शुक्रवार, 30 जून 2017

जानते हैं भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार की फीस कितनी है?

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री भारत में हर साल करीब 140 फिल्में रिलीज करती है। उत्तर प्रदेश-बिहार-उत्तराखंड के कई हिस्सों में ये फिल्में खूब धूम मचाती है। पर इनकी कमाई और इनके अभिनेताओं की कमाई कितनी होती है, इस पर शायद ही किसी की नजर जाती है।
अबतक भोजपुरी इंडस्ट्री की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म मनोज तिवारी की 'ससुरा बड़ा पइसा वाला' है। इसकी कमाई 20 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई थी। क्या आप जानते हैं इन फिल्मों के अभिनेता एक फिल्म का कितना पैसा लेते हैं? 
मनोज तिवारी
मनोज तिवारी को कौन नहीं जानता एक ओर तो वे अब राजनेता बन चुके हैं और अभी वह दिल्‍ली भाजपा के अध्यक्ष हैं। लेकिन आज भी वह भोजपुरी फिल्मों के सबसे महंगे अभिनेता हैं, उनकी एक फिल्म की फीस 50 से 55 लाख की है। फिल्मों के लिए मनोज तिवारी मौका निकाल कर दिल्ली से पटना जाते हैं। वहां से फिल्में कर के लौट आते हैं।
हालांकि अब उनका कैरियर ढलान पर हैं, लेकिन बावजूद इसके इनकी फीस कम नहीं हो रही है। उनकी आखिरी फिल्में अंधा कौन और यादव जी पान वाले हैं और अब वे फिल्मों में काम कम और राजनीति में अपनी पहचान मजबूत करेगे। मनोज ने ससुरा बड़ा पइसा वाला से कदम रखा था और इसके बाद वे हिट होते गए।

रवि किशन
बॉलीवुड फिल्मों से असफल होकर भोजपुरी फिल्मों का रुख करने वाले रवि किशन आज भी 15 से 20 भोजपुरी फिल्मों कर लेते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं कि उनका स्वर्णिम दौर अब निकल चुका है। लेकिन भोजपुरी के सुपर स्टार कहे जाने वाले रवि किशन की फीस है 50 लाख और रवि ने अपनी फीस नहीं घटाई है।

एक दौर में वे भोजपुरी फिल्मों के बिग बी जैसी उपाधियां पाने लगे थे। लेकिन पिछले साल उनकी 'लव और राजनीति' और 2015 में 'पंडित जी बताई न बियाह कब होई 2' ही आ पाईं। बताया जाता है कि इन दिनों रविकिशन फिर से बॉलीवुड और दक्षिण के सिनेमा में लौट गए हैं और वहीं व्यस्त हैं।

पवन सिंह
इनकी फीस 45 से 50 लाख है और ये भी गायकी के रास्ते अभिनेता बने। इसी लीक पर चलकर पवन ‌सिंह ने सबसे अधिक ख्याति बटोरी है। वह एक समय पर सबसे अधिक महंगे गायक और फिलहाल भोजपुरी के सबसे ख्यातिप्राप्त अभिनेता हैं।

इन दिनों आप कई बार टीवी पर श्री जंगरोधक सिमेंट के विज्ञापन में देखते होंगे। उन्होंने कम समय में इतनी उचाई छूने का रिकॉर्ड बनाया है। पिछले साल उनकी फिल्म गदर ने खूब धूम मचायी। पिछले साल वह भोजपुरी इंडस्ट्री से सबसे अधिक टैक्स चुकाने वाले शख्स रहे।

खेसारी लाल यादव
फीस 35 से 40 लाख यह भोजपुरी इंडस्ट्री के तेज तर्रार अभिनेताओं में गिने जाते हैं। यह बॉलीवुड के अभिनेताओं के पदचह्नों पर चलते हुए फिल्मों से होने वाले मुनाफों में अपना हिस्सा मांगते हैं। फिर भी उनकी आम फीस 35 से 40 लाख रुपये है।

फिलहाल भोजपुरी इंडस्ट्री में खेसारी सबसे अधिक मांग वाले अभिनेता हैं। फिल्मों के मामलों में वह बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार से भी आगे हैं। पिछले साल उनकी छह फिल्में रिलीज हुईं।

