नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के प्रति बेरहमी दिखाने और आंदोलन को बदनाम करने के लिए प्रचार अभियान छेड़ने वाली केंद्र सरकार के पास क्या इस बात कोई जवाब है कि किसानों के लिए बनाई गई योजनाओं को पूरा करने में उसने वैसी ही तत्परता क्यों नहीं दिखाई है? इस हाल में अगर किसान सरकार की नीयत पर शक करते हैं, तो क्या इसका दोष उन्हें दिया जाना चाहिए? इस बात पर गौर कीजिए। कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) मंडियों की पहुंच से दूर कई किसानों, खास कर छोटे एवं सीमांत कृषकों को लाभ पहुंचाने के लिए ग्रामीण हाटों को कृषि बाजार में परिवर्तित करने की योजना खुद सरकार ने बनाई थी। लेकिन वह अब भी ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। एक वेबसाइट ने इस बारे में आरटीआई के जरिए सूचना हासिल की। इसके मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के 22,000 हाटों को ग्रामीण कृषि बाजार बनाना का लक्ष्य रखा था।
लेकिन अब तक एक भी हाट को कृषि बाजार में परिवर्तित या विकसित नहीं किया जा सका है। यह किसानों को बेहतर कृषि बाजार देने के केंद्र एवं राज्य सरकारों के दावों पर सवालिया निशान खड़े करता है। किसानों की आय दोगुनी करने लिए बनी समिति की सिफारिश को स्वीकार करते हुए सरकार ने 2018-19 के बजट में घोषणा की थी कि कृषि उत्पादों की बिक्री तंत्र को मजबूत करने के लिए देश भर के 22,000 ग्रामीण हाटों को कृषि बाजार में तब्दील किया जाएगा। कहा गया कि जो किसान एपीएमसी मंडियों तक नहीं पहुंच पाते हैं, वे अपने नजदीक इन हाटों में फसल बेचकर लाभकारी मूल्य प्राप्त कर सकेंगे। इसमें से 10,000 ग्रामीण कृषि बाजारों में मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए सरकार ने नाबार्ड के अधीन 2,000 करोड़ रुपये के एग्री-मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (एएमआईएफ) को मंजूरी दी थी। इस फंड का उद्देश्य राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को सस्ती दर (करीब छह फीसदी) पर लोन देना है, ताकि वे इस पैसे का इस्तेमाल कर अपने यहां के हाटों को कृषि बाजार में परिवर्तित कर सकें। नाबार्ड के मुताबिक इस फंड को प्राप्त करने के लिए अभी तक एक भी राज्य ने प्रस्ताव नहीं भेजा है। जबकि 31 मार्च 2020 तक राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के भेजे प्रस्तावों और उनके सत्यापन के बाद इस योजना के तहत फंड दिया जाने वाला था। तो किसानों का हित साधने के लिए सरकार के उत्साह की असली तस्वीर यह है।

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