनकर रह गयी है।मेरे प्यारे देश आज तुझे मै क्या संज्ञा दूं। तुझे अभागा कहना भी पूरी तरह से सही नहीं है। लेकिन मेरा मन आज तुझे अभागे देश की ही संज्ञा दे पा रहा है।
ओ अभागे सुन आज तुझमें कितने कीड़े पड़ गये है। जो उस धर्म के नाम पर (जिनका वर्णन ऊपर दिया गया है) तुझे लूटते जा रहे है। तेरे शरीर पर हर तरह के अनेकों छेद किये जा रहें है। इतना ही नहीं अभागे.....। तेरी अखंडता में से ‘अ’ को हटाकर उसे एकता में ‘न’ के साथ जोड़कर तेरे ही गुणों से छेड़छाड़ करके तुझे अपमानित किया जा रहा है। जिससे तुझमें खंडता और अनेकता का समावेश हो गया है। अरे कब समझाएगा इन कीड़ो को मेरे भारत ?
आज तुझमें पल रहे करोड़ो-अरबों लोगों की क्या दशा और क्या दिशा है? कहाँ गये तेरे भगत, राजगुरू और सुखदेव। कहाँ गये वो बिस्मिल और आजाद। उनका भी तो कोई धर्म होगा, कोई जात होगी, कोई स्वार्थ होगा, कोई सपना होगा। ....... हां ये सब था उनके पास भी। लेकिन उनकी और आज तुझमें पल रहें कीड़ों, मंडरा रहें मच्छर-मक्खियों की सोच में अंतर का मामला जरूर है, मेरे भारत।
जहां एक ओर उन अभागों ने अपनी पूरी जवानी भी नहीं देखी थी। तेरे बहते आँसूओं को पोंछने के लिए, गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए, तुझे फिर से सोने की चिड़ियाँ बनाने के लिए, उन अभागें दीवानों ने तो अपनी जात-धर्म सब भूल-भालकर, तुझे ही अपना सब कुछ दे दिया था और तेरी इस तरह सेवा करना ही अपना धर्म माना। देशधर्म। लेकिन आज अफसोस है कि साईकिल का पहिया सामने की बजाय पीछे की ओर चलने लगा है। देशधर्म को भी सैकड़ो टुकड़ों में खंडित करने की कोषिषे की जाती है। आओ रे कोई अब भगत, राजगुरू, सुखदेव भी तो बनों।
तड़पता हूं ऐ भारत तेरे जिस्म के जख्म देखकर। जहां तेरे रोम-रोम में एक डर सा समाता जा रहा है। धर्म के नाम पर हमें भड़काया जा रहा है। बहकाया जा रहा है। डरा-धमकाकर हमारे मान-सम्मान को वैश्विक बाज़ारों के खुले चैराहों पर बेचा जा रहा हैं। आस्था के नाम पर नरक रूपी स्वर्ग में भेजा जा रहा है। पाप रूपी धर्म कराया जा रहा है। हिंसा रूपी अहिंसा का संदेश दिया जा रहा है। ओ रे अभागे इतना ही नहीं तेरे जिस्म के जख्मों के भी पार जाकर तेरी ‘‘नारी’’ रूपी आत्मा को भी प्रताड़ित किया जा रहा है इसी धर्मान्धता की आड़ में। तुझमें पलने वाले वो संत-महात्मा कहां गये। जिनकी आस्था से, श्रद्धा से तेरे लाखों-करोड़ों श्रद्धालु जुड़े हुए हैं। आज तो उनकी श्रद्धा के साथ भी गद्दारी की जा रही है, कुछ जहरीले विधर्मी बिच्छुओं के ही हाथों। हाय रे... शायद आज वो संत-महात्मा भी अभागे बन चुके है। जो तेरी आत्मा ‘‘नारी’’ को पूजते थे। जहां तेरी ये आत्मा पूरे विष्व जगत में अपनी मान-मर्यादा के कारण प्रसिद्ध थी। पूजी जाती थी।