खिलाड़ी, साजन चले ससुराल 2, होगी प्यार की जीत, दंबग आशिक, जलवा, दिलवाला. फिल्मों के नाम सुनने में आपको बॉलीवुडी लगेंगे। ‌इनकी फिल्‍में भी बॉलीवुड की तरह ही होती हैं। इनकी बाकी फिल्में भी आपको शोला और शबनम, लहू के दो रंग, कच्चे धागे, बंधन, प्रेम रोग आदि हैं।

दिनेश लाल यादव निरहुआ
दिनेश लाल यादव जिन्हें लोग निरहुआ नाम से भी जानते हैं। इनकी फीस 10 लाख रुपये है। ये वो अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने कैरियर के साथ अपनी फीस घटाई बढ़ाई। फिलहाल यह अपनी हर फिल्म के लिए 10 लाख रुपये लेते हैं। दिनेश ने भी गायकी के रास्ते फिल्मों में जगह बनाई। बाद में बिग बॉस और निरहुआ सिरीज की फिल्मों में इन्होंने अपनी पहचान देशव्यापी कर ली है।

40 साल के सफर के बाद मुकाम पर GST, आज की रात ऐतिहासिक

संसद के केंद्रीय कक्ष में मध्यरात्रि को घंटा बजने के साथ ही पूरा देश आर्थिक तौर पर एक इकाई में बदल जाएगा।संसद के केंद्रीय कक्ष में मध्यरात्रि को घंटा बजने के साथ ही पूरा देश आर्थिक तौर पर एक इकाई में बदल जाएगा।
नई  71 साल पहले 15 अगस्त 1947 को देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। लालकिले की ऐतिहासिक प्राचीर से यूनियन जैक उतर चुका था। तिरंगा शान से लहरा रहा था। राजनीतिक आजादी के साथ देश विकास के रास्ते पर आगे बढ़ने की योजना बनाने लगा। तमाम तरह की अड़चनों के बावजूद देश आगे बढ़ रहा था, लेकिन उन सबके बीच सुधारों की संभावनाओं को जन्म भी दे रहा था। देश की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में समय-समय पर बदलाव की जरूरत महसूस की गई। अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार की दिशा में पहली बार 1978 में गंभीरता से मंथन हुआ। करीब चालीस साल के बाद देश के राजनेताओं में ये सहमति बनी कि अब देश को एक आर्थिक इकाई में बदलने की जरूरत है। लेकिन अप्रत्यक्ष करों के सफरनामे पर जाने से पहले ये जानना जरूरी है कि 30 जून और 1 जुलाई की मध्यरात्रि क्यों महत्वपूर्ण है।
आज की रात ऐतिहासिक है। संसद के केंद्रीय कक्ष में घंटा बजाने के साथ ही पूरे देश में एक कर व्यवस्था लागू हो जाएगा। देश के राज्यों की सीमाएं भले ही एक-दूसरे को अलग करती हों। लेकिन आर्थिक रूप से पूरा देश एक इकाई में बदल जाएगा। संसद के विशेष सत्र में जिस वक्त जीएसटी लागू होगा वो उस तस्वीर को याद दिला रहा होगा, जब देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने देश के साथ एक वादा किया था। पीएम नरेंद्र मोदी उस ऐतिहासिक क्षण पर देश को संबोधित करेंगे, जिस पर पूरे देश की निगाह टिकी है। लेकिन उस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने से पहले ये जानना भी जरूरी है कि जीएसटी को मंजिल पर पहुंचने के लिए जमीन पर सफर तय करने में कितना समय लगा।
 
जीएसटी का सफरनामा
1978- एल के झा की अगुवाई में एक समिति ने अप्रत्यक्ष कर को मॉडिफाइड वैल्यू एडेड टैक्स (MODVAT) में बदलने का सुझाव दिया था। एल के झा लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव होने के साथ-साथ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर भी थे।
1986-  राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री रहे वी पी सिंह ने बजट में मॉडिफाइड वैल्यू एडेड टैक्स (MODVAT) को शामिल किया। इस पूरी कवायद का मकसद था कि उत्पादनकर्ता को कंपोनेंट और कच्चे माल पर अदा किए जाने वाले एक्साइज ड्यूटी की जल्द से जल्द भरपाई की जा सके। इसके साथ ग्राहकों को महंगाई से राहत दिलाई जा सके।
1991-92- पी वी नरसिंहाराव सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने राजा चेलैय्या की अध्यक्षता में टैक्स रिफॉर्म कमीशन बनाया। आयोग ने माडवैट (MODVAT) की जगह वैट और सर्विस टैक्स लागू करने का सुझाव दिया। सेवाओं को 1994 में पहली बार टैक्स के दायरे में लाया गया।
1997- एच डी देवेगौड़ा की यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने अपना ड्रीम बजट पेश किया। उन्होंने पीक कस्टम ड्यूटी को 50 फीसद से 40 फीसद करने का फैसला किया। इसके अलावा टैक्स संरचना में और सुधार करने पर जोर दिया।
1999- अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने टैक्स सुधार की दिशा में काम करना शुरू किया। केंद्र और राज्यों के बीच सेल्स टैक्स को लेकर जो विवाद पहले से चल रहा था उसे खत्म करने की कोशिश की गई। टैक्स की जटिल प्रणाली को सरल बनाने की पहल हुई। संघीय ढांचे का सम्मान करते हुए पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता की अगुवाई में एक एंपावर्ड कमेटी का गठन किया और पूरे देश में वैट लागू करने की योजना पर काम शुरू हुआ।
2001-02-  एक अप्रैल 2002 को वैट को लागू करने का फैसला किया गया। लेकिन भाजपा शासित राज्यों के साथ-साथ दूसरे राज्यों के विरोध की वजह से इसे एक साल के लिए टाल दिया गया।
2003- अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने विजय केलकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इस समिति ने फिस्कल रेस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (FRBM) एक्ट का सुझाव दिया। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स का पहला स्वरूप तय हुआ। कमेटी ने राज्यों के लिए 7 फीसद और केंद्र के लिए 5 फीसद टैक्स तय करने का सुझाव दिया गया। इसके साथ ही वैट को 1 अप्रैल 2005 तक के लिए टाल दिया गया।
2005- एक अप्रैल 2005 को स्टेट वैट लागू किया गया।
2007- वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बजट स्पीच में अप्रैल 2010 से जीएसटी लागू करने का ऐलान किया। इसके लिए एक एंपावर्ड कमेटी का गठन किया गया। आम सहमति बनाने के लिए असीम दासगुप्ता और सुशील कुमार मोदी राज्यों के प्रतिनिधियों से मिलकर आम सहमति बनाने में जुट गए ।
2009- वित्त मंत्री के सलाहकार पार्थसारथी शोम ने जीएसटी पर पहला पेपर पेश किया।
2009-10- जीएसटी को शामिल करने के लिए 13वें वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस के दायरे को बढ़ाया गया। आयोग ने राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई का सुझाव दिया।
2011- वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीएसटी फ्रेमवर्क के लिए 115वां संविधान संशोधन बिल पेश किया। यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली स्थाई समिति को ये बिल भेजा गया। स्थाई समिति ने 2013 में रिपोर्ट पेश की। लेकिन भाजपा शासित राज्यों और तमिलनाडु ने बिल का जबरदस्त विरोध किया।
2013-14- यूपीए सरकार जीएसटी बिल को संसद से पारित कराने में नाकाम रही। लेकिन इंफोसिस के पूर्व सीइओ नंदन नीलेकणि की अगुवाई वाली कमेटी ने द गुड्स एंड सर्विसेज टैक्सेशन नेटवर्क को प्रमोट करने की संस्तुति की।
2014-15- वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिसंबर 2014 में लोकसभा में जीएसटी से संबंधित संशोधन बिल पेश किया जिसे 2015 में लोकसभा ने पारित कर दिया। लोकसभा से बिल को पारित होने के बाद राज्य सभा की सलेक्ट कमेटी को भेजा गया।
2016- राज्यसभा ने जीएसटी बिल को पारित कर दिया, इसके साथ ही अलग-अलग तरह के सामानों की दरों को निर्धारित करने के लिए जीएसटी काउंसिल का गठन किया गया। सरकार की मंशा थी कि एक अप्रैल 2017 से जीएसटी को लागू किया जाए, लेकिन बाद में उस तिथि में बदलाव किया गया।
2017- वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अलग-अलग दलों के कद्दावर नेताओं और राज्यों से लगातार बातचीत की और जीएसटी को एक जुलाई 2017 से लागू करने का ऐलान किया।
 । 71 साल पहले 15 अगस्त 1947 को देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। लालकिले की ऐतिहासिक प्राचीर से यूनियन जैक उतर चुका था। तिरंगा शान से लहरा रहा था। राजनीतिक आजादी के साथ देश विकास के रास्ते पर आगे बढ़ने की योजना बनाने लगा। तमाम तरह की अड़चनों के बावजूद देश आगे बढ़ रहा था, लेकिन उन सबके बीच सुधारों की संभावनाओं को जन्म भी दे रहा था। देश की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में समय-समय पर बदलाव की जरूरत महसूस की गई। अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार की दिशा में पहली बार 1978 में गंभीरता से मंथन हुआ। करीब चालीस साल के बाद देश के राजनेताओं में ये सहमति बनी कि अब देश को एक आर्थिक इकाई में बदलने की जरूरत है। लेकिन अप्रत्यक्ष करों के सफरनामे पर जाने से पहले ये जानना जरूरी है कि 30 जून और 1 जुलाई की मध्यरात्रि क्यों महत्वपूर्ण है।
आज की रात ऐतिहासिक है। संसद के केंद्रीय कक्ष में घंटा बजाने के साथ ही पूरे देश में एक कर व्यवस्था लागू हो जाएगा। देश के राज्यों की सीमाएं भले ही एक-दूसरे को अलग करती हों। लेकिन आर्थिक रूप से पूरा देश एक इकाई में बदल जाएगा। संसद के विशेष सत्र में जिस वक्त जीएसटी लागू होगा वो उस तस्वीर को याद दिला रहा होगा, जब देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने देश के साथ एक वादा किया था। पीएम नरेंद्र मोदी उस ऐतिहासिक क्षण पर देश को संबोधित करेंगे, जिस पर पूरे देश की निगाह टिकी है। लेकिन उस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने से पहले ये जानना भी जरूरी है कि जीएसटी को मंजिल पर पहुंचने के लिए जमीन पर सफर तय करने में कितना समय लगा।
 