घावों पर नमक छिड़क जाता है, हाय रे, आज वहीं पर ये आत्मा अपनी मान-मर्यादा रूपी साड़ी को कफन में देखने को विवश हो रही है और पूजी नहीं जा रही बल्कि तेरी ही आत्मा को तेरे धर्मान्धता राक्षस तरह-तरह के नाच नचा रहे है। और वो भी विवश है। अफसोंस........ रे भारत तेरी आत्मा का (नारियों)।
अरे भारत तुझे कुछ समझ में तो आ रहा है न कि तेरी बिमारी क्या है? कोई इलाज, कोई दवा ढूंढ इन बीमारियों को मिटाने के लिए। ये सब तेरी श्रेष्ठता की चिंता किये बगैर ही, अपने को श्रेष्ठ बनाकर तुझ पर अधिकार करना चाहतें है, तेरी प्रबल शक्ति (धर्म) को हथियार बनाकर तुझ पर ही वार करना चाहते हैं। अपनी-अपनी राजनीति चमकाना चाहते है। और फिर तुझे लूट-पाट कर तेरे उस फिरंगी दुश्मन ब्रिटेन (लंदन), जिसने तुझे लगभग 200 वर्षों तक गुलाम रखा, तुझे जमकर लूटा। उस कमीने की चड्डी में घुस कर अपने ऐश-अय्याशी में डूबकर दुनियां में तेरी नाजुकता और भोलेपन का मज़ाक उड़ायेंगे। ऐ भारत ये तो मै तुझसे सिर्फ धर्म के मामलें में ही बात कर रहा हूं रे अभागे। वैसे तो इन कीडों ने कितने ही मामले बना रखे होंगे, तुझे तड़पाने के लिए। खै़र अभी तो मै केवल तुझे धर्म की ही जानकारी दे रहा हूं। और जानकारी भी इसलिए दे रहा हूं। क्यूंकि या तो तुझमें इतनी सहनशक्ति आ गयी कि तू ये सब सह रहा है, या फिर तू अपने लिए बनाये कानूनों को भी भूल चुका है। तुझे भी अब चुप नहीं बैठना है। जाग अब तो जाग, अब जागने का समय आ गया है रे भारत।
मै भी तुझमें निवास करने वाला हूँ। तेरी अखंडता को, एकता को, वापस बनाना चाहता हूँ। क्यूंकि मै भी तो तेरे शरीर का ही हिस्सा हूँ ना। छोटा हूँ तो क्या हुआ लेकिन दर्द मुझे भी होता है। तड़पता मै भी हूं। जलता हूं। छटपटाता हूं लेकिन मुझे भी संकोच है कि आखिर मैं एक मिट्टी के कण जितने प्राणी सा क्या तेरे गद्दारों के विरूद्ध खड़ा रह पाऊंगा। लेकिन मै खड़ा होऊंगा उन सभी गद्दार कीड़ों के विरूद्ध जो अब बड़े विषधारी बिच्छू का रूप धारण कर रहें है। क्या हुआ मै मिट्टी का कण हूं तो। मेरे जैसे ही तुझमें और भी तो कण होंगे ही न। करोड़ो। करोड़ों में से भी लाखों कण मिल भी तो सकते है न। तुझ पर अपना लेप लगा कर तेरा रोग मिटाने के लिए।
मुझे पता है मेरी ये छोटी सी चेतना तुझे कड़वी लगी होगी। ये है भी कड़वी। लेकिन अब मै तुझसे कसम खाता हूँ कि इन धर्मान्धता रूपी कीड़े-बिच्छूओं को, भ्रमित मच्छर-मक्खियों को हटाने के लिए तेरे ही कणों के साथ, तुझमें निवास करने वाले मेरे साथियों के साथ मिलकर तेरी अखंडता, एकता, मान-मर्यादा और तेरी आस्था तुझे वापस लौटाने के लिए अब मै बिल्कुल तैयार हूँ, लेकिन ये तेरे साथ के बिना अधूरा है। तू बस मुझे अपना साथ दे, प्यार दे। जिससे मै तुझे अभागे देश से फिर से प्यारा देश बनाने की कोशिशे कर पांऊ और लड़ पांऊ।
जय हिंद, जय भारत।
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