जीएसटी का सफरनामा
1978- एल के झा की अगुवाई में एक समिति ने अप्रत्यक्ष कर को मॉडिफाइड वैल्यू एडेड टैक्स (MODVAT) में बदलने का सुझाव दिया था। एल के झा लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव होने के साथ-साथ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर भी थे।
1986-  राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री रहे वी पी सिंह ने बजट में मॉडिफाइड वैल्यू एडेड टैक्स (MODVAT) को शामिल किया। इस पूरी कवायद का मकसद था कि उत्पादनकर्ता को कंपोनेंट और कच्चे माल पर अदा किए जाने वाले एक्साइज ड्यूटी की जल्द से जल्द भरपाई की जा सके। इसके साथ ग्राहकों को महंगाई से राहत दिलाई जा सके।
1991-92- पी वी नरसिंहाराव सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने राजा चेलैय्या की अध्यक्षता में टैक्स रिफॉर्म कमीशन बनाया। आयोग ने माडवैट (MODVAT) की जगह वैट और सर्विस टैक्स लागू करने का सुझाव दिया। सेवाओं को 1994 में पहली बार टैक्स के दायरे में लाया गया।
1997- एच डी देवेगौड़ा की यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने अपना ड्रीम बजट पेश किया। उन्होंने पीक कस्टम ड्यूटी को 50 फीसद से 40 फीसद करने का फैसला किया। इसके अलावा टैक्स संरचना में और सुधार करने पर जोर दिया।
1999- अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने टैक्स सुधार की दिशा में काम करना शुरू किया। केंद्र और राज्यों के बीच सेल्स टैक्स को लेकर जो विवाद पहले से चल रहा था उसे खत्म करने की कोशिश की गई। टैक्स की जटिल प्रणाली को सरल बनाने की पहल हुई। संघीय ढांचे का सम्मान करते हुए पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता की अगुवाई में एक एंपावर्ड कमेटी का गठन किया और पूरे देश में वैट लागू करने की योजना पर काम शुरू हुआ।
2001-02-  एक अप्रैल 2002 को वैट को लागू करने का फैसला किया गया। लेकिन भाजपा शासित राज्यों के साथ-साथ दूसरे राज्यों के विरोध की वजह से इसे एक साल के लिए टाल दिया गया।
2003- अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने विजय केलकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इस समिति ने फिस्कल रेस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (FRBM) एक्ट का सुझाव दिया। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स का पहला स्वरूप तय हुआ। कमेटी ने राज्यों के लिए 7 फीसद और केंद्र के लिए 5 फीसद टैक्स तय करने का सुझाव दिया गया। इसके साथ ही वैट को 1 अप्रैल 2005 तक के लिए टाल दिया गया।
2005- एक अप्रैल 2005 को स्टेट वैट लागू किया गया।
2007- वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बजट स्पीच में अप्रैल 2010 से जीएसटी लागू करने का ऐलान किया। इसके लिए एक एंपावर्ड कमेटी का गठन किया गया। आम सहमति बनाने के लिए असीम दासगुप्ता और सुशील कुमार मोदी राज्यों के प्रतिनिधियों से मिलकर आम सहमति बनाने में जुट गए ।
2009- वित्त मंत्री के सलाहकार पार्थसारथी शोम ने जीएसटी पर पहला पेपर पेश किया।
2009-10- जीएसटी को शामिल करने के लिए 13वें वित्त आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस के दायरे को बढ़ाया गया। आयोग ने राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई का सुझाव दिया।
2011- वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीएसटी फ्रेमवर्क के लिए 115वां संविधान संशोधन बिल पेश किया। यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली स्थाई समिति को ये बिल भेजा गया। स्थाई समिति ने 2013 में रिपोर्ट पेश की। लेकिन भाजपा शासित राज्यों और तमिलनाडु ने बिल का जबरदस्त विरोध किया।
2013-14- यूपीए सरकार जीएसटी बिल को संसद से पारित कराने में नाकाम रही। लेकिन इंफोसिस के पूर्व सीइओ नंदन नीलेकणि की अगुवाई वाली कमेटी ने द गुड्स एंड सर्विसेज टैक्सेशन नेटवर्क को प्रमोट करने की संस्तुति की।
2014-15- वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिसंबर 2014 में लोकसभा में जीएसटी से संबंधित संशोधन बिल पेश किया जिसे 2015 में लोकसभा ने पारित कर दिया। लोकसभा से बिल को पारित होने के बाद राज्य सभा की सलेक्ट कमेटी को भेजा गया।
2016- राज्यसभा ने जीएसटी बिल को पारित कर दिया, इसके साथ ही अलग-अलग तरह के सामानों की दरों को निर्धारित करने के लिए जीएसटी काउंसिल का गठन किया गया। सरकार की मंशा थी कि एक अप्रैल 2017 से जीएसटी को लागू किया जाए, लेकिन बाद में उस तिथि में बदलाव किया गया।
2017- वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अलग-अलग दलों के कद्दावर नेताओं और राज्यों से लगातार बातचीत की और जीएसटी को एक जुलाई 2017 से लागू करने का ऐलान किया।

मंगलवार, 27 जून 2017

मोदी का 'ट्रंप कार्ड': भारत को अमेरिका से मिलेगा गार्जियन ड्रोन, छुड़ाएगा दुश्मनों के छक्के

वाशिंगटन, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आज अपने रक्षा सहयोग को और प्रगाढ़ करने का संकल्प लिया और अमेरिका ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाने में सक्षम गार्जियन ड्रोन की बिक्री भारत को करने की मंजूरी दे दी।
व्हाइट हाउस में आयोजित भारत अमेरिका शिखर सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि अमेरिका के करीबी सहयोगियों की तर्ज पर ही अमेरिका और भारत ने एक समान स्तर पर अत्याधुनिक रक्षा उपकरण एवं प्रौद्योगिकी पर मिलकर काम करने की उम्मीद जतायी।
इसके अनुसार, अमेरिका के अहम सहयोगी के तौर पर भारत की मान्यता को स्वीकारते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा व सुरक्षा सहयोग प्रगाढ़ करने का संकल्प जताया। 
संयुक्त बयान के अनुसार, इसी भागीदारी को प्रदशर्ति करते हुए अमेरिका ने समुद्री रक्षा से संबंधित सी गार्जियन अनमैन्ड एरियल सिस्टम्स की बिक्री के संबंध में भारत के विचार को लेकर अपनी पेशकश की है। इससे भारत की क्षमता में विस्तार होगा और साझा रक्षा हितों का प्रसार होगा।
अपने समुद्री सुरक्षा सहयोग को विस्तार देने का संकल्प लेते हुए उन्होंने अपने अपने  व्हाइट शिपिंग डाटा साझाकरण व्यवस्था के क्रियान्वयन पर अपने इरादे की घोषणा की, जिससे समुद्री डोमेन जागरुकता पर सहयोग बढ़ेगा।
 ट्रंप ने हिंद महासागर में नौवहन संगोष्ठी इंडियन ओशन नेवल सिम्पोजियम में बतौर पर्यवेक्षक अमेरिका को शामिल करने के लिये मोदी के दृढ़ सहयोग का स्वागत किया।
आगामी मालाबार नौसेना अभ्यास (अमेरिका, जापान और भारत के बीच) के महत्व को रेखांकित करते हुए नेताओं ने साझा समुद्री उद्देश्यों एवं नये नये अभ्यासों की खोज करने पर अपनी भागीदारी में विस्तार देने का निश्चय किया।
गार्जियन ड्रोन की ताकत: 27 घंटे तक भर सकता है उड़ान, निगरानी और खुुुफिया मिशन में कारगर
गार्जियन ड्रोन खुफिया जानकारी इकट्ठा करने, निगरानी और दुश्मन की टोह लेने में माहिर है। सामान्य बनावट के कारण ऐसे मिशन में इसको हैंडल करना आसान है। यह ड्रोन एक बार में 27 घंटे तक अधिकतम 50000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। यह अपने साथ 1746 किलोग्राम तक विस्फोटक ले जा सकता है।
इस ड्रोन का इस्तेमाल इटली, फ्रांस, ब्रिटेन और स्पेन की वायुसेनाएं करती हैं, इसके अलावा अमेरिकी वायुसेना, नासा समेत कई अमेरिकी एजेंसियां भी करती हैं।

गुरुवार, 22 जून 2017

राष्ट्रपति चुनाव:विपक्ष की बैठक में, पांच नामों पर चर्चा

New Delhi
राष्ट्रपति पद के लिये संभावित साझा उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाने के लिये गुरुवार शाम 4.30 बजे होने वाली विपक्ष की अहम बैठक से पहले गैर राजग दलों के नेता गहन विचार विमर्श में जुटे दिखे। यह बैठक कांग्रेस की अगुवाई में होगी और इसमें 16 विपक्षी दल शामिल होंगे। ये बैठक शरद पावर के आवास में होगी। इस बैठक में राष्ट्रपति पद के पांच उम्मीदवारों के नाम को लेकर चर्चा हो सकती। इसमें पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार, सुशील कुमार शिंदे, गोपाल कृष्ण गांधी, प्रकाश अंबेडकर और बालाचंद्रे मुंगेकर के नाम शामिल हैं।
जदयू के राजग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने के फैसले के बाद कांग्रेस ने विपक्ष को एकजुट रखने का प्रयास तेज कर दिया है और उसके वरिष्ठ नेताओं ने कई विपक्षी दलों के नेताओं से इस बारे में चर्चा भी की। जदयू के राजग उम्मीदवार के समर्थन के अचानक लिये गये फैसले से विपक्ष की एकता में दरार साफ नजर आई क्योंकि पार्टी प्रमुख नीतीश कुमार ही वह शख्स थे जिन्होंने इस मुद्दे पर विपक्ष की साझा रणनीति की पहल की थी।

सूत्रों का कहना है कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिये मुकाबला अब लगभग तय है क्योंकि अधिकतर विपक्षी दल इसे  विचारधारा की लड़ाई मानते हैं जिसे लड़ा जाना चाहिए। एक वरिष्ठ वाम नेता ने कहा, इससे फर्क नहीं पड़ता की नतीजा क्या होगा, हम चुनाव लड़ेंगे। इस बात के लिए कोशिश की जा रही है कि एनसीपी भटके नहीं क्योंकि शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी ने 17 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव पर रणनीति बनाने के लिये आंतरिक बैठक भी की है।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल ने एनसीपी सुप्रीमो से उनके आवास पर मुलाकात की और माना जा रहा है कि इस दौरान चुनाव को लेकर विपक्ष की रणनीति पर उनसे चर्चा की। सूत्रों ने कहा कि माकपा नेता सीताराम येचुरी भी इस अनौपचारिक चर्चा का हिस्सा थे।

राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की जीत अब पक्की मानी जा रही है। मंगलवार को शिवसेना के समर्थन के बाद बुधवार को जेडीयू ने भी कोविंद को अपना समर्थन दे दिया है। जेडीयू की घोषणा के बाद बीजेपी की राह और आसान हो गई है। वहीं आरजेडी आगामी राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार पर फैसला आज लेगा। नीतीश कुमार के घर पर हुई पार्टी बैठक में एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का फैसला लिया।
जेडीयू प्रवक्ता के सी त्यागी ने कहा कि उनकी पार्टी एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने की घोषणा की है। त्यागी ने कहा कि राज्यपाल के रूप में रामनाथ कोविंद का कार्याकाल बेहतरीन रहा। उन्होंने शांति के साथ कामकाज किया और उनके कार्याकाल के दौरान कोई विवाद नहीं होने दिया।